देश की खबरें | न्यायालय ने संभल मस्जिद विवाद में निचली अदालत की कार्यवाही रोकी, सरकार से शांति बनाए रखने को कहा

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नयी दिल्ली, 29 नवंबर उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को संभल की एक निचली अदालत को चंदौसी स्थित मुगलकालीन शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण मामले में कार्यवाही को अस्थायी रूप से रोकने का निर्देश दिया और उत्तर प्रदेश सरकार से हिंसा प्रभावित शहर में शांति एवं सद्भाव बनाए रखने को कहा।

गत 19 नवंबर को संभल के दीवानी न्यायाधीश (सीनियर डिवीजन) की अदालत ने हिंदू पक्ष की याचिका पर गौर करने के बाद ‘एडवोकेट कमिश्नर’ से मस्जिद का सर्वेक्षण कराने का एक पक्षीय आदेश पारित किया था।

याचिका में दावा किया गया था कि मस्जिद का निर्माण मुगल सम्राट बाबर ने 1526 में एक मंदिर को ध्वस्त करने के बाद कराया था।

आदेश के बाद 24 नवंबर को इलाके में हिंसा हुई जिसमें चार लोगों की जान चली गई।

प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने संभल जिले में शांति बनाए रखने के महत्व पर जोर दिया और निर्देश दिया कि मस्जिद सर्वेक्षण के बाद ‘कोर्ट कमिश्नर’ द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट को सीलबंद कर दिया जाए तथा इसे अगले आदेश तक न खोला जाए।

इसने कहा कि सर्वेक्षण आदेश के खिलाफ शाही जामा मस्जिद समिति द्वारा दायर याचिका को तीन कार्य दिवसों के भीतर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष सूचीबद्ध किया जाना चाहिए।

प्रधान न्यायाधीश ने आदेश में लिखा, ‘‘हमारा मानना ​​है कि याचिकाकर्ता (मस्जिद समिति) को 19 नवंबर, 2024 के आदेश को उचित मंच पर चुनौती देनी चाहिए। इस बीच, शांति और सद्भाव बनाए रखा जाना चाहिए। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (राज्य सरकार की ओर से पेश केएम नटराज) ने यही आश्वासन दिया है। हमारा यह भी मानना है कि यदि कोई पुनरीक्षण याचिका/विविध याचिका दायर की जाती है, तो उसे तीन कार्य दिवसों की अवधि के भीतर सूचीबद्ध किया जाएगा।’’

आदेश में उल्लेख किया गया कि मामला 8 जनवरी, 2025 के लिए निचली अदालत के समक्ष निर्धारित है। इसमें कहा गया, ‘‘हमें आशा और विश्वास है कि निचली अदालत इस मामले पर तब तक आगे नहीं बढ़ेगी जब तक मामला उच्च न्यायालय के समक्ष सूचीबद्ध नहीं हो जाता। हम स्पष्ट करते हैं कि हमने मामले के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त नहीं की है। हम मौजूदा विशेष अनुमति याचिका का निपटारा नहीं कर रहे हैं। 6 जनवरी से शुरू होने वाले सप्ताह में (इसे) पुनः सूचीबद्ध किया जाए।’’

इससे पहले दिन में, संभल अदालत के दीवानी न्यायाधीश आदित्य सिंह ने अदालत द्वारा नियुक्त आयुक्त राकेश सिंह राघव को मस्जिद से संबंधित सर्वेक्षण रिपोर्ट 10 दिन के भीतर प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने शीर्ष अदालत में मस्जिद समिति का प्रतिनिधित्व किया।

प्रधान न्यायाधीश ने शुरुआत में अहमदी से पूछा कि जिला दीवानी अदालत के आदेश के खिलाफ सीधे उच्चतम न्यायालय में याचिका कैसे दायर की गई। उन्होंने अहमदी को उच्च न्यायालय में कानूनी सहारा लेने की सलाह दी।

अहमदी ने कहा कि निचली अदालत के आदेश से ‘‘बड़ी गड़बड़ी’’ होने की संभावना है। उन्होंने शीर्ष अदालत से हस्तक्षेप करने का आग्रह किया।

हालाँकि, पीठ ने समिति को संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की सलाह दी, जो निचली अदालतों पर पर्यवेक्षी शक्तियाँ प्रदान करता है।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हमें आदेश पर कुछ आपत्तियां हो सकती हैं, लेकिन क्या यह अनुच्छेद 227 के अधीन नहीं है? आपको उचित मंच से संपर्क करना होगा।’’

उन्होंने सामुदायिक सद्भाव के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘शांति और सद्भाव बनाए रखना होगा। हम नहीं चाहते कि कोई घटना हो... हमें बिलकुल, पूरी तरह से तटस्थ रहना होगा और सुनिश्चित करना होगा कि कुछ भी गलत न हो।’’

पीठ ने राज्य सरकार से दोनों समुदायों के सदस्यों को शामिल कर शांति समिति गठित करने को कहा।

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने पीठ को क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिए राज्य सरकार की प्रतिबद्धता का आश्वासन दिया।

संभल की शाही जामा मस्जिद की प्रबंधन समिति ने 28 नवंबर को उच्चतम न्यायालय का रुख किया और मुगलकालीन मस्जिद का सर्वेक्षण कराने संबंधी जिला अदालत के 19 नवंबर के आदेश को चुनौती दी तथा दीवानी न्यायाधीश के आदेश के क्रियान्वयन पर एक पक्षीय रोक लगाने का आग्रह किया।

उत्तर प्रदेश के संभल में 19 नवंबर के बाद तनाव पैदा हो गया जब अदालत के आदेश पर शाही जामा मस्जिद का सर्वेक्षण इस दावे के बाद किया गया कि उस स्थान पर पहले हरिहर मंदिर था।

प्रदर्शनकारी 24 नवंबर को मस्जिद के पास एकत्र हुए और सुरक्षाकर्मियों से भिड़ गए। इस दौरान पथराव और आगजनी भी हुई। इस हिंसा में चार लोग मारे गए और कई अन्य घायल हो गए।

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