अंतरराष्ट्रीय अपराध अदालत (आईसीसी) के सदस्य देशों का सालाना सम्मेलन शुरू हो रहा है. संभावना है कि इस्राएली पीएम नेतन्याहू के खिलाफ जारी वॉरंट और उसपर सदस्य देशों का रुख, सम्मेलन के सबसे अहम विषयों में हो सकते हैं.अंतरराष्ट्रीय अपराध अदालत (आईसीसी) ने 21 नवंबर को इस्राएल के प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू और पूर्व इस्राएली रक्षा मंत्री योआव गालांत के खिलाफ गिरफ्तारी का वॉरंट जारी किया. इस वॉरंट पर सदस्य देशों, यहां तक कि सबसे ज्यादा फंड देने वाले देशों की ओर से भी आईसीसी को समर्थन मिलता नहीं दिख रहा.
जिस नीदरलैंड्स में यह अदालत स्थित है, उसके प्रधानमंत्री डिक शोफ ने भी पिछले हफ्ते संकेत दिया कि नेतन्याहू अगर यहां आते हैं, तो उनकी गिरफ्तारी नहीं होगी. पीएम शोफ ने कहा कि आईसीसी के वॉरंट के बावजूद नीदरलैंड्स आने पर नेतन्याहू को अरेस्ट ना किए जाए, ऐसे विकल्प संभव हैं. इस पृष्ठभूमि में 2 दिसंबर से शुरू हो रहा आईसीसी के सदस्य देशों का सालाना सम्मेलन अहम साबित हो सकता है.
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इसे "असेंबली ऑफ स्टेट पार्टीज" कहा जाता है. इसमें आईसीसी के 124 सदस्य देशों के प्रतिनिधि शामिल हैं. यह असेंबली कोर्ट के प्रबंधन की निगरानी करती है और इसकी विधायी शाखा भी है. इस सम्मेलन में कमेटी के सदस्यों के चुनाव के अलावा कोर्ट के बजट को भी मंजूरी दी जानी है. इस साल सम्मेलन में नेतन्याहू और गालांत के खिलाफ जारी गिरफ्तारी वॉरंट पर काफी ध्यान रखने की संभावना है.
इसके अलावा आईसीसी के चीफ प्रॉसिक्यूटर करीम खान पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोप भी फोकस में रहेंगे. करीम खान पर आरोप है कि उन्होंने एक महिला सहयोगी पर यौन संबंध बनाने के लिए दबाव डालने की कोशिश की. 'असेंबली ऑफ स्टेट पार्टीज' ने मामले की बाहर से जांच करवाने की घोषणा की है. हालांकि, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि सम्मेलन में इसपर चर्चा होगी या नहीं.
क्या है आईसीसी?
आईसीसी एक अंतरराष्ट्रीय अदालत है, जिसका गठन साल 2002 में हुआ था. इसकी स्थापना जिस संधि के आधार पर हुई, उसे "रोम स्टैचूट" कहते हैं और यह संधि आईसीसी को चार प्रमुख अपराधों की जांच करने और दोषियों को सजा देने का अधिकार देती है. ये अपराध हैं: नरसंहार, मानवता के खिलाफ अपराध (आम लोगों के खिलाफ बड़े स्तर पर हुए गंभीर अपराध जैसे कि हत्या, रेप, गुलाम बनाना, यातना देना), युद्ध अपराध और किसी सरकार द्वारा किसी अन्य देश की संप्रभुता, अखंडता या स्वतंत्रता के खिलाफ अपनी सेना का इस्तेमाल करना.
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आईसीसी केवल 1 जुलाई 2002 के बाद हुए मामलों में ही अपने अधिकारक्षेत्र का इस्तेमाल कर सकती है. आईसीसी के पास अपना कोई पुलिस बल नहीं है. ऐसे में यह बाकी देशों के सहयोग पर निर्भर है, जैसे कि गिरफ्तारी वॉरंट के संदर्भ में. आईसीसी, संयुक्त राष्ट्र की अंतरराष्ट्रीय अदालत "इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस" (आईसीजे) से अलग है लेकिन दोनों के बीच सहयोग का प्रावधान है.
अगर कोई मामला आईसीसी के अधिकारक्षेत्र में ना आता हो, तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद उस मामले को आईसीजे के सुपुर्द कर सकता है. आईसीसी को अपने कामकाज के लिए सदस्य देशों की ओर से फंडिंग मिलती हैं. जापान, जर्मनी और फ्रांस इसे सबसे ज्यादा आर्थिक सहयोग देने वाले देश हैं. भारत इसका सदस्य नहीं है, ना ही अमेरिका, चीन और इस्राएल इसके सदस्य हैं.
मार्च 2023 में आईसीसी ने यूक्रेनी बच्चों को जबरन रूस ले जाने के मामले में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और रूस की बाल अधिकार कमिश्नर मारिया अलेक्सीविना के खिलाफ गिरफ्तारी का वॉरंट जारी किया था. यह मामला "फोर्स्ड डिपोर्टेशन" की श्रेणी में आता है, जो कि रोम स्टैचूट के तहत एक घोर अपराध है. रूस ने भी इस संधि पर दस्तखत किया था, लेकिन 2016 में वह अलग हो गया.
