ट्रंप के बाद अब बाइडेन ने शुल्क बढ़ा कर चीन की मुश्किलें बढ़ाई
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

अमेरिका में राष्ट्रपति पद की दौड़ में जो बाइडेन और डॉनल्ड ट्रंप में से विजेता जो भी हो लेकिन इस रेस से फिलहाल नुकसान उठाने वाला अगर कोई है, तो वह चीन है.राष्ट्रपति जो बाइडन ने मंगलवार को चीनी इलेक्ट्रिक गाड़ियों, उच्च क्षमता वाली बैटरी, सोलर सेल, स्टील, अल्युमिनियम, और मेडिकल सामान पर नए और भारी शुल्क की घोषणा करके अमेरिका और चीन के बीच चल रहे कारोबारी तनाव को और गहरा कर दिया. बाइडेन इस फैसले की घोषणा के दौरान अपने प्रतिद्वंद्वी ट्रंप पर टीका-टिप्पणी भी करते रहे. बाइडेन ने कहा कि चीनी कंपनियों को मिलने वाली सरकारी सब्सिडीके चलते उन्हें मुनाफे की चिंता से परे, वैश्विक बाजार में एक अनुचित लाभ रहता है.

व्हाइट हाउस के रोज गार्डन में दिए बयान में बाइडन ने कहा, "अमेरिकी कामगार किसी को भी पछाड़ सकते हैं बशर्ते प्रतियोगिता ईमानदारी से हो, लेकिन लंबे वक्त से इसमें ईमानदारी नहीं है. सालों से चीनका सरकारी पैसा, चीनी कंपनियों में उड़ेला जा रहा है. यह प्रतियोगिता नहीं है, धोखाधड़ी है."

बाइडेन और ट्रंप के बीच चल रही गर्मागर्म बहस के बीच यह घोषणा यह दिखाने के लिहाज से भी अहम है कि राष्ट्रपति पद के दोनों दावेदारों के बीच कौन है जो चीन पर लगाम कसने के लिए बिल्कुल सख्त होने का इरादा रखता है. पत्रकारों से बातचीत में जब बाइडेन से ट्रंप के उस बयान पर प्रतिक्रिया मांगी गई जिसमें उन्होने कहा था कि चीन अमेरिका का लंच खा रहा है तो बाइडन ने ट्रंप को लक्ष्य कर कहा, "वह लंबे वक्त से उन्हें खिला रहे हैं."

किन सेक्टरों पर होगा असर

दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं अमेरिका और चीन के बीच कारोबारी तनाव को बढ़ाने वाले इन कदमों से लगभग 18 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य के चीनी आयात पर असर पड़ेगा. यह फैसला लेने से पहले लगभग चार साल तक समीक्षा की गई. अमेरिका का निशाना कुछ खास सेक्टरों पर हैं. हालांकि चीन की इलेक्ट्रिक गाड़ियों पर सबसे ज्यादा मार पड़ेगी. इन पर फिलहाल 27.5 फीसदी शुल्क लगता है जो अब भारी उछाल के साथ 102.5 फीसदी हो जाएगा.

नए शुल्क की जद में दूसरे तकनीकी उत्पाद भी हैं जिनमें लिथियम बैटरी, सोलर सेल, स्टील और एल्युमिनियम शामिल हैं. लिथियम बैटरी पर टैरिफ 7.5 फीसदी से बढ़कर 25 प्रतिशत हो जाएगा जबकि अहम खनिजों पर शुल्क शून्य से बढ़कर 25 फीसदी, सोलर सेल पर 25 से 50 और सेमीकंडक्टर पर 25 से 50 फीसदी हो जाएगा. बाइडेन ने पहले भी स्टील और एल्युमिनियम पर शुल्क बढ़ाया था जो अब कुछ उत्पादों पर बढ़कर 25 फीसदी हो जाएगा.

व्हाइट हाउस की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि इन कदमों का मकसद चीन पर दबाव बनाना है ताकि वह तकनीक के व्यापार, बौद्धिक संपदा और खोज में अनुचित तरीकों का इस्तेमाल ना करे. इलेक्ट्रिक गाड़ियों पर शुल्क लगाकर अमेरिका अपने देश में चीनी कारों की बाढ़ को रोकना चाहता है ताकि कार उद्योग में उठापटक ना मचे.

