Maharashtra Politics: पिछले चार साल में तीसरी बार महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री बने अजित पवार
अजित पहले सुधाकर राव नाइक सरकार में कृषि और बिजली राज्य मंत्री बने थे और बाद में 1999 में कैबिनेट मंत्री नियुक्त हुए थे. अजित के करीबी सहयोगियों और परिवार के सदस्यों को अपनी चीनी सहकारी इकाइयों को लेकर प्रवर्तन निदेशालय और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) की जांच का सामना करना पड़ रहा है.
मुंबई: राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता अजित पवार एक बड़े राजनीतिक घटनाक्रम के तहत फिर से महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री बन गए हैं. वह पिछले चार वर्ष में तीसरी बार राज्य के उपमुख्यमंत्री पद पर काबिज हुए हैं. अजित वर्ष 2019 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार में कुछ घंटों के लिए उपमुख्यमंत्री रहे थे. उन्होंने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली राज्य की पिछली महा विकास आघाडी (एमवीए) सरकार में भी उपमुख्यमंत्री पद संभाला था. महाराष्ट्र में एमवीए सरकार नवंबर 2019 से जून 2022 तक सत्ता में थी.
अजित (63) की छवि एक जमीनी स्तर के नेता और सक्षम प्रशासक की रही है. वह राजनीतिक रूप से महत्वाकांक्षी और अपने मन की बात सामने रखने के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने 2019 के बाद से तीसरी बार रविवार को महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली, जिससे उनके अगले राजनीतिक कदम के बारे में महीनों से लगाई जा रही अटकलों पर विराम लग गया. Maharashtra Politics: महाराष्ट्र में बड़ा उलटफेर, शिंदे-फडणवीस सरकार में शामिल हुए अजित पवार, बनें डिप्टी सीएम- Watch Video
अजित राकांपा प्रमुख शरद पवार के बड़े भाई दिवंगत अनंत पवार के बेटे हैं. अजित ने हाल में पार्टी नेतृत्व से अपील की थी कि उन्हें महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी से मुक्त किया जाए और पार्टी संगठन में एक भूमिका सौंपी जाए. अजित 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में 1.65 लाख से अधिक वोटों के बड़े अंतर से जीत दर्ज कर बारामती विधानसभा क्षेत्र से फिर से विधायक चुने गए थे.
उन्होंने नवंबर 2019 में सबसे कम अवधि के लिए उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी, क्योंकि भाजपा के नेता देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार केवल 80 घंटे तक चली थी. वह फिर से उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली एमवीए सरकार में उपमुख्यमंत्री बने और पिछले साल जून में गठबंधन सरकार गिरने तक, ढाई साल तक इस पद पर बरकरार रहे.
इससे पहले, अजित ने अशोक चव्हाण और पृथ्वीराज चव्हाण के नेतृत्व में कांग्रेस-राकांपा सरकार के 15 साल के कार्यकाल के दौरान उपमुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया था. कांग्रेस-राकांपा और एमवीए सरकार में वित्त विभाग संभालने के अलावा, अजित ने जल संसाधन और बिजली विभाग भी संभाला है.
अजित ने 1982 में एक सहकारी चीनी कारखाने के बोर्ड सदस्य के रूप में राजनीति में कदम रखा था. उन्हें 1991 में पुणे जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष के रूप में चुना गया और वह कई वर्षों तक इस पद पर रहे. अजित 1991 में बारामती से सांसद चुने गए, लेकिन चाचा शरद पवार के लिए इस सीट को खाली कर दिया. बाद में, वह बारामती से विधायक निर्वाचित हुए और छह बार इस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया.
अजित पहले सुधाकर राव नाइक सरकार में कृषि और बिजली राज्य मंत्री बने थे और बाद में 1999 में कैबिनेट मंत्री नियुक्त हुए थे. अजित के करीबी सहयोगियों और परिवार के सदस्यों को अपनी चीनी सहकारी इकाइयों को लेकर प्रवर्तन निदेशालय और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) की जांच का सामना करना पड़ रहा है.
भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ने 2014 में 70,000 करोड़ रुपये के सिंचाई घोटाले में अजित की कथित संलिप्तता पर प्रकाश डाला था. जल संसाधन मंत्री के रूप में अजित के कार्यकाल के दौरान राज्य में सिंचाई परियोजनाओं में अनियमितताओं के आरोप सामने आए थे. इस साल मई में, शरद पवार द्वारा पार्टी प्रमुख का पद छोड़ने संबंधी फैसला लेने और बाद में इसे वापस लिए जाने से पहले, अजित ने भाजपा नेतृत्व से मिलने के लिए दिल्ली का दौरा किया था. सूत्रों के अनुसार, सुप्रिया सुले को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने से अजित के सत्तारूढ़ भाजपा-शिवसेना गठबंधन में शामिल होने की अटकलें तेज हो गई थीं.
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