इस्लामाबाद: भयंकर कंगाली से जूझ रहे पाकिस्तान (Pakistan) के प्रधानमंत्री इमरान खान (Imran Khan) के सामने एक नई मुसीबत आ खड़ी हुई है. दरअसल अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के वित्तपोषण की निगरानी करने वाली संस्था ‘फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स’ (एफएटीएफ) पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की मुश्किलें बढ़ाने का काम कर रही है.
पेरिस स्थित एफएटीएफ ने 22 जून को पाकिस्तान को आतंकी फंडिंग पर अंकुश लगाने में विफल रहने के कारण अपनी 'ग्रे' लिस्ट में रखने का फैसला किया था. अंतराष्ट्रीय आर्थिक कार्रवाई दल- एफएटीएफ ने पाकिस्तान को 27 सूत्री कार्य योजना लागू करने के लिए सितंबर तक का समय दिया था. लेकिन पाकिस्तान की इमरान सरकार ने अंतकी फंडिंग पर नकेल कसने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए.
एफएटीएफ ने पाकिस्तान पर अपने कड़े फैसले से पहले पिछले महीने अमेरिका के फ्लोरिडा में बैठक की थी. तब एफएटीएफ ने पाकिस्तान से कहा था कि वह अपनी धरती से उत्पन्न होने वाले आतंकवाद तथा आतंकी वित्त पोषण (टेरर फंडिंग) संबंधी वैश्विक चिंताओं को दूर करने के लिए ठोस, सत्यापन योग्य, अपरिवर्तनीय और विश्वसनीय कदम उठाए.
जानकारों के मुताबिक एफएटीएफ के इस कदम से आर्थिक तंगी से परेशान पाकिस्तान और कंगाल हो जाएगा. दरअसल पाकिस्तान का 'ग्रे' लिस्ट में शामिल होने का सीधा मतलब नई वित्तीय परेशानियों का जन्म होना है. इस लिस्ट में शामिल देशों के घरेलू कानून को धन शोधन (मनी लॉन्डरिंग) और आतंकी फंडिंग पर नकेल कसने के लिहाज से कमजोर माना जाता है. इससे पाकिस्तान के आयात, निर्यात और बैंकिंग सेक्टर पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है. क्योकि कोई भी संस्था या देश निवेश के बाद जोखिम से बचने के लिए पाकिस्तान के साथ लेनदेन पर विचार कर सकती हैं.
एफएटीएफ आतंकी फंडिंग और धन शोधन पर लगाम लगाने के लिए लगातार पाकिस्तान पर दबाव बना रहा है. इसी कड़ी में संस्था ने प्रतिबंधित आतंकी संगठनों लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद की देश में गतिविधियों का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए कहा है. शायद इसी का नतीजा है कि पाकिस्तान ने बुधवार को 26/11 मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद और उसके 12 सहयोगियों के खिलाफ टेरर फंडिंग के आरोप में केस दर्ज किया.