न्यायालय का असम के नजरबंदी केन्द्रों में दो साल से बंद लोगों की रिहाई का आदेश
शीर्ष अदालत ने नजरबंदी शिविरों में बंद व्यक्तियों की रिहाई के संबंध में कुछ शर्तें लगायी थीं जिनमें ऐसे नजरबंदियों को तीन साल से अधिक इन केन्द्रों में व्यतीत करना भी शामिल था। ऐसे बंदियों को रिहाई के लिये एक लाख रुपये का मुचलका और इतनी ही रकम की दो जमानत राशि देने की शर्त थी।
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एम एम शांतनगौडर की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने 10 मई, 2019 के अपने आदेश का हवाला देते हुये नजरबंदी की अवधि तीन साल से घटाकर दो साल करने के साथ ही निजी मुचलके की राशि भी एक लाख रुपये से घटाकर पांच हजार रुपये कर दी।
शीर्ष अदालत ने नजरबंदी शिविरों में बंद व्यक्तियों की रिहाई के संबंध में कुछ शर्तें लगायी थीं जिनमें ऐसे नजरबंदियों को तीन साल से अधिक इन केन्द्रों में व्यतीत करना भी शामिल था। ऐसे बंदियों को रिहाई के लिये एक लाख रुपये का मुचलका और इतनी ही रकम की दो जमानत राशि देने की शर्त थी।
न्यायालय ने असम स्थित एक परमार्थ ट्रस्ट ‘जस्टिस फॉर लिबर्टी इनीशिएटिव’ के एक आवेदन पर सोमवार को यह आदेश दिया। इस आवेदन में कोरोनावायरस महामारी के मद्देनजर असम के छह नजरबंदी शिविरों में बंद व्यक्तियों की रिहाई का अनुरोध किया गया था।
इस मामले में सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने इनकी रिहाई पर आपत्ति व्यक्त करते हुये आशंका व्यक्त की कि ये रिहाई के बाद जिस गांव या स्थान पर जायेंगे वहां के लोगों को संक्रमित करेंगे। आवेदनकर्ता संगठन की ओर से अधिवक्ता शोएब आलम ने न्यायालय को सूचित किया कि अटार्नी जनरल की यह आशंका इस निराधार बात पर आधारित है कि प्रत्येक व्यक्ति वायरस से संक्रमित है। पीठ ने टिप्पणी की कि दिशानिर्देश तैयार करने और लोगों की रिहाई के बारे में निर्देश देने का मकसद जेलों और इन शिविरों को कोरोनावायरस के संक्रमण का अड्डा बनने से रोकना है
आलम ने भी दलील दी कि दो साल की अवधि भी खत्म की जाये या फिर महामारी की अप्रत्याशित स्थिति को देखते हुये इसे कम किया जाये।
पीठ ने कहा कि इस समय वह सिर्फ उन व्यक्तियों को रिहा करेगी जो दो साल या इससे अधिक इन नजरबंदी केन्द्रों में व्यतीत कर चुके हैं तथा इस अवधि में और कटौती के मामले में बाद में विचार किया जायेगा।
अधिवक्ता तल्हा अब्दुल रहमान के माध्यम से दायर आवेदन में इस संगठन ने शीर्ष अदालत के 16 मार्च के आदेश का हवाला देते हुये कहा कि जेलों में कोविड-19 संक्रमण फैलने से रोकने की दिशा में न्यायालय पहले ही एक साहसिक कदम उठा चुका है और उसने कैदियों की पैरोल पर रिहाई के तौर तरीके तैयार करने के लिये उच्चाधिकारी समिति गठित करने का आदेश दिया है।
आवेदन में कहा गया कि कोरोना वायरस महामारी को देखते हुये असम के इन खस्ताहाल, क्षमता से ज्यादा कैदियों वाले इन नजरबंदी शिविरों में करीब 802 नजरबंदियों के तेजी से संक्रमित होने का खतरा है और उन्हें पैरोल की सुविधा भी उपलब्ध नहीं हैं।
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, लेटेस्टली स्टाफ ने इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया है)