मुंबई, 26 सितंबर बंबई उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों के खिलाफ हाल ही में संशोधित सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) नियम “दिशानिर्देशों और नियंत्रण” के अभाव में एक सरकारी अधिकारियों को “निरंकुश शक्ति” देते हैं।
केंद्र सरकार ने अदालत को आश्वासन दिया कि नए नियम स्वतंत्र अभिव्यक्ति या सरकार को निशाना बनाने वाले हास्य और व्यंग्य पर अंकुश लगाने के लिए नहीं हैं, और किसी को भी प्रधानमंत्री की आलोचना करने से नहीं रोकते हैं।
न्यायमूर्ति गौतम पटेल और न्यायमूर्ति नीला गोखले की खंडपीठ स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन्स द्वारा नियमों के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में उन्होंने नियमों को मनमाना और असंवैधानिक बताया और दावा किया कि उनका नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर भयानक प्रभाव पड़ेगा।
अदालत ने मंगलवार को यह भी जानना चाहा कि जब प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) पहले से ही सोशल मीडिया पर तथ्य-जांच कर रहा है तो एक अलग तथ्य जांच इकाई (एफसीयू) के लिए संशोधन और प्रावधान की क्या आवश्यकता है।
न्यायमूर्ति पटेल ने कहा, “आपके (सरकार) पास एक पीआईबी है जिसकी सोशल मीडिया पर मौजूदगी है। फिर इस संशोधन की आवश्यकता क्यों पड़ी और एफसीयू की स्थापना क्यों की गई? मुझे लगता है कि यह संशोधन कुछ और करना चाहता है।”
केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पीआईबी शक्तिहीन है और वह इस बिंदु पर बुधवार को बहस करेंगे।
उन्होंने कहा, इसका उद्देश्य सरकार या यहां तक कि प्रधानमंत्री के खिलाफ स्वतंत्र भाषण, राय, आलोचना या व्यंग्य पर अंकुश लगाना नहीं था, बल्कि एक ऐसे माध्यम से निपटने के लिए एक संतुलन तंत्र बनाना था जो “बेकाबू और अनियंत्रित” था।
मेहता ने कहा, “आईटी नियम स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर अंकुश लगाने से बिल्कुल भी संबंधित नहीं हैं। सरकार किसी भी प्रकार की राय, आलोचना या तुलनात्मक विश्लेषण को प्रतिबंधित या रोकने की कोशिश नहीं कर रही है...वास्तव में हम उनका स्वागत करते हैं, उन्हें प्रोत्साहित करते हैं और उनसे सीखते हैं।”
उन्होंने कहा, “सरकार स्वतंत्र भाषण, राय, हास्य या व्यंग्य के पीछे नहीं जा रही है। यह आईटी नियमों के दायरे में नहीं है। नियम केवल एक प्रणाली स्थापित करते हैं। एक संतुलन तंत्र प्रदान किया गया है।”
पीठ ने हालांकि टिप्पणी की कि नियम “अत्यधिक व्यापक” हैं और बिना किसी दिशानिर्देश के हैं।
न्यायमूर्ति पटेल ने कहा, “सच्चाई क्या है इस पर बिना किसी जांच और संतुलन के सरकार एकमात्र मध्यस्थ है। मूलतः, फैक्ट चेकर (तथ्य की जांच करने वाला) की जांच कौन करेगा? हमें अंतिम मध्यस्थ के रूप में तथ्य जांच इकाई (नियमों के तहत स्थापित की जाने वाली) पर भरोसा करना होगा।”
सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी।
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