जरुरी जानकारी | गांव लौटे श्रमिकों से जलाशयों में मत्स्यपालन कराने की सलाह दी सीआईएफए ने

नयी दिल्ली, 12 जुलाई मत्स्यपालन को बढ़ावा देने वाले एक सरकारी संस्थान का कहना है कि कोरोना वायरस महामारी के कारण वापस लौटे प्रवासी श्रमिकों को गांवों में रिक्त पड़े जलाशयों में मत्स्यपालन के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। संस्थान ने कहा कि इससे न सिर्फ उन्हें वैकल्पिक आजीविका प्राप्त होगा, बल्कि यह ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों का भी सृजन करेगा।

भुवनेश्वर में स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेशवाटर ऑफ एक्वाकल्चर (सीआईएफए) के निदेशक सरोज कुमार सवाईं ने कहा कि उत्तरी और पूर्वी राज्यों में अपार जल स्रोत मौजूद हैं। यदि इन राज्यों में मत्स्यपालन को बढ़ावा दिया जाये तो इसके कई लाभ हो सकते हैं।

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उन्होंने कहा कि यह प्रोटीन (मछली) की उपलब्धता बढ़ा सकता है, ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों का सृजन कर सकता है और खाद्य सुरक्षा के लक्ष्य को पाने में मदद कर सकता है।

सवाईं ने कहा कि भारत में 50 के दशक के अंत में पारिवारिक कामकाज (होमस्टीड गतिविधि) के रूप में मत्स्यपालन की संस्कृति शुरू हुई, लेकिन अब यह कई राज्यों में एक जीवंत वाणिज्यिक सूक्ष्म उद्यम के रूप में उभरी है।

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हाल ही में शुरू की गयी प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना में मछली पालन उद्यमों का समर्थन करने के विभिन्न उपाय हैं। ऐसे में राज्य सरकारों को ग्रामीण युवाओं, विशेष रूप से उन प्रवासी श्रमिकों के लिये विशेष पैकेज की पेशकश करनी चाहिये, जो कोविड-19 महामारी के कारण अपने पैतृक गांवों में वापस आ गये हैं।

सवाईं ने कहा, "उन्हें वैज्ञानिक तकनीकों को अपनाकर गांवों में रिक्त पड़े जलाशयों में मछली पालन करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।’’

उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक खेती के तरीकों ने आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और कुछ अन्य राज्यों के किसानों को अपने मछली उत्पादन में वृद्धि करने और अन्य राज्यों को अधिशेष मछली निर्यात करने में सक्षम बनाया है।

सीआईएफए के निदेशक ने कहा कि एकीकृत खेती और होमस्टीड खेती प्रणाली अतिरिक्त आय दे सकती हैं तथा स्थानीय स्तर पर मछली की उपलब्धता सुनिश्चित कर सकती हैं।

उन्होंने कहा, "देश के कई राज्यों के किसानों ने सीआईएफए की वैज्ञानिक तकनीकों और उन्नत मछली किस्मों को अपनाया है। यह सराहनीय सफलता है। ग्रामीण युवाओं और इच्छुक उद्यमियों को वैज्ञानिक मछली पालन सीखने के लिये आगे आना चाहिये।’’

उन्होंने कहा कि युवा, किसान और उद्यमी संस्थान से व्हाट्सएप नंबर 7790007797 पर संपर्क कर सकते हैं या विभिन्न मछलियों की तकनीकी जानकारी के बारे में पूछने के लिये ईमेल पर लिख सकते हैं।

सवाईं ने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के चौथे संस्करण का भी हवाला दिया कि भारत में हर पांच में से दो बच्चे कुपोषण के कारण मर जाते हैं। यह बिहार (48%), उत्तर प्रदेश (46%) और झारखंड (45%) जैसे राज्यों में अधिक होता है।

उन्होंने कहा, राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन की ताजा रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया गया है कि इन राज्यों में मछली की खपत बहुत कम है, खासकर ग्रामीण इलाकों में। उन्होंने कहा कि इन राज्यों में प्रति व्यक्ति कम मछली का उत्पादन होता है, जबकि यहां बहुत सारे जल संसाधन हैं, जिन्हें मछली उत्पादन के लिये उपयोग में लाया जा सकता है।

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