नयी दिल्ली, 26 जनवरी बुनियादी संरचना क्षेत्र की 150 करोड़ रुपये ये अधिक की लागत वाली 450 परियोजनाओं के देर हो जाने से इनकी सम्मिलित अनुमानित लागत 4.28 लाख करोड़ रुपये से अधिक बढ़ गयी है। एक रिपोर्ट में इसकी जानकारी दी गयी।
सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय 150 करोड़ रुपये और उससे अधिक मूल्य की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की निगरानी करता है। इस तरह की 1,687 परियोजनाओं में से 558 परियोजनाएं देरी से चल रही हैं, जबकि 450 की लागत बढ़ गयी है।
मंत्रालय के द्वारा दिसंबर 2020 के लिये जारी हालिया रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘इन 1,687 परियोजनाओं के क्रियान्वयन की कुल मूल लागत 21,44,627.66 करोड़ रुपये थी। इनके पूरा होने तक की अनुमानित लागत 25,72,670.28 करोड़ रुपये होने की संभावना है, जो कि कुल लागत से 4,28,042.62 करोड़ रुपये (मूल लागत का 19.96 प्रतिशत) अधिक है।’’
मंत्रालय के अनुसार, दिसंबर 2020 तक इन परियोजनाओं पर कुल खर्च 12,17,692.37 करोड़ रुपये था, जो परियोजनाओं की अनुमानित लागत का 47.33 प्रतिशत है।
हालांकि, रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि पूरा होने की नयी सारिणी के आधार पर देखें तो विलंबित परियोजनाओं की संख्या घटकर 408 हो जाती है।
रिपोर्ट के अनुसार, 558 विलंबित परियोजनाओं में से 111 परियोजनाओं में एक से 12 महीने और 135 परियोजनाओं में 13 से 24 महीने की देरी हुई है। इनके अलावा 187 परियोजनाएं 25-60 महीने और 125 परियोजनाएं 61 महीने या इससे अधिक की देरी में हैं। इन 558 विलंबित परियोजनाओं की औसत देरी 45 महीने है।
विभिन्न परियोजना कार्यान्वयन एजेंसियों द्वारा दी गयी जानकारियों के अनुसार, देरी की मुख्य वजहें भूमि अधिग्रहण में विलंब, वन व पर्यावरण मंजूरी मिलने में विलंब, बुनियादी ढांचे की कमी आदि शामिल हैं। इनके अलावा परियोजना के वित्त पोषण की समस्याएं, विस्तृत इंजीनियरिंग को अंतिम रूप दिये जाने में देरी, स्वरूप में बदलाव, निविदा में देरी, उपकरणों की आपूर्ति में व्यवधान तथा कानून व व्यवस्था की दिक्कतों के चलते भी कुछ परियोजनाएं देर हो जाती हैं।
रिपोर्ट में परियोजनाओं में देरी की एक वजह राज्यों के द्वारा लगाये गये लॉकडाउन को भी बताया गया है।
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