न्यायालय ने हलाल प्रमाणपत्र वाले खाद्य उत्पादों के उत्पादन पर रोक को लेकर उप्र से जवाब मांगा

उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश में निर्यात के लिए निर्मित उत्पादों को छूट देते हुए हलाल प्रमाणपत्र वाले खाद्य उत्पादों के उत्पादन, भंडारण, वितरण और बिक्री पर प्रतिबंध लगाने वाली अधिसूचना को चुनौती देने वाली दो अलग-अलग याचिकाओं पर शुक्रवार को राज्य सरकार तथा अन्य से जवाब मांगा।

नयी दिल्ली, 5 जनवरी: उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश में निर्यात के लिए निर्मित उत्पादों को छूट देते हुए हलाल प्रमाणपत्र वाले खाद्य उत्पादों के उत्पादन, भंडारण, वितरण और बिक्री पर प्रतिबंध लगाने वाली अधिसूचना को चुनौती देने वाली दो अलग-अलग याचिकाओं पर शुक्रवार को राज्य सरकार तथा अन्य से जवाब मांगा. उत्तर प्रदेश के खाद्य सुरक्षा और औषधि प्रशासन, आयुक्त के कार्यालय ने खाद्य सुरक्षा व मानक अधिनियम, 2006 की धारा 30 (2) (ए) के तहत पिछले साल 18 नवंबर को एक अधिसूचना जारी की.

याचिकाएं सुनवाई के लिए न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ के समक्ष पेश की गयी, जिसने उत्तर प्रदेश सरकार, केंद्र तथा अन्य को नोटिस जारी कर उनसे जवाब मांगा. शुरुआत में पीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकीलों से सवाल किया कि उच्चतम न्यायालय को संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत उनकी याचिकाओं पर सुनवाई क्यों करनी चाहिए और उन्होंने पहले उच्च न्यायालय का रुख क्यों नहीं किया. इस पर एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने कहा कि इस मुद्दे का पूरे भारत पर असर पड़ा है और इसका व्यापार तथा वाणिज्य पर भी असर पड़ा है.

पीठ ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय के आदेश का भी पूरे भारत पर असर पड़ता है। यदि मान लीजिए कि उच्च न्यायालय किसी दस्तावेज पर रोक लगाता है तो वह रोक पूरे देश में लागू रहेगी.’’ उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अंतर-राज्यीय व्यापार और वाणिज्य के मुद्दे पर भी उच्च न्यायालय विचार कर सकता है. इस पर वकील ने दलील दी कि इस मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय को ही गौर करने की आवश्यकता है और उसे इस पर विचार करना होगा कि ऐसी अधिसूचना जारी की जा सकती है या नहीं.

पीठ ने याचिकाओं पर नोटिस जारी करते हुए मामले पर सुनवाई के लिए दो हफ्ते बाद की तारीख तय की. बहरहाल, उसने एक वकील के इस अनुरोध को खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई बलपूर्वक कार्रवाई नहीं की जाए. इनमें से एक याचिका हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और अन्य ने जबकि दूसरी याचिका जमीयत उलेमा-ए महाराष्ट्र तथा अन्य ने दायर की है.

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