मजबूत सैन्य संबंधों की ओर बढ़ रहे हैं जर्मनी और भारत
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

भारत और जर्मनी के बीच सैन्य संबंध बहुत सीमित रहा है, लेकिन यूक्रेन के खिलाफ रूस के युद्ध और चीन के रुख के कारण स्थितियां बदलने लगी हैं. अब भारत और जर्मनी रक्षा सहयोग मजबूत करने की संभावनाएं तलाश रहे हैं.भारतीय वायुसेना इस साल अगस्त में एक सैन्य अभ्यास की मेजबानी कर रही है, जिसमें जर्मन एयर फोर्स को भी हिस्सा लेना है. फ्रांस और अमेरिका भी इसमें शामिल होंगे. जर्मनी, भारत के साथ सैन्य संबंध बढ़ाने में दिलचस्पी का संकेत दे रहा है.

यह सामरिक क्षेत्र में एक अहम बदलाव हो सकता है. भारत में जर्मनी के राजदूत फिलिप आकरमन ने अपने एक इंटरव्यू में कहा कि अब बर्लिन में भारत के साथ रक्षा संबंध बेहतर बनाने की "स्पष्ट राजनीतिक इच्छा" दिखती है. उन्होंने इसे एक बड़ा बदलाव कहा.

टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए इस इंटरव्यू में आकरमन ने कहा, "पहले हम काफी हिचकिचाहट में रहे हैं. अब जर्मनी में सैन्य दौरों, अभ्यासों, साथ मिलकर उत्पादन करने और अन्य क्षेत्रों के माध्यम से, जिनमें साइबर जैसे नए क्षेत्र भी हैं, भारत के साथ रक्षा सहयोग बढ़ाने की स्पष्ट राजनीतिक इच्छा है."

इसी साल फरवरी में भारत और जर्मनी, दोनों देशों के रक्षा सचिवों की बर्लिन में वार्ता हुई. रक्षा सहयोग विकसित करना, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा से जुड़ी स्थिति और संभावित साझा सैन्य अभ्यास इस बातचीत के प्रमुख मुद्दे थे.

अगस्त में भारतीय वायु सेना एक सैन्य अभ्यास की मेजबानी कर रही है. जर्मनी, फ्रांस और अमेरिका भी इसमें हिस्सा लेंगे. अक्टूबर में जर्मन नौसेना का एक युद्धपोत और कॉम्बैट सपोर्ट शिप भी गोआ जाने वाले हैं.

बदलाव की वजह क्या है?

जानकारों के मुताबिक, जर्मनी ने अब इस क्षेत्र में भारत को एक स्वाभाविक सहयोगी के तौर पर देखना शुरू कर दिया है. विश्लेषक ध्यान दिलाते हैं कि यूक्रेन में रूस के हमला करने के बाद से नई दिल्ली की ओर बर्लिन के रुख में बदलाव आया है. साथ ही, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता भी इस परिवर्तन की एक वजह है.

वहीं, भारत के लिए इसका आशय रूसी हथियारों पर दशकों से बनी आ रही निर्भरता घटाना और रक्षा खरीदों का दायरा बढ़ाना है.

भारतीय नौसेना के पूर्व प्रमुख अरुण प्रकाश ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि बर्लिन और नई दिल्ली के रक्षा संबंध अब तक न्यूनतम रहे हैं क्योंकि "दोनों में बहुत कम समानता थी" और दोनों ही "एक-दूसरे की जगह कहीं और ही देख रहे थे."

जर्मन-भारतीय कंपनियां देश में पनडुब्बी बनाने के सौदे के करीब

अरुण प्रकाश बताते हैं, "जर्मनी का ध्यान यूरोपीय संघ (ईयू) पर केंद्रित था और भारत के मुख्य रक्षा संबंध रूस, फ्रांस और इस्राएल के साथ थे. संक्षेप में कहें तो अब तक इनके रिश्ते काफी फासले पर रहे हैं, बस उस एक मौके को छोड़कर जब हमने 1980 के दशक के आखिरी सालों में चार एचडीडब्ल्यू क्लास पनडुब्बियां खरीदीं."

