नयी दिल्ली, 20 फरवरी उच्चतम न्यायालय ने एक आपराधिक मामले में एक पंक्ति का आदेश सुनाने और सेवानिवृत्त होने के पांच महीने बाद विस्तृत फैसला जारी करने के लिए मद्रास उच्च न्यायालय के एक पूर्व न्यायाधीश की आलोचना की है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि सेवानिवृत्ति के बाद पांच महीने तक मामले की फाइल अपने पास रखना घोर अनुचित कार्य है।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द करते हुए कहा कि आदेश का मुख्य अंश 17 अप्रैल, 2017 को सुनाया गया था।
इसमें कहा गया है कि न्यायाधीश के पद छोड़ने की तारीख तक तर्क-सहित निर्णय जारी करने के लिए पांच सप्ताह का समय उपलब्ध था।
पीठ ने कहा, ‘‘हालांकि, 250 से अधिक पृष्ठों का विस्तृत निर्णय न्यायाधीश के पद छोड़ने की तारीख से पांच महीने के बाद सामने आया है। इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि न्यायाधीश ने पद छोड़ने के बाद भी कारण बताए और निर्णय तैयार किया।
पीठ ने कहा, ‘‘हमारे अनुसार, सेवानिवृत्त होने के पांच महीने बाद तक मामले की फाइल अपने पास रखना न्यायाधीश की ओर से घोर अनुचित कार्य है। इस मामले में जो किया गया है, हम उसे स्वीकार नहीं कर सकते।’’
न्यायमूर्ति टी. मथिवनन 26 मई, 2017 को सेवानिवृत्त हुए थे और मामले में विस्तृत निर्णय उसी वर्ष 23 अक्टूबर को उपलब्ध कराया गया।
पीठ ने फैसले को रद्द करते हुए कहा, ‘‘हम ऐसे अनुचित कृत्यों का समर्थन नहीं कर सकते हैं और इसलिए, हमारे विचार में, इस अदालत के लिए एकमात्र विकल्प विवादित फैसले को रद्द करना और मामलों को नये फैसले के लिए उच्च न्यायालय के पास वापस भेजना है।’’
इसमें कहा गया है, ‘‘यह कहने की जरूरत नहीं है कि हमने विवाद के गुण-दोष पर कोई निर्णय नहीं दिया है और सभी मुद्दों को उच्च न्यायालय द्वारा तय किए जाने के लिए खुला छोड़ दिया गया है।’’
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