देश की खबरें | न्यायालय ने 1957 के बाद अनुच्छेद 370 के निष्प्रभावी होने को अस्वीकार्य दलील करार दिया

नयी दिल्ली, 22 अगस्त उच्चतम न्यायालय ने इस दलील को ‘अस्वीकार्य’ करार दिया है कि संविधान का अनुच्छेद 370 जम्मू कश्मीर के संविधान का मसौदा तैयार किये जाने के बाद 1957 में पूर्ववर्ती राज्य की संविधान सभा का कार्यकाल समाप्त होने पर निष्प्रभावी हो गया था।

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने यह टिप्पणी मामले में हस्तक्षेपकर्ता प्रेम शंकर झा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दिनेश द्विवेदी के पेश होने पर की।

झा ने दलील दी कि 26 जनवरी, 1957 को जम्मू कश्मीर का संविधान लागू होने और राज्य की संविधान सभा का कार्यकाल समाप्त होने के बाद पूर्ववर्ती राज्य को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 का कुछ भी नहीं बचा था।

उन्होंने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के 5 अगस्त, 2019 के फैसले को चुनौती दी है। झा ने यह कानूनी सवाल उठाया कि क्या जम्मू कश्मीर के संविधान के लागू होने और संविधान सभा के भंग होने के बाद अनुच्छेद 370 का अस्तित्व समाप्त हो गया।

इस पर, पीठ ने दलीलों की वैधता पर सवाल किये। पीठ में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत भी शामिल हैं।

पीठ ने द्विवेदी से कहा कि न्यायालय को भारतीय संविधान सभा में हुई चर्चाओं और भारतीय संविधान के निर्माताओं की मंशा को उस तरीके से देखना होगा, जिसमें अनुच्छेद 370 का मसौदा तैयार किया गया था।

द्विवेदी ने कहा, "मैं अपने मित्रों की दलील से कुछ अलग दलील दे रहा हूं। वे चाहते हैं कि अनुच्छेद 370 का कुछ हिस्सा बचा रहे। मेरी दलील है कि कुछ भी नहीं बचा है। मैं साबित कर दूंगा कि जम्मू कश्मीर का संविधान लागू के बाद अनुच्छेद 370 के तहत प्रदत्त सभी शक्तियां समाप्त हो गईं।’’

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि इस दलील का परिणाम यह होगा कि भारत का संविधान और जम्मू कश्मीर में इसे लागू किया जाना ‘26 जनवरी, 1957 तक’ ही प्रभावी रहा।

उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए, आपके अनुसार, 1957 के बाद भारतीय संवैधानिक कानून में कोई और बदलाव जम्मू कश्मीर राज्य पर बिल्कुल भी लागू नहीं हो सकता है। यह कैसे स्वीकार किया जा सकता है?’’

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