बीते साल जर्मनी के रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस की भारत यात्रा ने द्विपक्षीय रक्षा साझेदारी की दिशा में नए सिरे से प्रेरणा दी. पिस्टोरियस 2015 के बाद दक्षिण एशिया के किसी देश की यात्रा पर पहुंचे पहले जर्मन रक्षा मंत्री थे.

भारत और जर्मनी दे रहे हैं आपसी रक्षा संबंध बढ़ाने पर जोर

वह ऑस्ट्रेलिया या जापान की तरह भारत के साथ सामरिक क्षेत्र में एक सहयोगी की तरह पेश आने और इसके माध्यम से रक्षा सहयोग और हथियारों के सौदे को आसान बनाने के पक्षधर हैं.

भारत के डिफेंस एक्सपर्ट्स का कहना है कि नई दिल्ली भी इस बदलाव का स्वागत करेगा. अरुण प्रकाश कहते हैं, "जर्मन इंजिनियरिंग और जर्मन तकनीक हमेशा से ही बेहतर रही है, लेकिन हम जानते थे कि जर्मनी का ध्यान ईयू की तरफ केंद्रित है. साथ ही, कानूनी सीमाएं भी निर्यात में अड़चन थीं. ऐसे में हमें जर्मनी से ज्यादा पेशकश नहीं मिली. लेकिन अब वे अपने कानूनों में बदलाव ला रहे हैं और मिलिट्री हार्डवेयर हमें उपलब्ध करवाने की दिशा में ज्यादा खुल रहे हैं. इससे हमें खुशी होगी."

रक्षा मंत्री पिस्टोरियस की भारत यात्रा के दौरान जर्मन और भारतीय कंपनियों ने एक समझौते पर दस्तखत किए, जिसमें छह विकसित डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों के संभावित निर्माण की बात थी. अरुण प्रकाश ध्यान दिलाते हैं कि भारतीय नौसेना अपनी इन्वेंट्री में जर्मन उपकरणों का स्वागत करेगी, बशर्ते सपोर्ट और पुर्जों पर भी करार हो.

जर्मनी में सेना की ताकत बढ़ाने के लिए नई सैन्य सेवा लाने की तैयारी

'दोनों देशों के आपसी हितों' में रक्षा सहयोग

लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) दीपेंद्र सिंह हुड्डा इंडियन आर्मी के नॉदर्न कमांड में कमांडर रहे हैं. उनका मानना है कि भारत और जर्मनी के बीच करीबी सैन्य संबंधों से दोनों देशों को फायदा होगा. वह कहते हैं, "भारत को आधुनिक बनने की जरूरत है. उसे हथियारों की खरीद का दायरा विस्तृत करने की आवश्यकता है. भारत अतिरिक्त तकनीक की तलाश में है और जर्मनी के पास बहुत मजबूत और सुदृढ़ रक्षा उद्योग है. ऐसे में सहयोग के लिए काफी संभावनाएं हैं, जो दोनों पक्षों की मदद करेंगी."

अरुण प्रकाश की भी यही राय है. वह कहते हैं, "मौजूदा समय में एक-दूसरे के साथ रिश्ते बनाना और यह देखना कि इनका क्या हासिल रहता है, दोनों ही देशों के पारस्परिक हितों में है." भारत जहां सैन्य उपकरणों का सबसे बड़ा आयातक है, वहीं जर्मनी इसके सबसे बड़े निर्यातकों में है. हुड्डा कहते हैं कि भारत की हथियारों की जरूरत बहुत व्यापक है.

क्या जर्मनी के रक्षा उद्योग के लिए अनुकूल है माहौल?

