नयी दिल्ली, 13 अगस्त भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 17 अगस्त को अपने राष्ट्रीय पदाधिकारियों की एक बैठक बुलाई है, जिसमें पार्टी के सदस्यता अभियान को अंतिम रूप दिया जाएगा। नए पार्टी अध्यक्ष के चुनाव से पहले यह अभियान पूरा किया जाएगा।
इस बैठक में भाजपा के राष्ट्रीय पदाधिकारियों के अलावा विभिन्न राज्यों में पार्टी संगठन के प्रभारी महासचिव और प्रदेशों के अध्यक्ष भी शामिल होंगे।
लंबे समय से चर्चा है कि अध्यक्ष के औपचारिक चुनाव पहले भाजपा एक ‘कार्यकारी अध्यक्ष’ नियुक्त कर सकती है क्योंकि चुनाव के लिए सदस्यता अभियान छह महीने तक खिंच सकता है।
मौजूदा अध्यक्ष जे पी नड्डा के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार में कैबिनेट मंत्री के तौर पर शामिल होने के बाद पार्टी की 'एक व्यक्ति एक पद' की परंपरा के तहत उनकी जगह किसी और को लाए जाने की संभावना है।
साल 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद नड्डा को केंद्रीय मंत्रिपरिषद में शामिल नहीं किया गया था। इससे स्पष्ट संकेत मिल गया था कि उन्हें तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह के स्थान पर नयी जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। हालांकि, इस बार नए अध्यक्ष को लेकर अभी कुछ स्पष्टता नहीं है।
नड्डा को पहली बार जून 2019 में कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया था, जिसके बाद उन्हें औपचारिक रूप से जनवरी 2020 में अध्यक्ष चुना गया था। भाजपा के अध्यक्ष पारंपरिक रूप से आम सहमति से चुने जाते रहे हैं।
भाजपा जहां एक तरफ संगठनात्मक चुनावों की तैयारी में है, जिसमें बूथों, मंडलों, जिलों और राज्यों में नई समितियों के गठन को शामिल किया जाना शामिल है, वहीं दूसरी ओर पार्टी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के साथ व्यापक विचार-विमर्श में भी जुटी हुई है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के अलावा शाह और नड्डा सहित भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने रविवार को आरएसएस के पदाधिकारियों से मुलाकात की। आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले सहित कुछ अन्य वरिष्ठ पदाधिकारी इस बैठक में मौजूद थे।
सूत्रों ने बताया कि सिंह के आवास पर हुई बैठक में बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति और उनकी मदद के लिए उठाए जा सकने वाले कदमों पर चर्चा की गई। उनके मुताबिक, बैठक में केरल में आरएसएस की होने वाली समन्वय बैठक और अन्य राजनीतिक मुद्दों पर भी चर्चा की गई।
लोकसभा चुनाव में पार्टी के अपेक्षाकृत खराब प्रदर्शन के बाद भाजपा और आरएसएस के पदाधिकारी कई राज्यों में बातचीत कर रहे हैं क्योंकि पार्टी के पास लोकसभा में अपने बूते बहुमत नहीं है।
भाजपा अध्यक्ष के चयन में आरएसएस की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती रही है।
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