ढाका, 18 दिसंबर बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के एक सदस्य द्वारा देश की आजादी में भारत को ‘एक सहयोगी से अधिक कुछ नहीं’ करार दिए जाने के दो दिन बाद बुधवार को विदेश मंत्रालय ने भारत के पूर्व विदेश सचिव जे एन दीक्षित की एक पुस्तक का हवाला देते हुए इसी तरह की टिप्पणी की।
विदेश मंत्रालय ने फेसबुक पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘हम 1971 में अपनी शानदार जीत का जश्न मनाते हैं; हम सच्चाई का जश्न मनाते हैं।’’
भारत 16 दिसंबर को विजय दिवस के रूप में मनाता है, जब 90,000 से अधिक पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का निर्माण हुआ।
बांग्लादेश भी इसे विजय दिवस के रूप में मनाता है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के विधि सलाहकार आसिफ नजरूल ने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विजय दिवस संबंधी पोस्ट की आलोचना करते हुए कहा था, ‘‘भारत इस जीत में केवल एक सहयोगी था, इससे अधिक कुछ नहीं।’’
सरकारी समाचार एजेंसी बांग्लादेश संगबाद संगठन (बीएसएस) ने बुधवार को देश के विदेश मंत्रालय के 'इतिहास के तथ्य' शीर्षक वाले पोस्ट का हवाला दिया, जिसमें दोहराया गया था कि ‘‘बांग्लादेश एक लंबे संघर्ष और नौ महीने लंबे नृशंस युद्ध के बाद 16 दिसंबर, 1971 को एक संप्रभु, स्वतंत्र देश के रूप में उभरा।’’
बीएसएस ने कहा कि मंत्रालय के फेसबुक पोस्ट में दीक्षित की पुस्तक ’लिबरेशन एंड बियॉन्ड: इंडो-बांग्लादेश रिलेशंस’ का हवाला दिया गया है, जिसमें कहा गया है कि आत्मसमर्पण समारोह में ‘एक बड़ी राजनीतिक गलती’ की गई थी।
बीएसएस के अनुसार दीक्षित ने सुझाव दिया था कि संयुक्त कमान में बांग्लादेश की ओर से कमांडर जनरल एम ए जी उस्मानी को समारोह में होना चाहिए था और हस्ताक्षर करना चाहिए था।
विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने दावा किया कि उस्मानी के हेलीकॉप्टर ने उड़ान तो भरी, लेकिन आत्मसमर्पण के कार्यक्रम के लिए समय पर ढाका नहीं पहुंचा। उन्होंने कहा कि उनकी उपस्थिति शुरुआती दिनों में भारत और बांग्लादेश के संबंधों के बीच कई राजनीतिक गलतफहमियों से बचने में मदद कर सकती थी।
विदेश मंत्रालय के पोस्ट में आखिर में कहा गया, ‘‘हम 1971 में अपनी शानदार जीत का जश्न मनाते हैं; हम सत्य का जश्न मनाते हैं।’’
सोमवार को, नजरुल की टिप्पणी को मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस के कार्यालय द्वारा फिर से पोस्ट किया गया।
साल 1971 में ऐतिहासिक जीत में भारतीय सैनिकों की भूमिका के लिए उन्हें श्रद्धांजलि देने वाले मोदी के पोस्ट का स्क्रीनशॉट साझा करते हुए, नजरुल ने सोमवार को बांग्ला में फेसबुक पर लिखा, ‘‘मैं कड़ा विरोध करता हूं। 16 दिसंबर, 1971, बांग्लादेश का विजय दिवस है। भारत इस जीत में केवल एक सहयोगी था, इससे अधिक कुछ नहीं।’’
‘द डेली स्टार’ अखबार ने मंगलवार को लिखा कि यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल आलम ने नजरुल की पोस्ट को साझा किया।
‘एंटी-डिस्क्रिमिनेशन स्टूडेंट मूवमेंट’ के संयोजक हसनत अब्दुल्ला ने भी मोदी की पोस्ट की आलोचना की।
अब्दुल्ला ने फेसबुक पर लिखा कि यह बांग्लादेश का मुक्ति संग्राम था और यह पाकिस्तान के खिलाफ देश की आजादी के लिए था। उन्होंने कहा कि मोदी ने दावा किया है कि यह केवल भारत का युद्ध और उनकी उपलब्धि थी, इस तरह उनके कथन में बांग्लादेश के अस्तित्व की अनदेखी की गई है। उन्होंने लिखा, ‘‘जब भारत इस स्वतंत्रता को अपनी उपलब्धि मानता है, तो मैं इसे हमारी स्वतंत्रता, संप्रभुता और एकता के लिए खतरा मानता हूं। भारत द्वारा दिए गए इस खतरे के खिलाफ लड़ना हमारे लिए जरूरी है। हमें इस लड़ाई को जारी रखना होगा।’’
मोदी ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा था, ‘‘आज विजय दिवस पर, हम उन बहादुर सैनिकों के साहस और बलिदान के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं जिन्होंने 1971 में भारत की ऐतिहासिक जीत में योगदान दिया। उनके निस्वार्थ समर्पण और अटूट संकल्प ने हमारे राष्ट्र की रक्षा की और हमें गौरव दिलाया।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यह दिन उनकी असाधारण वीरता और उनकी अडिग भावना को श्रद्धांजलि देने के लिए है। उनका बलिदान हमेशा पीढ़ियों को प्रेरित करेगा और हमारे राष्ट्र के इतिहास में गहराई से समाया रहेगा।’’
मुख्य सलाहकार यूनुस के नेतृत्व में सोमवार को बांग्लादेश का 54वां विजय दिवस मनाया गया। उनके भाषण में संस्थापक नेता मुजीबुर रहमान का कोई उल्लेख नहीं किया गया, जबकि अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना के प्रशासन को ‘दुनिया की सबसे खराब निरंकुश सरकार’ कहा गया।
मुजीबुर रहमान की बेटी हसीना को 5 अगस्त को उनकी अवामी लीग सरकार के खिलाफ छात्रों के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन के बाद सत्ता से बेदखल कर दिया गया था।
‘विजय दिवस’ पर राष्ट्र के नाम यूनुस के संबोधन में भारत की भूमिका का भी कोई उल्लेख नहीं था।
भारत ने उस समय पाकिस्तानी सेना के खिलाफ लड़ाई में बंगाली गुरिल्लाओं का भी समर्थन किया था, जब पश्चिमी पाकिस्तान के नेतृत्व ने 1970 के चुनाव में मुजीबुर रहमान की अवामी लीग की जीत को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था।
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