देश की खबरें | न्यायालय ने कहा : 34 कोयला खदानों की ई-नीलामी उसके आदेशों के दायरे में आयेगी
एनडीआरएफ/प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: ANI)

नयी दिल्ली, छह नवंबर उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को केन्द्र को यह स्पष्ट कर दिया कि झारखंड की पांच कोयला खदानों सहित 34 खदानों की ई नीलामी उसके अंतिम आदेशों के दायरे में रहेगी।

शीर्ष अदालत ने सरकार से यह भी कहा कि वह बोली लगाने वालों को सूचित करें कि इसके किसी भी तरह के लाभ उनके लिये अस्थाई होंगे।

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प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ से केन्द्र की ओर से अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि क्षेत्र में एक भी वृक्ष की कटाई नहीं होगी।

पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘यह मामला अवकाश के बाद तक स्थगित किया जाता है। इस बीच, इस मामले में प्रतिवादियों (केन्द्र) द्वारा की जाने वाली कोई भी कार्रवाई इस न्यायालय के आदेशों के दायरे में रहेगी।’’

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पीठ ने कहा, ‘‘प्रतिवादी इसे प्राप्त करने वालों को सूचित करने का ध्यान रखेंगे कि इस नीलामी से होने वाले किसी भी किस्म के लाभ अस्थाई मतलब इस न्यायालय द्वारा पारित किये जाने वाले आदेशों के दायरे में आयेंगे।’’

इससे पहले, शुरू में ही पीठ ने वेणुगोपाल से कहा कि समय के अभाव की वजह से इस मामले की विस्तार से सुनवाई नहीं की जायेगी।

पीठ ने कहा कि अटार्नी जनरल ने पहले न्यायालय से कहा था कि वास्तविक रूप में कोई भी कार्रवाई दो साल बाद ही की जायेगी।

पीठ ने वेणुगोपाल से कहा, ‘‘हम यह करने की सोच रहे हैं कि हम कहेंगे कि आप जो भी कार्रवाई करेंगे वह हमारे आदेशों के दायरे में आयेगी और हम इसे न्यायालय दुबारा खुलने के तुरंत बाद सूचीबद्ध कर देंगे।’’

झारखंड की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता फली एस नरिमन, अभिषेक मनु सिंघवी और अतिरिक्त महाधिवक्ता अरूणाभ चौधरी तथा कृष्णराज ठाकर ने कहा कि इलाके में वृक्षों की कटाई रोकी जानी चाहिए।

गैर सरकारी संगठन झारखंड नागरिक प्रयास की ओर से इस मामले में हस्तक्षेप करते हुये वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोन्साल्विज ने कहा कि केन्द्र को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उस समय तक एक भी पेड़ नहीं काटा जाये।

वेणुगोपाल ने कहा कि वह पहले ही कह चुके हैं कि पेड़ों की कटाई नहीं होगी।

इस मामले में केन्द्र ने एक नोट दाखिल किया है जिसमे उन नौ खदानों और पारिस्थितिकी दृष्टि से संवेदनशील/ संरक्षित/ वन्यजीव अभ्यारण्य से उनकी दूरी का विवरण है जिनकी नीलामी की जायेगी।

इसमें कहा गया है कि नौ कोयला खदानों में से पांच की नीलामी होगी जबकि चार कोयला खदानों-चोरीटांड तिलैया, छितरपुर, उत्तरी धाधू और शेरगढ.- की नीलामी कम निविदायें मिलने की वजह से रद्द कर दी गयी हैं।

झारखंड की पांच अन्य कोयला खदानों - गोंडलपाड़ा, राजहड़ा उत्तर, उर्मा पहाड़ीटोला, ब्रह्मडीहा और चकला- के लिये वित्तीय बोली नौ नवंबर को लगेगी।

केन्द्र ने पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना 2006 के तहत पर्यावरण मंजूरी के लिये राष्ट्रीय उद्यान या वन्यजीव अभ्यरण्य के 10 किमी के दायरे में स्थित विकास परियोजनाओं की प्रक्रिया के संबंध में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के विभागीय मेमोरैण्डम और कई फैसलों का भी हवाला दिया है।

इसी मुद्दे पर झारखंड के वाद में केन्द्र ने 15 सितंबर को लिखित वक्तव्य दाखिल किया जिसमे कहा गया है कि कोयला खदान (विशेष प्रावधान) कानून, 2015 और खान एवं खनिज (विकास एवं नियमन) कानून, 1957 के प्रावधानों के तहत 41 कोयला खदानों की नीलामी की प्रक्रिया 18 जून, 2020 को शुरू की गयी है।

केन्द्र ने कहा कि 21 जुलाई को महाराष्ट्र में स्थित एक कोयला खदान की नीलामी राज्य सरकार की सलाह से वापस ले ली गयी और अब 40 कोयला खदाने शेष हैं। उसने कहा था कि इस बार कुल 38 कोयला खदानों की नीलामी की जायेगी लेकिन अब झारखंड में चार खदानों की नीलामी रद्द हो जाने की वजह से 34 खदानों की ही नीलामी होगी।

न्यायालय ने चार नवंबर को यह आदेश देने का संकेत दिया था कि झारखंड में व्यावसायिक मकसद से पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र के 50 किमी के दायरे में प्रस्तावित कोयला खदानों के आवंटन के लिये ई-नीलामी नही की जायेगी।

शीर्ष अदालत ने कहा था कि वह सिर्फ यह सुनिश्चित करना चाहती है कि ‘जंगलों को नष्ट नहीं किया जाये।

न्यायालय ने कहा कि वह विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने पर विचार कर रहा है जो यह पता लगायेगी कि क्या झारखंड में प्रस्तावित खनन स्थल के पास का इलाका पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र है या नहीं।

केन्द्र की ओर से अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने शीर्ष अदालत की इस टिप्पणी का विरोध करते हुये कहा था कि इस तरह के, पारिस्थितिकी दृष्टि से संवेदनशील जोन से खदान स्थल 20 किमी से 70 किमी की दूरी पर हैं और अगर यही पैमाना लागू किया गया तो गोवा जैसे राज्यों में खनन असंभव हो जायेगा।

न्यायालय ने 30 सितंबर को भी टिप्पणी की थी कि अगर कोई क्षेत्र पारिस्थितिकी दृष्टि से संवेदनशील जोन में आ रहा होगा तो केन्द्र और राज्य सरकार दोनों को ही इसमें खनन करने का अधिकार नहीं होगा।

अनूप

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