नयी दिल्ली, 18 दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को केंद्र को सामुदायिक संरक्षित वनों, जिन्हें पवित्र उपवन के रूप में जाना जाता है, के प्रशासन और प्रबंधन के लिए एक व्यापक नीति बनाने की अनुशंसा की।
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति एस.वी.एन. भट्टी और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि भारत में हजारों पवित्र उपवन हैं, जो वनों के टुकड़े या वृक्षों के समूह हैं, जिनका उन्हें संरक्षित और पोषित करने वाले स्थानीय समुदायों के लिए गहरा सांस्कृतिक या आध्यात्मिक महत्व है।
पीठ ने कहा, “पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को देश भर में पवित्र उपवनों के प्रशासन और प्रबंधन के लिए एक व्यापक नीति बनाने की सिफारिश की जाती है।”
उच्चतम न्यायालय ने राजस्थान में पवित्र उपवनों पर चिंता जताने वाली याचिका पर अपना फैसला सुनाया।
न्यायालय ने राजस्थान के वन विभाग को निर्देश दिया कि वह संबंधित क्षेत्र में प्रत्येक पवित्र उपवन का विस्तृत स्थलीय और उपग्रह मानचित्रण करे तथा उन्हें “वन” के रूप में वर्गीकृत करे, जैसा कि एक जून, 2005 की केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति की रिपोर्ट में सिफारिश की गई थी।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि पवित्र उपवनों के सतत संरक्षण को बढ़ावा देने तथा उनके संरक्षण से जुड़े समुदायों को सशक्त बनाने के लिए कुछ सुझाव देना आवश्यक है।
इसलिए राजस्थान सरकार को निर्देश दिया गया कि वह उन पारंपरिक समुदायों की पहचान करे जिन्होंने ऐतिहासिक रूप से पवित्र वनों की रक्षा की है तथा इन क्षेत्रों को वन अधिकार अधिनियम की धारा 2(ए) के तहत “सामुदायिक वन संसाधन” के रूप में नामित करे।
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)