नयी दिल्ली, 12 दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को उस याचिका पर सुनवाई नौ जनवरी तक के लिए स्थगित कर दी, जिसमें केंद्र और राज्यों को “धमकी देकर, डराकर, धोखे से लालच और आर्थिक लाभ देकर धर्मांतरण को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने का निर्देश देने की मांग की गई है।”
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के उपलब्ध नहीं होने के कारण न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति एस. रविंद्र भट्ट की पीठ ने मामले पर सुनवाई टाल दी।
संक्षिप्त सुनवाई के दौरान, एक पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने मामले में पक्षकार बनने की मांग की और कहा कि धर्मों के खिलाफ कुछ बहुत ही गंभीर और घृणित आरोप हैं।
दवे ने कहा, “कृपया हमें पक्षकार बनने की अनुमति दें। आरोप वास्तव में दुखद हैं। आज आप इस पर विचार कर सकते हैं।”
पीठ ने हालांकि कहा कि वह मामले की सुनवाई की अगली तारीख पर विचार करेगी।
दान के उद्देश्य पर जोर देते हुए, शीर्ष अदालत ने पहले पुष्टि की थी कि जबरन धर्म परिवर्तन एक “गंभीर मुद्दा” है और संविधान के खिलाफ है।
अदालत वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें फर्जी धर्म परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए केंद्र और राज्यों को कड़े कदम उठाने का निर्देश देने की मांग की गई है।
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