चीन का इंकार

अमेरिकी कदमों पर चीन ने तुरंत अपनी प्रतिक्रिया दी. चीनी विदेश मंत्रालय ने मंगलवार को जारी किए बयान में कहा कि बीजिंग, "एकतरफा शुल्क बढ़ाने का विरोध करता है जो विश्व व्यापार संगठन के नियमों के खिलाफ है." इसी साल अप्रैल में, चीन के वाणिज्य मंत्री वांग वेंताओ ने कहा था कि इलेक्ट्रिक गाड़ी बनाने वाली चीन की कंपनियों की जबरदस्त तरक्की सरकारी छूट की वजह से नहीं बल्कि लगातार हो रहे इनोवेशन की वजह से है. उनका कहना था कि अमेरिका और यूरोप चीनी सरकार की छूट की वजह से अपने बाजारों में असंतुलन की जो बात कह रहे हैं, उसमें कोई दम नहीं है. ईवी में चीन की बेहतर स्थिति के पीछे "बढ़िया सप्लाई चेन व्यवस्था और प्रतियोगी बाजार है.”

चीन के विदेश मंत्रालय ने यह भी कहा कि अमेरिका, बाजार अर्थव्यवस्था और अंतराष्ट्रीय आर्थिक और व्यापारिक सिद्धांतो को कुचल रहा है. साथ ही यह भी कहा है कि इससे द्विपक्षीय व्यापारिक सहयोगका माहौल प्रभावित होगा. मंत्रालय ने अपने बयान में 'बुलींग' यानी दादागिरी शब्द का इस्तेमाल किया है. हालांकि इस बढ़ोत्तरी का तुरत-फुरत असर होने की संभावना नहीं दिखती है क्योंकि इनमें से कुछ घोषणाएं 2026 तक लागू नहीं होंगी. ईवी की बैटरियों, सोलर सेल और दूसरी चीजों के दाम बढ़ने के अनुमान जरूर लगाए जा रहे हैं क्योंकि तीन चरणों में लागू होने वाली इस वृद्धि के पहले चरण में इन्हीं चीजों पर नए नियम लागू होंगे.

बाइडन प्रशासन का कहना है कि इससे चीन और अमेरिका के बीच तनाव बढ़ने जैसा कुछ नहीं होगा हालांकि अंदाजा यही लगाया जा रहा है कि चीन अपने उत्पादों पर लगाए गए नए शुल्कों का तोड़ ढूंढने की कोशिश जरूर करेगा.

यूरोप की चिंताएं

चीन की इलेक्ट्रिक गाड़ियों के बढ़ते प्रसार ने सिर्फ अमेरिका को ही हैरान नहीं बल्कि यूरोप को भी भारी चिंता में डाल रखा है. चीन से ईवी कारों के आयात में आई उछाल के बाद, ईयू ने पिछले साल अक्टूबर में एक जांच शुरु की ताकि पता लगा सकें कि ईवी पर शुल्क लगाया जाए या नहीं. इसका मकसद चीन में सरकारी छूट की वजह से पैदा होने वाले असंतुलन से निपटना है.

यूरोपीय आयोग की प्रमुख उर्सुला फॉन डेय लेयन ने सितंबर में कहा था कि वैश्विक बाजार सस्ती चीनी कारों से भर गया है और सरकारी सब्सिडी के चलते कीमतों को आर्टिफिशियल तरीके से कम रखा गया है. जांच का मकसद यह पता लगाना था कि चीनी कंपनियों को सरकारी छूट मिली है या नहीं और इस तरह की छूट, क्या ईयू की कार कंपनियों को नुकसान पहुंचा सकती हैं.

अगर खतरा महसूस हुआ तो यूरोपीय उद्योग को बचाने के लिए चीनी ईवी कंपनियों पर ऊंचा आयात शुल्क लगेगा जो फिलहाल 10 से 20 प्रतिशत है. हालांकि जर्मन कार निर्माता जैसे बीएमडब्ल्यू और फॉक्सवागेन ने इस तरह के कदमों का विरोध यह कह कर किया कि इससे चीनी कारें आयात करने वाली कंपनियों और ईयू की हरित ऊर्जा की तरफ बढ़ने के कोशिशों को नुकसान होगा और चीन की प्रतिक्रिया झेलनी पड़ेगी वो अलग.

एसबी/एनआर (एपी, रॉयटर्स, एएफपी)