नयी दिल्ली, छह अक्टूबर उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि वह 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकीस बानो से सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों की समय पूर्व रिहाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर नौ अक्टूबर को दलीलें सुनेगा।
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने बिलकीस बानो सहित याचिकाकर्ताओं के वकील से अपने संक्षिप्त लिखित प्रत्युत्तर दलीलें दाखिल करने को कहा।
मामले में पेश हुए अधिवक्ताओं में से एक ने कहा कि दोषियों की ओर से दलीलें पूरी हो चुकी हैं और अब मामले में याचिकाकर्ताओं के वकील की ओर से जवाबी दलीलों को सुना जायेगा।
पीठ ने वकील से कहा, ‘‘हम आपके कहने पर पूरे मामले को फिर से नहीं खोलना चाहते।’’ पीठ ने कहा कि बेहतर होगा कि याचिकाकर्ता वकील अपनी प्रत्युत्तर दलीलों को दाखिल करें।
पीठ ने कहा, ‘‘मामले की सुनवाई नौ अक्टूबर को अपराह्न दो बजे होगी। इस बीच, याचिकाकर्ताओं के वकील अपनी संक्षिप्त लिखित दलीलें दाखिल करें।’’
मामले पर 20 सितंबर को सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने पूछा था कि क्या दोषियों को माफी मांगने का मौलिक अधिकार है।
पीठ ने 11 दोषियों में से एक की ओर से पेश वकील से पूछा था, ‘‘क्या माफी मांगने का अधिकार (दोषियों का) मौलिक अधिकार है। क्या कोई याचिका संविधान के अनुच्छेद 32 (जो नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होने पर सीधे उच्चतम न्यायालय पहुंचने के अधिकार से संबंधित है) के तहत दायर की जाएगी।’’
वकील ने जवाब दिया था, ‘‘नहीं, यह दोषियों का मौलिक अधिकार नहीं है।’’
उन्होंने कहा था कि पीड़ित और अन्य को भी अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर करके सीधे शीर्ष अदालत में पहुंचने का अधिकार नहीं है क्योंकि उनके किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं किया गया है।
उच्चतम न्यायालय ने 17 अगस्त को कहा था कि राज्य सरकारों को दोषियों को छूट देने में चयनात्मक नहीं होना चाहिए और प्रत्येक कैदी को सुधार एवं समाज के साथ फिर से जुड़ने का अवसर दिया जाना चाहिए।
वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के दौरान जब बिलकीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया, तब वह 21 साल की थीं और पांच महीने की गर्भवती थीं। उसकी तीन साल की बेटी दंगों में मारे गए परिवार के सात सदस्यों में से एक थी।
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