चंडीगढ़, 17 सितंबर हरियाणा विधानसभा चुनाव में बहुकोणीय मुकाबला देखने को मिल सकता है, जहां कांग्रेस के मजबूती से उभरने और सत्ता विरोधी लहर को मात देकर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ‘हैट्रिक’ बनाने की कोशिश में जुटी है।
पांच अक्टूबर को होने वाले चुनाव में 1,031 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिनमें हरियाणा के तीन मशहूर ‘लाल’- पूर्व मुख्यमंत्री बंसी लाल, देवी लाल और भजन लाल के कई रिश्तेदार शामिल हैं, जिनमें से कुछ एक-दूसरे के खिलाफ भी चुनाव लड़ रहे हैं। अन्य प्रमुख राजनीतिक परिवारों से कुछ और उम्मीदवारों के मैदान में उतरने से चुनावी जंग दिलचस्प हो गई है।
भाजपा और कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी (आप) ने भी चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारे हैं। वहीं, जननायक जनता पार्टी (जजपा) और आजाद समाज पार्टी (आसपा) तथा इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) गठबंधन में चुनावी मैदान में हैं।
मुकाबले में प्रमुख नामों में भाजपा की तरफ से कुरूक्षेत्र के लाडवा से मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और अंबाला कैंट से अनिल विज हैं। रोहतक के गढ़ी सांपला-किलोई से कांग्रेस के भूपेंद्र सिंह हुड्डा और जुलाना से विनेश फोगाट, उचाना कलां से जजपा के दुष्यंत चौटाला, ऐलनाबाद से इनेलो के अभय सिंह चौटाला और कलायत से आप के अनुराग ढांडा भी मैदान में हैं।
निर्वाचन आयोग के अनुसार, राज्य में दो करोड़ से अधिक मतदाता वोट डालने के पात्र हैं-जिनमें 1,07,75,957 पुरुष, 95,77,926 महिलाएं और 467 ट्रांसजेंडर मतदाता हैं।
तीन लाल के रिश्तेदारों में बंसीलाल के पोते और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के पूर्व कोषाध्यक्ष कांग्रेस उम्मीदवार अनिरुद्ध चौधरी भिवानी की तोशाम सीट से अपनी चचेरी बहन और पूर्व सांसद श्रुति चौधरी के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं, जिन्हें भाजपा ने मैदान में उतारा है।
डबवाली सीट से देवीलाल के पोते आदित्य देवीलाल, जो इनेलो के उम्मीदवार हैं, पूर्व उपप्रधानमंत्री के परपोते, जजपा के दिग्विजय सिंह चौटाला से मुकाबला करेंगे। हिसार के आदमपुर निर्वाचन क्षेत्र से भजनलाल के पोते भव्य बिश्नोई भाजपा से फिर से चुनाव लड़ रहे हैं।
कांग्रेस और भाजपा 89-89 सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं। हरियाणा में विधानसभा की कुल 90 सीटें हैं। कांग्रेस ने भिवानी सीट मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के लिए छोड़ी है, जबकि भाजपा ने सिरसा से अपना उम्मीदवार वापस ले लिया है और यह सीट अपनी सहयोगी हरियाणा लोकहित पार्टी (एचएलपी) के लिए छोड़ दी है।
भाजपा और कांग्रेस दोनों को कुछ सीटों पर बगावत का सामना करना पड़ा, लेकिन इनमें से कई नेताओं ने नामांकन वापसी की अंतिम तिथि से पहले ही दौड़ से नाम वापस ले लिया।
भाजपा की नजर राज्य में हैट्रिक बनाने पर है, लेकिन उसे कांग्रेस से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, जो एक दशक के बाद हरियाणा में सत्ता में वापसी के लिए सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाना चाहती है।
कांग्रेस की चुनौती का सामना करने के लिए भाजपा ने मार्च में एक साहसिक कदम उठाते हुए लोकसभा चुनाव से पहले मनोहर लाल खट्टर की जगह नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया। खट्टर अब केंद्रीय मंत्री हैं।
सैनी भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हैं, लेकिन वरिष्ठ पार्टी नेता और छह बार के विधायक अनिल विज ने यह घोषणा करके अपनी दावेदारी पेश की है कि अगर पार्टी जीतती है तो वह इस पद के लिए दावा पेश करेंगे। भाजपा 2014 में पहली बार हरियाणा में अपने दम पर सत्ता में आई थी।
वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने पर भाजपा ने दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व वाली जजपा के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई। हालांकि, मार्च में सैनी के खट्टर की जगह लेने के बाद गठबंधन समाप्त हो गया।
विधानसभा चुनावों में भाजपा के लिए कांग्रेस मुख्य चुनौती है, लेकिन अन्य दल और आम आदमी पार्टी इसे बहुकोणीय मुकाबला बना रहे हैं। इनेलो और जजपा जैसी पार्टियों के बीच जाट वोटों का बंटवारा होने की स्थिति में कांग्रेस को नुकसान हो सकता है।
दो बार मुख्यमंत्री रह चुके कांग्रेस नेता भूपेंद्र हुड्डा ने कहा है कि सीधी लड़ाई होगी। हुड्डा ने कहा, ‘‘हरियाणा में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी लड़ाई है। इनेलो, जजपा और एचएलपी जैसी सभी पार्टियां सिर्फ कांग्रेस के वोट काटने के लिए मैदान में उतरी हैं। भाजपा ने कई निर्दलीयों को भी यह जिम्मेदारी दी है। जनता को ऐसे उम्मीदवारों से सावधान रहने की जरूरत है।’’
दूसरी ओर, मुख्यमंत्री सैनी ने कहा है कि भाजपा तीसरी बार सत्ता में आएगी और लोगों को पता है कि कांग्रेस ‘‘झूठ’’ फैलाती है। भाजपा मुख्यमंत्री सैनी की ‘‘बेदाग छवि’’ का लाभ उठाना चाहती है, जिनकी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल में कुरुक्षेत्र में एक चुनावी रैली के दौरान प्रशंसा की थी।
हालांकि, राज्य में 10 साल से सत्ता में होने के कारण पार्टी को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना होगा। इसका मुकाबला करने के लिए पार्टी पिछले एक दशक में केंद्र और राज्य में अपनी सरकारों द्वारा किए गए कामों और किसानों सहित समाज के विभिन्न वर्गों के लिए लाई गई कल्याणकारी योजनाओं का उल्लेख कर रही है।
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने किसान, बेरोजगारी और कानून व्यवस्था को प्रमुख चुनावी मुद्दे बनाए हैं। कांग्रेस ने ‘‘हरियाणा मांगे हिसाब’’ अभियान भी चलाया और इन मुद्दों को लेकर भाजपा पर हमला बोला।
लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस का मनोबल बढ़ा क्योंकि पार्टी ने हरियाणा में 10 लोकसभा सीटों में से पांच पर जीत दर्ज की। हालांकि, भाजपा नेता कांग्रेस के भीतर अंदरूनी कलह को भी हवा दे रहे हैं। जजपा और इनेलो के लिए यह एक कठिन चुनौती है, क्योंकि दोनों ही दलों को 2024 के लोकसभा चुनावों में करारी हार का सामना करना पड़ा।
पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी इनेलो का निवर्तमान विधानसभा में सिर्फ एक सदस्य था। वहीं, आप नेताओं को उम्मीद है कि हरियाणा की जनता इस बार उन्हें मौका देगी।
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