नयी दिल्ली, चार मार्च उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि महाराष्ट्र में संबंधित स्थानीय निकायों में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं ओबीसी के लिए आरक्षित कुल सीटों के 50 फीसदी से अधिक नहीं हो सकता।
शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र जिला परिषद और पंचायत समिति अधिनियम 1961 के भाग 12 (2)(सी) की व्याख्या करते हुए ओबीसी के लिए संबंधित स्थानीय निकायों में सीटों का आरक्षण प्रदान करने की सीमा से संबंधित राज्य चुनाव आयोग द्वारा वर्ष 2018 और 2020 में जारी अधिसूचनाओं को रद्द कर दिया।
उक्त अधिनियम पिछड़े वर्ग से संबंध रखने वाले लोगों को 27 फीसदी आरक्षण उपलब्ध कराता है।
अदालत ने कहा कि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के उम्मीदवारों के चुनाव नतीजों को गैर-कानूनी घोषित किया जाता है और संबंधित स्थानीय निकायों की इन रिक्त हुई सीटों के बचे हुए कार्यकाल को राज्य चुनाव आयोग द्वारा भरा जाएगा।
न्यायमूर्ति एएम खानविल्कर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि 1961 अधिनियम के भाग 12 (2)(सी) की वैधता को दी गई चुनौती नकारात्मक है। इसके बजाय संबंधित स्थानीय निकायों में ओबीसी को दिए जाने वाले आरक्षण की सीमा एससी, एसटी एवं ओबीसी को दी जाने वाली कुल आरक्षित सीटों के 50 फीसदी से अधिक नहीं हो।
हालांकि, उच्चतम न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि इसके परिणामस्वरूप संबंधित स्थानीय निकायों में ओबीसी उम्मीदवारों की भागीदारी में लिए गए निर्णयों एवं कार्यों पर किसी तरह का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा जो सीटें इस निर्णय के सदंर्भ में रिक्त होंगी।
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