देश की खबरें | केरल के पत्रकार की गिरफ्तारी के खिलाफ याचिका पर न्यायाल का उप्र सरकार को नोटिस
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. उच्चतम न्यायालय ने कथित रूप से सामूहिक बलात्कार के बाद जान गंवाने वाली दलित युवती के घर हाथरस जा रहे केरल के एक पत्रकार की गिरफ्तारी के खिलाफ दायर याचिका पर सोमवार को उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया।
नयी दिल्ली, 16 नवंबर उच्चतम न्यायालय ने कथित रूप से सामूहिक बलात्कार के बाद जान गंवाने वाली दलित युवती के घर हाथरस जा रहे केरल के एक पत्रकार की गिरफ्तारी के खिलाफ दायर याचिका पर सोमवार को उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया।
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने हालांकि इस पत्रकार की जमानत के लिये केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स की याचिका 20 नवंबर के लिये सूचीबद्ध कर दी लेकिन साथ ही सवाल किया कि इसी राहत के लिये यूनियन इलाहाबाद उच्च न्यायालय क्यों नहीं गयी?
पीठ ने कहा, ‘‘हम संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सीधे उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर करने की प्रवृत्ति को हतोत्साहित करने का प्रयास कर रहे हैं। यह इस समय मामले के गुण दोष पर कोई टिप्पणी नहीं है।’’
पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘नोटिस जारी किया जाये जिसका जवाब 20 नवंबर तक देना है। इस बीच, याचिकाकर्ता (यूनियन) को प्रतिवादी राज्य सरकार के स्थाई वकील को याचिका की प्रति देने की अनुमति दी जाती है।
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पत्रकारों के संगठन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने गिरफ्तार पत्रकार को जमानत देने का अनुरोध किया और कहा कि मथुरा में दर्ज प्राथमिकी में उसके खिलाफ कुछ भी नहीं है।
उन्होंने कहा कि यह प्राथमिकी पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) से कथित संबंधों के संदेह में चार व्यक्तियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून के विभिन्न प्रावधानों के तहत दर्ज की गयी है।
पीएफआई पर पहले भी आरोप लगा है कि उसने इस साल के प्रारंभ में देश भर में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ आन्दोलन के लिये धन मुहैया कराया था।
उन्होंने कहा, ‘‘प्राथमिकी में उसका नाम नहीं है। किसी तरह के अपराध का आरोप नहीं है। वह पांच अक्टूबर से जेल में है।’’
शीर्ष अदालत ने जब यह कहा कि पत्रकारों के संगठन को सीधे यहां नहीं आना चाहिए था, तो सिब्बल ने कहा, ‘‘आपने अनुच्छेद 32 के तहत ऐसा किया है।’’
इस पर पीठ ने कहा, ‘‘हम अनुच्छेद 32 के तहत अपने अधिकारों के प्रति भलीभांति सचेत हैं। हम यह देख रहे हैं कि अनुच्छेद 32 की याचिकाओं की बाढ़ आयी हुयी है।’’
इस मामले में उच्च न्यायालय नहीं जाने के बारे में सवाल करते हुये पीठ ने कहा, ‘‘हम इस मामले के मेरिट पर नहीं है। आप उच्च न्यायालय क्यों नहीं गये।?’’
इससे पहले, शीर्ष अदालत ने कहा था कि वह इस याचिका पर चार सप्ताह बाद सुनवाई करेगा और इस दौरान पत्रकारों का संगठन राहत के लिये इलाहाबाद उच्च न्यायालय जा सकता है।
पत्रकार सिद्दीकी कप्पन को पांच अक्टूबर को हाथरस जाते समय रास्ते में गिरफ्तार किया गया था। वह हाथरस में सामूहिक बलात्कार की शिकार हुयी दलित युवती के घर जा रहे थे। इस युवती की बाद में सफदरजंग अस्पताल में मृत्यु हो गयी थी।
पत्रकारों के इस संगठन ने पत्रकार की गिरफ्तारी के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी और उसे तत्काल पेश करने और इस ‘गैरकानूनी हिरासत’ से तत्काल रिहा करने का अनुरोध किया था।
हालांकि, पुलिस ने कहा था कि उसने पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया से संबंध रखने वाले चार व्यक्तियों को मथुरा में गिरफ्तार किया है जिनके नाम-मलापुरम निवासी सिद्दीकी, मुजफ्फरनगर निवासी अतीकुर रहमान, बहराइच निवासी मसूद अहमद और रामपुर निवासी आलम हैं।
इन गिरफ्तारियों के चंद घंटे बाद ही केरल के पत्रकारों के इस संगठन ने सिद्दीकी की पहचान केरल के मलापुरम निवासी सिद्दीकी कप्पन के रूप में की और कहा कि वह दिल्ली स्थित एक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
याचिका में कहा गया कि यह गिरफ्तारी शीर्ष अदालत द्वारा प्रतिपादित दिशा निर्देशों का उल्लंघन करते हुये पत्रकार के काम में बाधा डालने की मंशा से की गयी है। याचिका में कहा गया कि इस पत्रकार के परिवार या उनके सहयोगियों को गिरफ्तारी के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गयी।
हाथरस में 14 सितंबर, 2020 को एक 19 साल की दलित युवती से कथित रूप से सामूहिक बलात्कार की घटना सुर्खियों में थी। इस वारदात में बुरी तरह जख्मी युवती की बाद में दिल्ली के सफदरजंग अस्तपाल में मृत्यु हो गयी थी।
प्राधिकारियों ने भोर होने से पहले ही पीड़िता के पार्थिव शरीर का उसके परिजनों की कथित रूप से सहमति के बगैर ही अंतिम संस्कार कर दिया था।
अनूप
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