देश की खबरें | बीसीआई ने उच्चतम न्यायालय की पीठों को मामले सौंपने की सीजेआई की शक्ति का समर्थन किया

नयी दिल्ली, 13 अगस्त भारतीय विधिज्ञ परिषद (बीसीआई) ने ‘मास्टर ऑफ रोस्टर’ के तौर पर उच्चतम न्यायालय की विभिन्न पीठों को मामले आवंटित करने की भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) की शक्ति को ‘सुस्थापित स्वस्थ परम्परा’ करार दिया है।

वकीलों के शीर्ष निकाय ने वरिष्ठ अधिवक्ता एवं ‘सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन’ (एससीबीए) के पूर्व अध्यक्ष दुष्यंत दवे के इस बयान से असहमति जताई कि सीजेआई के पास मामलों को उच्चतम न्यायालय की पीठों को सौंपने की कोई शक्ति नहीं होनी चाहिए और इसके (मामलों के) आवंटन के लिए पूरी तरह से स्वचालित प्रणाली अपनायी जानी चाहिए।

बीसीआई के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ अधिवक्ता मनन कुमार मिश्रा ने एक बयान में कहा, ‘‘दुष्यंत दवे के हालिया बयान के संबंध में भारतीय विधिज्ञ परिषद का मानना है कि केवल सीजेआई ही संबंधित पीठों को मामले आवंटित करने के लिए अधिकृत हैं। यह सुस्थापित कानून है और सुस्थापित स्वस्थ परम्परा भी। इस पुरातन परम्परा में कोई परिवर्तन नहीं किया जाना चाहिए।’’

हाल ही में दवे ने कहा था कि सीजेआई के पास मामलों को सौंपने और सूचीबद्ध करने की शक्ति नहीं होनी चाहिए तथा शीर्ष अदालत में आवंटन के लिए पूरी तरह से स्वचालित प्रणाली स्थापित की जानी चाहिए। उन्होंने युवा वकीलों को अपने मामलों को शीर्ष अदालत में सूचीबद्ध कराने में आने वाली समस्याओं का जिक्र किया था।

बीसीआई ने मामलों के आवंटन को लेकर सीजेआई की शक्ति के मुद्दे पर दवे की टिप्पणी से असहमति जताई। हालांकि, इसने शीर्ष अदालत में मामलों को सूचीबद्ध कराने में वकीलों को होने वाली परेशानियों से आंशिक सहमति भी जतायी।

उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि जहां तक मामलों को सूचीबद्ध करने में वकीलों को होने वाली परेशानियों और विलंब के संबंध में दवे की शिकायत है, भारतीय विधिज्ञ परिषद दवे के विचारों का पूर्ण समर्थन करती है।’’

बीसीआई ने कहा, "भारत के मुख्य न्यायाधीश और न्यायाधीशों को इस मामले की गंभीरता पर विचार करना चाहिए और अधिवक्ताओं और वादियों को बिना किसी कठिनाई के तत्काल मामलों को सूचीबद्ध करने के लिए त्वरित उपाय करना चाहिए। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण और ज्वलंत मुद्दा है, जिसे उच्चतम न्यायालय और देश के कुछ उच्च न्यायालयों द्वारा समाधान किये जाने की आवश्यकता है।’’

मिश्रा ने कहा कि बीसीआई मामलों को सूचीबद्ध करने के मुद्दे पर आम वकीलों की शिकायतों को उच्चतम न्यायालय तक पहुंचाने का प्रस्ताव करती है।

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