नयी दिल्ली, दो दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने केंद्र और दिल्ली सरकार को प्रदूषण काबू करने के लिए 24 घंटे में सुझाव देने का निर्देश देते हुए बृहस्पतिवार को कहा कि दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में खराब होती वायु गुणवत्ता को नियंत्रित करने के लिए जमीनी स्तर पर कोई कदम नहीं उठाया जा रहा।
न्यायालय ने केंद्र और दिल्ली सरकारों से कहा, ‘‘आप हमारे कंधे पर रखकर बंदूक नहीं चला सकते।’’
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हम आपकी नौकरशाही में रचनात्मकता नहीं ला सकते।’’ साथ ही उसने आगाह किया कि यदि प्राधिकारी प्रदूषण को काबू करने में असफल रहते हैं, तो उसे असाधारण कदम उठाना पड़ेगा।
प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की पीठ ने कहा कि उसने प्रदूषण का स्तर नीचे लाने के लिए जमीनी स्तर पर गंभीर उठाए जाने की अपेक्षा की थी।
उसने कहा, ‘‘हमें लगता है कि कोई कदम नहीं उठाया जा रहा, क्योंकि प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है। हमें लगता है कि हम अपना समय व्यर्थ कर रहे हैं... हम आपको 24 घंटे दे रहे हैं। हम चाहते हैं कि आप इस समस्या पर गहन विचार करें और गंभीरता के साथ कोई समाधान निकालें।’’
सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायालय की चिंताओं से निपटने के उपायों के बारे में पीठ को अवगत कराने के लिए एक और दिन देने का अनुरोध किया ।
इस पर पीठ ने कहा, ‘‘मिस्टर मेहता, हमें आपसे गंभीर कार्रवाई की अपेक्षा है। अगर आप नहीं ले सकते हैं तो हम लेंगे, हम आपको 24 घंटे का समय दे रहे हैं।’’
शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकारें हमारे कंधे पर बंदूक रखकर बुलेट नहीं दाग सकते। इसकी बजाये समस्या के समाधान के लिये प्रभावी उपाय करने होंगे।
न्यायालय ने प्रदूषण पर काबू पाने के लिए अब तक उठाये गये कदमों पर असंतोष व्यक्त किया और उसने न्यायिक निर्देशों पर अमल सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के इलाकों में में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के आयोग के अधिकारों के बारे में जानकारी चाही।
पीठ नेकहा, ‘‘उपाय करने के बावजूद हम प्रदूषण पर नियंत्रण नहीं पा सके। आप हमें बतायें कि आयोग में कितने सदस्य हैं।
मेहता ने कहा कि आयोग में 16 सदस्य हैं। इसके बाद उन्होंने आवश्यक निर्देश प्राप्त करने के लिए कुछ समय देने का अनुरोध किया।
मेहता ने कहा, ‘‘कृप्या मुझे मंत्री से बात करने दीजिए। शीर्षस्थ अधिकारी भी समान रूप से चिंतित हैं। मुझे बात करके आने दीजिए।’’
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने एक कार्यबल गठित करने पर जोर दिया और सुझाव दिया कि उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त् न्यायाधीश आर एफ नरिमन से इसकी अध्यक्षता करने का अनुरोध किया जा सकता है।
पीठ ने कहा कि वह इस मामले में शुक्रवार को सुबह दस बजे सुनवाई करेगी।
इससे पहले, न्यायालय ने ‘रेड लाइट ऑन, गाड़ी ऑफ’ मुहिम को लेकर दिल्ली सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि यह लोकलुभावन नारा होने के अलावा और कुछ नहीं है।
पीठ ने कहा कि आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने पिछली सुनवाई में घर से काम करने, लॉकडाउन लागू करने और स्कूल एवं कॉलेज बंद करने जैसे कदम उठाने के आश्वासन दिए थे, लेकिन इसके बावजूद बच्चे स्कूल जा रहे हैं और वयस्क घर से काम कर रहे हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘बेचारे युवक बैनर पकड़े सड़क के बीच खड़े होते हैं, उनके स्वास्थ्य का ध्यान कौन रख रहा है? हमें फिर से कहना होगा कि यह लोकलुभावन नारे के अलावा और क्या है?’’
दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने हलफनामे का हवाला देते हुए कहा कि सरकार ने विभिन्न कदम उठाए हैं।
इस पर पीठ ने टिप्पणी की, ‘‘यह प्रदूषण का एक और कारण है, रोजाना इतने हलफनामे।’’
पीठ ने कहा, ‘‘हलफनामे में क्या यह बताया गया है कि कितने युवक सड़क पर खड़े हैं? प्रचार के लिए? एक युवक सड़क के बीच में बैनर लिए खड़ा है। यह क्या है? किसी को उनके स्वास्थ्य का ख्याल करना होगा।’’
शीर्ष अदालत पर्यावरण कार्यकर्ता आदित्य दुबे और कानून के छात्र अमन बांका की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस याचिका में छोटे और सीमांत किसानों को पराली हटाने के लिए नि:शुल्क मशीने उपलब्ध कराने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
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