देश की खबरें | ‘बांकीपुर जेल, पटना कलेक्ट्रेट को संरक्षित किया जाना चाहिए था’

पटना, 14 अगस्त स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर कई विरासत प्रेमियों ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानियों को कैद करने के लिए इस्तेमाल की गई ऐतिहासिक बांकीपुर सेंट्रल जेल, 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के गवाह रहे पटना कलेक्ट्रेट और शहर में 'आज़ादी' के लिए भारत के संघर्ष से जुड़े अन्य स्थलों को संरक्षित किया जाना चाहिए था।

ऐसे में जब भारत सोमवार को स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मनाने के लिए तैयार है, आम लोगों और विशेषज्ञों सहित कई लोगों ने रविवार को कहा कि 19वीं सदी के बांकीपुर केंद्रीय जेल, 1885 में निर्मित अंजुमन इस्लामिया हॉल, सदियों पुराना कलेक्ट्रेट, बिहार की राजधानी में अन्य धरोहर भवनों, जिन्हें पिछले एक दशक में ध्वस्त कर दिया गया है, उन्हें संरक्षित किया जाना चाहिये था।

पटना जंक्शन के पास फ्रेज़र रोड पर स्थित ऐतिहासिक जेल को 2010 में विशाल बुद्ध स्मृति पार्क के लिए रास्ता बनाने के वास्ते तोड़ दिया गया था। कुछ वर्गों के विरोध के बीच इसका एक छोटा सा हिस्सा पार्क के हरे-भरे परिवेश में संरक्षित किया गया था। इसके पास स्थापित एक पट्टिका में लिखा है, ‘‘बांकीपुर जेल का अवशेष, जिसका पहला उल्लेख अभिलेख रिकॉर्ड में 1895 में मिलता है। कई स्वतंत्रता सेनानियों को यहां कैद किया गया था।’’

महात्मा गांधी के आह्वान पर अगस्त 1942 में शुरू हुए भारत छोड़ो आंदोलन सहित कई राष्ट्रवादी नेताओं और स्वतंत्रता सेनानियों को समय-समय पर इसमें कैद किया गया था। कांग्रेस नेता राजेंद्र प्रसाद को भी तत्कालीन अंग्रेज सरकार ने इसी जेल में रखा था। प्रसाद बाद में 1950 में भारत के पहले राष्ट्रपति बने।

उनकी पोती तारा सिन्हा ने उनकी जीवनी में बांकीपुर जेल में उनके जीवन पर एक अध्याय शामिल किया है। इसमें कहा गया है कि प्रसाद ‘‘9 अगस्त, 1942 से 5 जून, 1945" तक वहां कैद रहे थे।

दिल्ली से पटना तक के विरासत प्रेमियों ने कहा कि "स्वतंत्रता संग्राम की इन गाथाओं को जीवित रखने के लिए’’ विरासत का संरक्षण आवश्यक है और जेल या इससे जुड़े अन्य ढांचे को ध्वस्त करना एक "गंभीर गलती" थी।

कुछ ने सुझाव दिया कि पोर्ट ब्लेयर में ऐतिहासिक सेलुलर जेल की तर्ज पर बांकीपुर सेंट्रल जेल को एक पर्यटक आकर्षण में बदला जा सकता था।

पटना निवासी और शोधकर्ता पुष्कर राज ने कहा कि वह पिछले 10-12 वर्षों में शहर में हुई विरासत इमारतों की ‘‘तोड़फोड़’’ से व्यथित महसूस करते हैं। उन्होंने कहा कि इसमें सबसे नया नाम सदियों पुराने पटना कलेक्ट्रेट का जुड़ा है।

उन्होंने कहा, ‘‘कलेक्ट्रेट की इमारतें यहां डच व्यापार और ब्रिटिश शासन की गवाह रही हैं। इसकी दीवारों ने सचमुच उन कहानियों को सुना है और पिछली कुछ शताब्दियों में इतना इतिहास देखा है। इन इमारतों को संरक्षित किया जाना चाहिए था।’’

बिहार में जन्मे मोहम्मद उमर अशरफ ने कहा, ‘‘अंजुमन इस्लामिया हॉल एक ऐतिहासिक इमारत थी, जिसे उस वक्त बनाया गया था, जब आधुनिक बिहार प्रांत अस्तित्व में भी नहीं आया था। स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी कई दिग्गज हस्तियों ने हॉल का दौरा किया और वहां लोगों को संबोधित किया और कई महत्वपूर्ण सम्मेलन और अन्य कार्यक्रम उसमें हुए। यह एक अमूल्य विरासत थी। नयी इमारत उसके नाम को तो आगे बढ़ाएगी, लेकिन इसकी विरासत को नहीं।’’

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