नयी दिल्ली, 24 दिसंबर पंजाब का एक खेतीहर मजदूर पंजाब से करीब 370 किलोमीटर साइकिल चला कर दो दिन में किसान आंदोलन के केंद्र बने दिल्ली के सिंघू बॉर्डर पहुंचा है।
सुखपाल बाजवा नामक मजदूर ने कहा, ‘‘मैं सिंघू बॉर्डर, केंद्र के कृषि कानूनों का विरोध करने पहुंचा हूं, क्योंकि अगर इन्हें वापस नहीं लिया गया तो मैं अपनी आजीविका खो दूंगा।’’
पंजाब के मोगा जिले से साइकिल चलाकर आए 36 वर्षीय बाजवा सिंघू बॉर्डर पर अपनी साइकिल के साथ धरने में शामिल हुए है। उन्होंने कहा कि वह बस या रेलगाड़ी से दिल्ली आ सकते थे लेकिन इसका मतलब होता कि मेरे परिवार को भूखे रहना पड़ता।
उन्होंने कहा, ‘‘ जब मेरे पास वाहन नहीं है, तो मैं क्या कर सकता हूं। मैं दिहाड़ी मजूदर हूं और केवल खेतों में काम कर मुश्किल से जरूरत पूरी कर पाता हूं। बस या ट्रेन से आना महंगा पड़ता। इसलिए मैने उन पैसों को अपने परिवार के भोजन पर खर्च करना बेहतर समझा।’’
बाजवा ने कहा कि यह सफर मुश्किल था क्योंकि पहली बार मैंने मोगा स्थित अपने गांव से अकेले 370 किलोमीटर की दूरी तय की।
उन्होंने कहा कि दिल्ली की (सिंघू) की सीमा पर पहुंचने में दो दिन का समया लगा, इस दौरान रास्ते में मैं कुछ समय के लिए रूका जबकि यही दूरी मोटर चालित वाहन से मात्र छह घंटे में तय की जा सकती है।
बाजवा ने बताया कि प्रदर्शन स्थल पर आते वक्त 18 दिसंबर की देर रात मेरी साइकिल का पहिया पंचर हो गया था जिससे यहां पहुंचने में देरी हुई।
उन्होंने कहा, ‘‘ मैं बिस्तर और कुछ जरूरी सामान लेकर 17 दिसंबर को घर से निकला था और अंतत: 19 दिसंबर को यहां पहुंचा। ये कानून मेरी रोजी-रोटी छीन लेंगे जबकि परिवार में कमाने वाला मैं एकमात्र सदस्य हूं। मैं यहां से तबतक नहीं जाऊंगा जबतक वे (सरकार) इन कानूनों को वापस नहीं ले लेते।’’
बाजवा की पुरानी साइकिल के विपरीत सिंघू बॉर्डर पर ही प्रदर्शन स्थल के एक ओर 10 चमचमाती महंगी साइकिलें खड़ी हैं, ये साइकिलें सेवानिवृत्त इंजीनियर 67 वर्षीय रंजीत सिंह और उनके समूह के सदस्यों की है जो स्वेच्छा से करीब एक महीने से प्रदर्शन कर रहे हजारों किसानों का समर्थन करने के लिए आए हैं, इस समूह में शामिल अधिकतर लोगों की उम्र 50 साल से अधिक है।
सिंह और उनका समूह पंजाब के पटियाला से 265 किलोमीटर की दूरी साइकिल से तय कर 20 दिसंबर को प्रदर्शन स्थल पहुंचा।
उन्होंने बताया कि हम 26 घंटे में दिल्ली पहुंचे जिसमें तीन घंटे का हरियाणा के करनाल में ठहराव शामिल था।
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