अमेरिका के नए राष्ट्रपति बनने जा रहे डॉनल्ड ट्रंप के आक्रामक आयात करों का असर कम करने के लिए चीन अपनी मुद्रा को कमजोर करने की सोच रहा है. हालांकि इसका असर उलटा भी हो सकता है.चीनके नेता और नीति-निर्माता देश की मुद्रा युआन को कमजोर करने पर विचार कर रहे हैं. समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट में बताया गया कि 2025 में मुद्रा का अवमूल्यन किया जा सकता है ताकि जनवरी में पद संभालने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के चीन विरोधी कदमों को झेला जा सके.
विशेषज्ञों ने कहा कि चीन का युआन को कमजोर करने पर विचार करना इस बात को दिखाता है कि चीन मानता है कि ट्रंप के चीनी उत्पादों पर टैरिफ लगाने की धमकियों से निपटने के लिए देश को ज्यादा बड़े आर्थिक राहत पैकेज की जरूरत होगी. डॉनल्ड ट्रंप कह चुके हैं कि वह चीनी उत्पादों पर 60 फीसदी तक आयात कर लगा सकते हैं.
अगर चीनी मुद्रा का मूल्य कम होता है तो इससे चीनी निर्यात सस्ता हो जाएगा और अमेरिकी टैरिफ का असर कम होगा. समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने इस मामले से परिचित तीन लोगों से बात की है. हालांकि तीनों ने अपने नाम प्रकाशित ना करने का आग्रह किया क्योंकि वे इस मुद्दे पर बोलने के लिए अधिकृत नहीं हैं. चीन ने आधिकारिक तौर पर इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं की है.
पीपल्स बैंक ऑफ चाइना और चीन सरकार की तरफ से मीडिया के सवालों के जवाब देने वाले स्टेट काउंसिल इन्फॉर्मेशन ऑफिस (पीबीओसी) ने रॉयटर्स के सवालों का कोई जवाब नहीं दिया. हालांकि पीबीओसी के प्रकाशन फाइनैंशल न्यूज ने एक लेख प्रकाशित किया जिसमें कहा गया कि युआन की नींव "मूल रूप से स्थिर' है और इस साल के आखिर तक मुद्रा के मजबूत होने की संभावना है.
मौद्रिक नीति में बड़ा बदलाव
चीनी मुद्रा का मूल्य काफी सख्ती से नियंत्रित किया जाता है और इसे दिनभर में सिर्फ दो फीसदी ऊपर या नीचे होने दिया जाता है. लेकिन सूत्रों ने रॉयटर्स को बताया कि अगले साल इस नीति में बदलाव हो सकता है. इस बारे में जानकारी रखने वाले एक अधिकारी ने बताया कि चीनी केंद्रीय बैंक ऐसा तो शायद नहीं कहेगा कि वह मुद्रा को मजबूत नहीं रखेगा लेकिन यह कह सकता है कि बाजार को युआन का मूल्य तय करने की ज्यादा इजाजत होगी.
इसी हफ्ते हुई चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो की बैठक में फैसला किया गया कि अगले साल ‘उचित रूप से ढीली' मौद्रिक नीति अपनाई जाएगी. यह 14 साल में पहली बार होगा कि चीन अपनी मौद्रिक नीति को लेकर ढिलाई दिखाएगा. पिछले सितंबर में जब पोलित ब्यूरो की बैठक हुई थी तो बयान में ‘मूल रूप से स्थिर युआन' का जिक्र किया गया था लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ. सितंबर की बैठक में भी ये शब्द नदारद थे.
युआन को लेकर नीतियों पर इस साल वित्तीय विशेषज्ञों और थिंक टैंक के बीच काफी चर्चा हुई है. चीन के एक थिंक टैंक 'चाइना फाइनैंस 40 फोरम' ने पिछले हफ्ते एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसमें कहा गया था कि चीन को अपनी मुद्रा को अमेरिकी डॉलर के हिसाब से चलाने के बजाय अन्य मुद्राओं खासकर यूरो पर केंद्रित करना चाहिए ताकि व्यापारिक तनाव के दौर में मुद्रा के मूल्य में लचीलापन रहे.
एक अन्य स्रोत ने बताया कि पीबीओसी ने युआन को 7.5 डॉलर प्रति युआन तक कमजोर हो जाने देने पर विचार किया है, जो अभी के मूल्य 7.25 डॉलर में लगभग 3.5 फीसदी की गिरावट होगी.
ट्रंप के पिछले कार्यकाल में भी चीन और अमेरिका के बीच व्यापारिक तनाव काफी बढ़ गया था. तब मार्च 2018 से मई 2020 के बीच युआन का मूल्य 12 फीसदी तक गिर गया था.
नुकसान भी हो सकता है
कमजोर युआन से दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन को अपनी 5 फीसदी की अनुमानित आर्थिक विकास दर को बनाए रखने में मदद मिल सकती है, जो घटते निर्यात के कारण फिलहाल एक बड़ी चुनौती है. मुद्रा कमजोर होने से चीनी निर्यात सस्ता हो जाएगा और उससे कमाई ज्यादा होगी. साथ ही आयात महंगा हो जाएगा और कम धन बाहर जाएगा.
नवंबर में चीन के आयात और निर्यात दोनों में भारी गिरावट देखी गई, जिससे घरेलू स्तर पर नीतिगत समर्थन की मांग बढ़ी है. एचएसबीसी बैंक के एशिया प्रमुख अर्थशास्त्री फ्रेड नोएमन कहते हैं, "सही नजरिए से देखा जाए तो यह एक नीतिगत विकल्प है. करंसी में फेरबदल एक तरीका है जो टैरिफ के असर को कम कर सकता है.”
लेकिन नोएमन कहते हैं कि इसका असर कुछ समय के लिए अच्छा होगा, पर लंबी अवधि में नहीं. उन्होंने कहा, "अगर चीन अपनी करंसी को बहुत आक्रामक रूप से कमजोर करता है तो यह आयात करों को बढ़ा सकता है. अगर चीनी मुद्रा बहुत ज्यादा कमजोर होती है तो अन्य देश भी चीन से आयात पर पाबंदियां लगाने के बारे में सोच सकते हैं. इसलिए बदले की कार्रवाई का खतरा है, जो चीन के हित में नहीं है.”
चीन से बढ़ते आयात पर भारत खुश हो या चिंतित!
सितंबर से अब तक चीनी मुद्रा करीब चार फीसदी तक गिर चुकी है क्योंकि निवेशक ट्रंप के कार्यकाल को लेकर सशंकित हैं. विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगले साल के आखिर तक चीनी मुद्रा 7.37 डॉलर प्रति युआन तक गिर सकती है. अमेरिका में भी लोग चीनी युआन पर करीबी नजर रख रहे हैं क्योंकि चीनी मुद्रा का कमजोर होना डॉलर के भी ज्यादा हित में नहीं होगा. इससे अमेरिकी टैरिफ का असर कम होगा. अमेरिका पहले भी चीन पर अपनी मुद्रा को जानबूझकर कमजोर रखने का आरोप लगाता रहा है.
वीके/सीके (रॉयटर्स, एएफफी)