वह कहते हैं, "अगर आप भारत के रक्षा आयात को देखें, तो यह काफी फैला हुआ है, कहीं से कुछ लेते हैं, कहीं से कुछ. भारत का रक्षा उद्योग बहुत अच्छी तरह से विकसित नहीं है. मुझे लगता है कि काफी संभावनाएं हैं, इस बात के मद्देनजर भी कि भारत की जरूरतें बहुत ज्यादा हैं. काफी क्षमताएं हैं और दोनों पक्षों के लिए बहुत अवसर हैं."

संयुक्त अभ्यास पर ध्यान देंगी दोनों सेनाएं

संयुक्त अभ्यास, सैन्य सहयोग का ही एक पहलू है. अगस्त में होने जा रहे बहुदेशीय सैन्य अभ्यास में जर्मनी के दर्जनों एयरक्राफ्ट के हिस्सा लेने की उम्मीद है. इनमें टोरनाडो जेट्स, यूरोफाइटर, बीच हवा में ईंधन भरने वाले टैंकर और सेना के ट्रांसपोर्ट विमान भी हैं.

रिटायर्ड एयर वाइस मार्शल और दिल्ली स्थित सेंटर फॉर एयर पावर स्टडीज के अडिशनल डायरेक्टर जनरल अनिल गोलानी ने डीडब्ल्यू से बातचीत में बताया, "जब जर्मन वायु सेना की टुकड़ी सैन्य अभ्यास के लिए भारत आएगी, तो उनके चीफ खुद फॉर्मेशन का नेतृत्व करेंगे. वह यूरोफाइटर्स के साथ उड़ान भरेंगे. मैंने पहले कभी ऐसा होते हुए नहीं देखा है."

गोलानी बताते हैं कि दुनिया भर की वायु सेनाएं इंडियन एयर फोर्स के साथ अभ्यास में हिस्सा लेना चाह रही हैं. वह कहते हैं, "इसकी एक वजह यह है कि हम रूसी और पश्चिमी देशों के सैन्य विमान, दोनों का इस्तेमाल करते हैं जैसे कि सुखोई, राफाल और मिराज. और कहीं भी अन्य वायु सेनाओं को रूस में बने विमानों के मुकाबले अपने विमान आजमाने का मौका नहीं मिलता है."

रूस से रिकॉर्ड हथियार खरीद रहा है भारत

भविष्य की संभावनाएं

भारत और जर्मनी करीबी रक्षा संबंध बनाने की ओर बढ़ रहे हैं. ऐसे में विश्लेषक इस बात पर भी जोर देते हैं कि दोनों देशों को एक-दूसरे की सामरिक चिंताओं को भी समझने की जरूरत है.

हुड्डा कहते हैं, "जर्मनी संदेह से देख रहा था कि क्यों रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत खुलकर एक पक्ष के साथ नहीं खड़ा हुआ. लेकिन इसकी अपनी सामरिक चिंताएं हैं. हमें उन क्षेत्रों की ओर देखना चाहिए, जिनमें साझा हित हैं और जहां भी मतभेद हों, वहां साथ मिलकर बैठें और बातचीत करें और दोनों पक्षों को ज्यादा स्पष्टता मिले."

वह आगे कहते हैं, "अगर आप देखें, तो बीते सालों में भारत और अमेरिका के रिश्ते इसी तरह परिपक्व हुए हैं." एक ओर जहां गोलानी कहते हैं कि भारत-जर्मनी के रक्षा संबंधों का भविष्य "बढ़िया और मजबूत" है, वहीं नौसेना प्रमुख रह चुके अरुण प्रकाश जोर देकर कहते हैं कि "भविष्य कैसा होगा और रिश्तों का हासिल क्या होगा, इसका पूर्वानुमान लगाना कठिन है."

वह कहते हैं कि भारत और जर्मनी को पहले शुरुआत करनी चाहिए और सफलतापूर्वक एक प्रॉजेक्ट पूरा करना चाहिए. अरुण प्रकाश कहते हैं, "इससे भविष्य के संबंधों की राह बनेगी."