बेंगलुरु, 18 नवंबर : प्रमुख सेनाध्यक्ष (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने शनिवार को कहा कि भारतीय सशस्त्र बलों को राजनीतिक घटनक्रम और उन्नत तकनीकी के कारण तेजी से बदले एक ऐसे परिवेश में काम करना होगा जिसके लिए संगठनात्मक ढांचे के साथ-साथ मानसिकता में में भी लचीलेपन की जरूरत होगी. ‘सिनर्जिया कॉन्क्लेव 2023’ में वैश्विक भविष्य की सुरक्षा चुनौतियों पर वर्चुअल माध्यम से भाषण देते हुए उन्होंने कहा कि आज अपनाया गया रास्ता तय करेगा कि भारत 2047 में कहां होगा.
चौहान ने कहा कि भारतीय सशस्त्र बलों को ऐसे माहौल में काम करना होगा जो भू-राजनीतिक घटनक्रम और प्रौद्योगिकी में प्रगति के कारण तेजी से बदला है. एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए चौहान ने कहा, ‘‘हमें इस परिवर्तनकारी पथ पर आगे या सबके बराबर रहने के लिए अन्य देशों के साथ सैन्य मामलों में एक संपूर्ण क्रांति (आरएमए) लाने में सक्षम होना चाहिए.’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमारा संरचनात्मक ढांचा विविध डामेन में अभियान चलाने में सक्षम होना चाहिए.
संपर्क, गैर संपर्क, गतिज और गैर-गतिज विकल्पों के बीच सही संतुलन के जरिये एकीकृत त्वरित प्रतिक्रिया के लिए उनका व्यवस्थित होना चाहिए. उन्हें विशिष्ट, उभरती और विनाशकारी प्रौद्योगिकी को आत्मसात करने और इसका उपयोग करने के प्रति पर्याप्त रूप से लचीला और अनुकूल होना चाहिए.’’ चौहान ने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए राष्ट्रों के संघर्ष में शामिल होने की बढ़ती प्रवृत्ति का भी जिक्र किया.
उन्होंने अफगानिस्तान, इराक और यूक्रेन का उदाहरण देते हुए प्रमुख शक्तियों द्वारा शुरू किए गए संघर्षों से जुड़ी चुनौतियों की ओर इशारा किया, जहां स्पष्ट तौर पर अंतिम चरण या निकास रणनीति का अक्सर अभाव रहता है. उन्होंने कहा, ‘‘मेरी समझ से अमेरिका एक साथ हिंद प्रशांत, यूरोप और एशिया की प्रतिबद्धताओं को पूरा नहीं कर सकता है। तदनुसार इसने अपना ध्यान स्थानांतरित कर दिया है। मध्य पूर्व और अफगानिस्तान में जिसे वे आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक युद्ध के नाम से जानते हैं, उसे हिंद-प्रशांत में वे ‘ग्रे जोन’ संघर्ष कह रहे हैं.’’
वैश्विक रुझानों पर चर्चा करते हुए चौहान ने कहा कि वैश्विक भू-राजनीति और प्रौद्योगिकी में परिवर्तन की जारी अभूतपूर्व प्रकृति भविष्य की सुरक्षा चुनौतियों को बढ़ाएगी. उन्होंने भू-राजनीतिक घटनाक्रम और तकनीक के अंतर्संबंध पर प्रकाश डाला और कहा कि दोनों ही राष्ट्रीय और व्यक्तिगत स्तर पर व्यवहारगत परिवर्तन को प्रेरित करते हैं.
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