लखनऊ, 22 नवंबर समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष एवं उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके चाचा प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के प्रमुख शिवपाल सिंह यादव ने रविवार को सैफई में एक मंच पर आकर लोगों को संबोधित किया तो छह वर्ष में यह चौथा मौका था, जब दोनों ने आपसी मतभेद भुलाकर एक-दूसरे का सहयोग करने की घोषणा की। हालांकि, दोनों के समर्थक इस नयी सुलह को लेकर अभी संशय में हैं।
अखिलेश के मुख्यमंत्री रहते हुए 2016 में पहली बार दोनों के बीच मतभेद सार्वजनिक हुए थे और तब से दोनों के रिश्ते कभी गरम तो कभी नरम रहे हैं। इस बार सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद मैनपुरी संसदीय क्षेत्र में हो रहे उपचुनाव ने चाचा-भतीजा को मनमुटाव दूर करने का मौका फिर से उपलब्ध कराया है।
मैनपुरी में सपा ने अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव को उम्मीदवार बनाया है, जबकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने उनके खिलाफ कभी शिवपाल के करीबी रहे रघुराज शाक्य को मैदान में उतारा है।
गौरतलब है कि अक्टूबर 2016 में सपा की सरकार का नेतृत्व कर रहे तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शिवपाल सिंह यादव, अंबिका चौधरी, नारद राय, शादाब फातिमा, ओमप्रकाश सिंह और गायत्री प्रजापति को अपने मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया था।
उस समय मुलायम सिंह यादव ने दोनों के बीच सुलह कराई थी और 2017 के चुनाव में शिवपाल ने सपा के ही चुनाव चिह्न पर जसवंत नगर से चुनाव जीता था। पर यह समझौता ज्यादा दिन नहीं चला और शिवपाल ने 2018 में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी-लोहिया (प्रसपा) का गठन कर लिया।
शिवपाल के अलग पार्टी बनाने के बाद सपा ने उनकी विधानसभा सदस्यता समाप्त करने की मांग वाली याचिका भी दाखिल की। बाद में मार्च 2020 में सपा ने विधानसभा में एक अर्जी देकर शिवपाल के खिलाफ दल-बदल कानून के तहत कार्रवाई करने की मांग वाली याचिका वापस करने की मांग की।
उत्तर प्रदेश विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने सपा की याचिका वापस कर दी, जिससे शिवपाल की विधानसभा सदस्यता बच गई।
शिवपाल ने बदले में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के नेतृत्व के प्रति आभार जताया। पर कुछ ही दिनों बाद दोनों के रिश्तों में फिर से तल्खी दिखाई देने लगी। लोकसभा चुनाव में शिवपाल ने सपा से अलग चुनाव लड़ा।
उत्तर प्रदेश में चुनावों के पहले तीसरी बार मुलायम की पहल पर अखिलेश और शिवपाल एक बार फिर साथ आए। शिवपाल ने सपा के चुनाव चिह्न पर ही जसवंत नगर से विधानसभा चुनाव लड़ा और जीते।
चुनाव के दौरान वह लगातार अखिलेश यादव के नेतृत्व की सराहना करते रहे, लेकिन चुनाव बाद सपा विधायक दल की पहली बैठक में जब शिवपाल को आमंत्रित नहीं किया गया तो उन्होंने एक बार फिर भतीजे के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
अब छह वर्ष के भीतर चौथी बार अखिलेश और शिवपाल नजदीक आए हैं तो दोनों के समर्थक नयी सुलह को लेकर असमंजस में हैं।
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक टिप्पणीकार राजीव रंजन सिंह ने ‘पीटीआई-’ से कहा, “चाचा-भतीजे के रिश्ते की मजबूती उपचुनाव के परिणाम पर निर्भर करेगी। अगर डिंपल यादव चुनाव जीत गईं तो संबंध टिकाऊ हो सकते हैं, लेकिन अगर उनकी हार हुई तो विधानसभा चुनाव की तरह अखिलेश फिर अपने चाचा से दूरी बना लेंगे।”
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