
नयी दिल्ली, 9 फरवरी : अपने समर्थकों द्वारा ‘‘भारत के सबसे तेजी से प्रगति करने वाले सियासी स्टार्ट-अप’’ के रूप में सराही जाने वाली आम आदमी पार्टी (आप) दिल्ली विधानसभा के पिछले दो चुनावों में लगातार प्रचंड जीत हासिल करने के बाद अब अस्तित्व बचाने के सबसे बड़े संकट का सामना कर रही है. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने शनिवार को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को ‘आप’ से छीन लिया. दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 70 में से 48 सीट पर शनिवार को जीत दर्ज की, लेकिन अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली ‘आप’ को सिर्फ 22 सीट पर जीत मिली. इस हार के साथ ‘आप’ ने ना केवल अपनी राजनीतिक ताकत खो दी, बल्कि पिछले दशक में बनी अपराजेय रहने की अपनी प्रतिष्ठा भी गंवा दी.
दिल्ली में ही ‘आप’ का उदय हुआ था, जहां इसने अपनी सफलता की इबारत लिखी थी. केजरीवाल नयी दिल्ली सीट से हार गए और मनीष सिसोदिया, सत्येन्द्र जैन और सौरभ भारद्वाज जैसे अन्य पार्टी नेताओं को भी हार का सामना करना पड़ा. मुफ्त बिजली, पानी और शिक्षा सुधारों पर केंद्रित पार्टी का शासन मॉडल शहर के निवासियों के साथ तालमेल बिठाने में स्पष्ट रूप से विफल रहा. यह भी पढ़ें : Delhi Assembly Election Result 2025: जाति, जनसंख्या और क्षेत्रीय आधार पर कैसा रहा भाजपा का प्रदर्शन, समझें गणित
केजरीवाल द्वारा मंदिर के पुजारियों को मासिक भत्ता देने का वादा करने के साथ उनका नरम हिंदुत्व भी मतदाताओं को रास नहीं आया. पार्टी को अब अपनी रणनीति को फिर से परिभाषित करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. इसे मतदाताओं के बीच विश्वास बहाल करने, भ्रष्टाचार के आरोपों से निपटने और अपने शासन मॉडल को मजबूत करने की भी जरूरत है. पार्टी पर अन्य राज्यों में पैठ बनाकर यह साबित करने का भी भारी दबाव होगा कि पंजाब में जीत कोई संयोग नहीं है.