नेतन्याहू के खिलाफ जारी वॉरंट पर कैसी प्रतिक्रिया?
21 नवंबर को आईसीसी ने गाजा में जारी युद्ध की पृष्ठभूमि में इस्राएल के प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू, पूर्व इस्राएली रक्षा मंत्री योआव गालांत और हमास के सैन्य प्रमुख मोहम्मद दाइफ के खिलाफ वॉरंट जारी किया. हालांकि, मोहम्मद दाइफ के जिंदा होने पर संशय है. इस्राएल के मुताबिक, जुलाई में हुए एक हवाई हमले में दाइफ मारा जा चुका है.
आईसीसी के जजों ने कहा कि इस बात के ठोस आधार हैं कि इस्राएल और हमास के बीच जारी युद्ध में कथित युद्ध अपराधों और मानवता के विरुद्ध अपराधों में इन तीनों की "आपराधिक जिम्मेदारी" है. नेतन्याहू ने वॉरंट पर सख्त प्रतिक्रिया देते हुए इसे "यहूदी विरोधी" बताया.
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अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने वॉरंट को "नैतिक रूप से अस्वीकार्य" करार दिया और इस्राएल के साथ खड़े रहने का संकल्प जताया. समाचार एजेंसी एपी के अनुसार, 2023 में जब आईसीसी ने पुतिन के खिलाफ वॉरंट जारी किया, तो बाइडेन ने उसे उचित ठहराते हुए कहा था कि रूसी राष्ट्रपति ने युद्ध अपराध किया है.
आईसीसी को सबसे ज्यादा फंड देने वालों में शामिल फ्रांस ने कहा कि वह अपनी प्रतिबद्धताओं का सम्मान करता है, लेकिन उसे नेतन्याहू के लिए मौजूद बचाव के संभावित उपायों पर विचार करना होगा. एपी के अनुसार, पुतिन के लिए जारी वॉरंट पर प्रतिक्रिया करते हुए फ्रांस ने कहा था कि वह आईसीसी "के जरूरी कामों के लिए अपना समर्थन देगा."
एक अन्य यूरोपीय देश हंगरी, जो कि आईसीसी का सदस्य भी है, उसके प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान ने कहा कि उनका देश नेतन्याहू को गिरफ्तार नहीं करेगा. ओरबान ने आईसीसी पर "एक जारी संघर्ष में राजनीतिक मकसद से दखलंदाजी" करने का आरोप लगाया.
ऑस्ट्रिया दिसंबर 2000 में रोम स्टैचूट का हिस्सा बना था. उसने आईसीसी के वॉरंट को "समझ से परे" बताया. हालांकि, उसने यह भी कहा है कि अगर नेतन्याहू ऑस्ट्रिया आते हैं, तो वह वॉरंट पर अमल करते हुए उन्हें गिरफ्तार करेगा. आईसीसी की स्टेट पार्टीज में शामिल होने वाले शुरुआती देशों में से एक इटली (जुलाई 1999) ने भी वॉरंट को गलत तो बताया, लेकिन यह भी कहा कि वह वॉरंट पर अमल करेगा.
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यानीना डिल, वैश्विक सुरक्षा की एक विशेषज्ञ हैं. समाचार एजेंसी एपी से बात करते हुए उन्होंने सदस्य देशों के रुख पर चिंता जाहिर की. उन्होंने आशंका जताई कि ऐसी प्रतिक्रियाएं न्याय हासिल करने के वैश्विक प्रयासों को कमजोर कर सकती हैं. उन्होंने कहा, "इसमें ना केवल कोर्ट को नुकसान पहुंचाने की, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कानून को कमजोर करने की क्षमता है."
हालांकि, यह जरूरी नहीं कि सदस्य देश वॉरंट पर अमल करें ही. सदस्य देश कई बार अपनी विदेश नीति के मुताबिक अपना कदम तय करते हैं. जैसे कि सितंबर 2024 में पुतिन मंगोलिया के दौरे पर गए. मंगोलिया ने उन्हें गिरफ्तार करने से इनकार कर दिया. इससे पहले अगस्त 2023 में जब दक्षिण अफ्रीका की मेजबानी में ब्रिक्स सम्मेलन हुआ, तब भी पुतिन के खिलाफ वॉरंट पर काफी कयास लगे.
आईसीसी के वारंट पर क्या पुतिन को गिरफ्तार करना होगा दक्षिण अफ्रीका को?
दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा ने स्पष्ट किया कि पुतिन की गिरफ्तारी को रूस अपने खिलाफ युद्ध का एलान मानेगा. ऐसे में रूस के साथ युद्ध का जोखिम पैदा करना उनके देश के संविधान के मुताबिक नहीं होगा. हालांकि, बाद में दोनों देशों के बीच सहमति बनी और पुतिन की जगह रूस के विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोव सम्मेलन में शामिल हुए. ऐसे उदाहरणों की वजह से कई बार आईसीसी को अप्रभावी बताकर आलोचना की जाती है.
एसएम/आरपी (एपी)