COP-28 के अध्यक्ष सुल्तान अहमद अल-जबह के एक बयान की काफी आलोचना हो रही है. उन्होंने ग्लोबल वॉर्मिंग को डेढ़ डिग्री तक सीमित करने के लिए जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल घटाने की अनिवार्यता के "विज्ञान" पर संदेह जताया था.सुल्तान अहमद अल-जबह संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के इंडस्ट्री और एडवांस्ड टेक्नोलॉजी मिनिस्टर और सरकारी तेल कंपनी "अबू धाबी नेशनल ऑइल कंपनी" के प्रमुख भी हैं. बीते दिनों उनके एक बयान की काफी चर्चा रही. ब्रिटिश अखबार "दि गार्डियन" ने बताया कि 21 नवंबर को एक ऑनलाइन कार्यक्रम के दौरान अल-जबर ने कहा कि ऐसा कोई "साइंस" नहीं है, जो दर्शाता हो कि ग्लोबल वॉर्मिंग को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का लक्ष्य हासिल करने के लिए जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल धीरे-धीरे घटाने की जरूरत है.
खबरों के मुताबिक, अल-जबर ने यह भी कहा कि जीवाश्म ईंधन को फेज-आउट करने से टिकाऊ विकास की राह नहीं बनेगी, सिवाय उस स्थिति के जब हम दुनिया को वापस "गुफा" में रहने वाले दौर की ओर वापस ना ले जाना चाहें.
यूएई की भूमिका पर सवाल
अल-जबर ने मैरी रॉबिन्सन द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में यह बात कही थी. रॉबिन्सन आयरलैंड की पूर्व राष्ट्रपति और जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र की पूर्व विशेष प्रतिनिधि हैं. इस बयान को लेकर अल-जबर की काफी आलोचना हुई. कई जानकारों ने सम्मेलन का नेतृत्व करने की उनकी योग्यता पर भी सवाल उठाया. अब अल-जबर ने स्पष्टीकरण दिया है कि वह विज्ञान में यकीन रखते हैं और उनके बयान को गलत तरीके से पेश किया गया. सम्मेलन के पांचवें दिन उन्होंने कहा, "हम यहां हैं, क्योंकि हम विज्ञान में भरोसा करते हैं और इसका सम्मान करते हैं."
दूसरी ओर अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति और जलवायु समर्थक अल गोर ने कहा कि इस साल दुबई को ग्लोबल वॉर्मिंग पर अंतरराष्ट्रीय विमर्श का नेतृत्व देना, लोगों के भरोसे का दुरुपयोग है. उन्होंने यूएई की भूमिका पर सवाल उठाते हुए समाचार एजेंसी रॉयटर्स के साथ कुछ आंकड़े भी साझा किए. इनके मुताबिक यूएई का ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन 2021 के मुकाबले 2022 में 7.5 फीसदी बढ़ा. वहीं इस अवधि में वैश्विक तौर पर यह इजाफा 1.5 फीसदी था. रॉयटर्स के मुताबिक सम्मेलन में शिरकत कर रहे और भी कई प्रतिनिध जलवायु समझौते में सुल्तान अल-जबर की ईमानदार भूमिका पर संशय जता रहे हैं.
"डेढ़ डिग्री का लक्ष्य है जलवायु विमर्श का ध्रुवतारा"
अलायंस ऑफ स्मॉल आइलैंड स्टेट्स के प्रतिनिधियों ने सम्मेलन में इस बात पर जोर दिया कि वैश्विक तापमान वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक काबू करने के लिए जीवाश्म ईंधनों को छोड़ना होगा. यूं तो ग्लोबल वॉर्मिंग और क्लाइमेट चेंज का असर पूरी दुनिया पर हो रहा है, लेकिन निचले इलाकों में बसे छोटे और विकासशील देशों पर खतरा और भी ज्यादा है. समुद्र के बढ़ते जलस्तर से उनके अस्तित्व पर ही संकट मंडरा रहा है.
सम्मेलन में पहुंचे इन देशों के प्रतिनिधियों ने कहा है कि वे जीवाश्म ईंधन को फेज-आउट किए जाने की मांग करते रहेंगे. इसी क्रम में मार्शल आइलैंड्स की जलवायु प्रतिनिधि टीना श्टाय ने पेरिस क्लाइमेट डील में तय हुए डेढ़ डिग्री के लक्ष्य को बातचीत का "ध्रुवतारा" बताया.
जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग के ही परिदृश्य में यूएई की भूमिका पर ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) की एक रिपोर्ट भी आई है. इसके मुताबिक यूएई द्वारा बड़ी मात्रा में किया जा रहा जीवाश्म ईंधन का उत्पादन और इस्तेमाल, वायु प्रदूषण में खतरनाक इजाफा कर रहा है. इससे ग्लोबल वॉर्मिंग तो हो ही रहा है. साथ ही, वहां के नागरिकों और प्रवासी कामगारों के लिए गंभीर स्वास्थ्य दिक्कतों का भी जोखिम है.
रिपोर्ट में विश्व बैंक के ताजे आंकड़ों के हवाले से बताया गया है कि यूएई में पीएम2.5 का सालाना एक्सपोजर, इंसानों के लिए सुरक्षित मानी जाने वाली विश्व स्वास्थ्य संगठन की अनुशंसा से आठ फीसदी तक ज्यादा है. ये पीएम2.5 बेहद हानिकारक छोटे-छोटे कण होते हैं, जो फेफड़ों तक पहुंच सकते हैं और खून के बहाव में मिल सकते हैं.
एसएम/वीएस (रॉयटर्स)