नयी दिल्ली, 30 जून उच्चतम न्यायालय तेलुगु कवि और भीमा कोरेगांव-एल्गर परिषद मामले में आरोपी पी वरवर राव द्वारा दायर याचिका पर 11 जुलाई को सुनवाई करेगा। याचिका में बंबई उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें स्थायी चिकित्सा जमानत के उनके आवेदन को खारिज कर दिया गया था।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की अवकाशकालीन पीठ से वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने कहा कि राव 83 वर्षीय व्यक्ति हैं और विभिन्न बीमारियों से पीड़ित हैं।
ग्रोवर ने तत्काल सुनवाई के लिए याचिका का उल्लेख करते हुए पीठ से कहा, "मैं बस इतना कह रहा हूं कि अदालत के फिर से खुलने पर याचिका को सूचीबद्ध किया जाए।"
उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता को चिकित्सा जमानत मिली थी और उन्हें जुलाई में आत्मसमर्पण करना है।
पीठ ने बृहस्पतिवार को कहा कि वह 11 जुलाई को याचिका पर सुनवाई करेगी।
अवकाशकालीन पीठ ने आदेश दिया, "याचिकाकर्ता की ओर से मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने का आग्रह करने वाले विद्वान वरिष्ठ अधिवक्ता द्वारा मौखिक रूप से उल्लेख किए जाने पर, रजिस्ट्री को इस मामले को एक उपयुक्त पीठ के समक्ष 11 जुलाई, 2022 को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया जाता है।"
राव ने 13 अप्रैल के बंबई उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अधिवक्ता नुपुर कुमार के माध्यम से दायर अपनी अपील में कहा, ‘‘याचिकाकर्ता, 83 वर्षीय प्रसिद्ध तेलुगु कवि और वक्ता हैं, जो विचाराधीन कैदी के रूप में दो साल से अधिक समय तक जेल में रहे हैं। वर्तमान में बंबई उच्च न्यायालय द्वारा चिकित्सा आधार पर दी गई जमानत पर हैं...कोई भी आगे की कैद उनके खराब होते स्वास्थ्य और बढ़ती उम्र के चलते उनके लिए मौत की घंटी होगी।’’
उन्हें 28 अगस्त, 2018 को हैदराबाद स्थित उनके घर से गिरफ्तार किया गया था और वह भीमा कोरेगांव मामले में विचाराधीन कैदी हैं। उनके खिलाफ पुणे पुलिस ने आठ जनवरी, 2018 को विश्रामबाग थाने में भादंसं की विभिन्न धाराओं और गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के प्रावधानों तहत प्राथमिकी दर्ज की थी।
मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है, जिसके बारे में पुलिस ने दावा किया था कि इसकी वजह से अगले दिन कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा हुई।
पुणे पुलिस ने यह भी दावा किया था कि सम्मेलन कथित तौर पर माओवादियों से संबंध रखने वाले लोगों द्वारा आयोजित किया गया था।
बाद में, राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने मामले की जांच अपने हाथ में ले ली थी।
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