वेलिंग्टन (न्यूजीलैंड), 23 मई (द कन्वर्सेशन) जलवायु परिवर्तन से सीधे तौर पर इनकार करना अब अपेक्षाकृत कठिन है। अधिकतर लोगों को लगता है कि ऐसा हो रहा है और यह गंभीर मुद्दा है। लेकिन, कुछ लोग अन्य विषयों-स्वास्थ्य सुविधाओं और अर्थव्यवस्था को ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हैं।
इसका मतलब है कि जब जलवायु परिवर्तन की बात आती है तो इसे आसानी से नकारा नहीं जा सकता चाहे इसे मानने वाले लोग हों या खारिज करने वाले। इस अध्ययन में दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन को लेकर राजनीतिक वर्ग की धीमी प्रतिक्रिया के आलोक में विषय की जटिलता को समझने का प्रयास किया गया है।
इसके लिए ब्रिटेन में अध्ययन किया गया और पाया गया कि 78 प्रतिशत प्रतिभागियों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन हो रहा है।
लेकिन, जब आठ मुद्दों (जलवायु परिर्वतन, स्वास्थ्य सुविधाएं, शिक्षा, अपराध, आव्रजन, अर्थव्यवस्था, आतंकवाद और गरीबी) के लिए रैकिंग करने को कहा गया तो 38 प्रतिशत लोगों ने जलवायु परिवर्तन को महत्वपूर्ण मुद्दा माना जबकि 15 प्रतिशत ने इसे आठ में से सातवें स्थान पर रखा।
वर्ष 2050 तक ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन घटाने के लिए बड़े देशों में सहमति बनने के बीच क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर ने 2100 तक दो डिग्री सेल्सियस घटने का अनुमान जताया है।
यह प्रगति सुखद है लेकिन इस बिंदु तक पहुंचने में कई साल लग जाएंगे और उत्सर्जन के लक्ष्यों को पूरा करने में आने वाली चुनौतियों को खारिज नहीं किया जा सकता।
दूसरे देशों में भी जलवायु परिर्वतन की रैकिंग का यही हाल रहा। यूरोपीय संघ के 27,901 नागरिकों के यूरोबैरोमीटर सर्वेक्षण के आधार पर पता चला कि ईयू के सदस्य देशों में अधिकतर आबादी जलवायु परिवर्तन को लेकर सजग है लेकिन केवल 43 प्रतिशत के साथ दुनिया के चार महत्वपूर्ण मुद्दों में इसे स्थान मिला। देशों के बीच इस मुद्दे पर कुछ अंतर रहा। जैसे कि नार्डिक देशों में इसे ऊंचा स्थान मिला और पूर्वी यूरोप में इसे उतनी अहमियत नहीं मिली।
वर्ष 2017 के न्यूजीलैंड चुनाव अध्ययन में पांच प्रतिशत से भी कम-3445 प्रतिभागियों ने कहा कि पर्यावरण सबसे महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दा है और कुछ लोगों ने खास तौर पर जलवायु परिर्वतन का उल्लेख किया।
कुछ लोग दूसरों की तुलना में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को आगे क्यों रख रहे हैं? इसमें दुनिया को लेकर लोगों का दृष्टिकोण या विचारधारा विशेष रूप से महत्वपूर्ण प्रतीत होती है।
इस अध्ययन में शामिल ब्रिटेन और न्यूजीलैंड समेत ज्यादातर देशों में जलवायु परिवर्तन को लेकर राजनीतिक विभाजन है। दक्षिण पंथी दलों के समर्थक इस मुद्दे का उतना समर्थन नहीं करते या इसे महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं मानते हैं।
मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था, अधिनायकवादी रवैया या अल्पसंख्यकों को लेकर संकीर्ण दृष्टिकोण के मुद्दे भी जलवायु परिवर्तन से जुड़े हैं।
लोकतंत्र में नेता जनता की राय के हिसाब से कदम उठाते हैं क्योंकि अगले चुनाव में उन्हें सत्ता से हटा दिए जाने का डर रहता है। लेकिन जिस हद तक वे ऐसा करते हैं वह इस बात पर निर्भर करता है कि जनता के लिए यह मुद्दा अन्य मुद्दों के मुकाबले कितना महत्वपूर्ण है।
अगर लोग चुनावी मुद्दे के तौर पर इसे नहीं मानते हैं तो ऐसी संभावना रहती है कि नेता भी इस पर कम ध्यान देंगे। इस अध्ययन में पता चला कि अधिकतर देशों के लोगों ने जलवायु परिवर्तन को शीर्ष प्राथमिकता नहीं दी और इसलिए नेताओं पर भी ऐसा दबाव नहीं पड़ा कि वे जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए कठोर कदम उठाएं।
लोगों के बीच जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को लेकर कम महत्व के कारण राजनीतिक वर्ग की सुस्त प्रतिक्रिया के अलावा कुछ अन्य कारण भी हैं। जीवाश्म ईंधन का कारोबार करने वाली कंपनियों जैसे निहित हित वाले तत्व भी कई देशों में जलवायु परिवर्तन को लेकर सख्त नीतियों को लागू करने में अड़ंगा डाल रहे हैं।
जनता की राय और जलवायु परिवर्तन को लेकर नीतियों के बीच संबंध को समझने से पर्यावरण कार्यकर्ताओं के प्रयासों पर ध्यान बढ़ सकता है। लेकिन निहित हित वालों के प्रभाव के कारण इस पर कम ध्यान दिया जाएगा।
इस अध्ययन में खुलासा हुआ कि अधिकतर लोग जलवायु परिवर्तन पर ठोस कदम चाहते हैं लेकिन अन्य मुद्दों को लेकर भी उन्हें चिंता है। पर्यावरण कार्यकर्ताओं को जलवायु के लिए तुरंत कदम उठाने को लेकर आबादी के इस हिस्से का ध्यान आकर्षित करने में मदद मिल सकती है।
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