मुंबई, नौ जून. बंबई उच्च न्यायालय ने मंगलवार को केंद्र सरकार से कहा कि वह एन-95 मास्क की कीमत तय करने की नीति पर पुनर्विचार करे ताकि कोविड-19 महामारी के दौरान यह लोगों की पहुंच में रहे और इसकी जमाखोरी नहीं हो. वरिष्ठ अधिवक्ता मिहिर देसाई ने बताया कि मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एस एस शिंदे की पीठ ने कहा कि केंद्र आवश्यक वस्तुओं के कीमतों को लेकर मौजूद कानून पर संज्ञान ले और उसके अनुरूप एन-95 मास्क की अधिकतम कीमत तय करे.
अदालत ने इससे पहले केंद्र से यह स्पष्ट करने को कहा था कि क्या एन-95 मास्क की अधिकतम कीमत तय करने की उसकी कोई योजना है. सुचेता दलाल और अंजलि दमानिया की ओर से दायर जनहित याचिका पर अदालत ने सुनवाई की. याचिका में कहा गया कि कोरोना वायरस की वजह से लागू लॉकडाउन के दौरान मास्क की कालाबाजारी को रोकने के लिए इसकी अधिकतम कीमत तय करने की जरूरत है. यह भी पढ़े | कोरोना के आन्ध्र प्रदेश में पिछले 24 घंटे में 147 मरीज पाए गए, 2 की मौत: 9 जून 2020 की बड़ी खबरें और मुख्य समाचार LIVE.
इससे पहले 19 मई को याचिका पर हुई सुनवाई के दौरान देसाई ने अदालत को बताया कि कोरोना वायरस संक्रमितों का इलाज कर रहे स्वास्थ्य कर्मियों के लिए एन-95 मास्क की कमी है और इन सुरक्षा उपकरणों की जमाखोरी और कालाबाजारी रोकना जरूरी है. हालांकि, महाराष्ट्र सरकार ने अदालत को बताया कि वह एन-95 मास्क की अधिकतम कीमत तय करने के लिए पहले ही केंद्र को लिख चुकी है.
केंद्र सरकार की ओर पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान अदालत को बताया कि अभी ऐसे मास्क की अधिकतम कीमत तय करने की कोई योजना नहीं है क्योंकि सरकार के हस्तक्षेप के बाद इन्हें पहले ही 47 प्रतिशत कम कीमत पर बेचा जा रहा है. सिंह ने कहा, ‘‘ 21 मई को राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) ने परामर्श जारी कर कहा था कि एन-95 के सभी उत्पादकों,आयातकों और आपूर्तिकर्ताओं को बाजार में बेचे जाने वाले मास्क की कीमतों में समानता लानी चाहिए ताकि वाजिब मूल्य पर इन्हें बेचा जा सके.’’उन्होंने बताया कि इस परामर्श के बाद मास्क की कीमतों में 47 प्रतिशत की कमी आई.
हालांकि, अदालत द्वारा फैसले पर पुनर्विचार करने अन्यथा उचित आदेश पारित करने की बात कहने पर अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कीमत को लेकर पुनर्विचार करने पर सहमति जताई. जनहित याचिका के मुताबिक] एन-95 मास्क को आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत जरूरी वस्तु की श्रेणी में रखा गया है. इसके बावजूद राज्य में इसकी जमाखोरी और मुनाफाखोरी हो रही है.
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