60 साल में पहली बार अविश्वास प्रस्ताव हारे फ्रांसीसी पीएम
फ्रांस में प्रधानमंत्री मिशेल बार्निए की सरकार बुधवार को अविश्वास प्रस्ताव हार गई.
फ्रांस में प्रधानमंत्री मिशेल बार्निए की सरकार बुधवार को अविश्वास प्रस्ताव हार गई. इमानुएल माक्रों के लिए यह एक बड़ा संकट है.जर्मनी के बाद यूरोपीय संघ के एक और मजबूत स्तंभ के सामने राजनीतिक संकट खड़ा हो गया है. प्रधानमंत्री मिशेल बार्निए की सरकार के पतन के बाद फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों एक गहराते राजनीतिक संकट का सामना कर रहे हैं. बुधवार को संसद में ऐतिहासिक अविश्वास प्रस्ताव पारित होने के बाद यह स्थिति पैदा हुई, जिससे पिछले छह दशकों में पहली बार किसी प्रधानमंत्री को पद छोड़ना पड़ा है.
यह प्रस्ताव कट्टर-वामपंथी फ्रांस अनबॉउड (एलएफआई) पार्टी ने पेश किया, जिसमें बजट को लेकर मतभेद थे. इस प्रस्ताव को मरीन ले पेन की धुर-दक्षिणपंथी नेशनल रैली पार्टी का समर्थन मिला, जिससे 577 सदस्यीय नेशनल असेंबली में 331 मतों के बहुमत से सरकार के खिलाफ प्रस्ताव पारित हो गया.
इस घटना को 1962 में जॉर्ज पोम्पिडो सरकार के पतन के बाद सबसे असाधारण माना जा रहा है. यह माक्रों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है, जो गणराज्य के राजनीतिक ढांचे को स्थिर बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं. बार्निए गुरुवार सुबह अपना इस्तीफा सौंपने वाले हैं. इसके बाद माक्रों शाम को राष्ट्र को संबोधित करेंगे.
राजनीतिक अस्थिरता बढ़ी
बार्निए सरकार के गिरने से फ्रांसीसी राजनीति में गहरी दरारें सामने आई हैं. धुर दक्षिणपंथी नेता मरीन ले पेन ने अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन किया, लेकिन माक्रों के इस्तीफे की मांग से बचते हुए, उन्होंने संतुलित बजट जैसे मुद्दों पर सहयोग की इच्छा जताई.
वहीं, वामपंथी एलएफआई ने राष्ट्रपति के इस्तीफे की खुलकर मांग की है और राजनीतिक संकट से निपटने के लिए समयपूर्व राष्ट्रपति चुनाव की वकालत की है.
माक्रों को अब जल्द ही एक नया प्रधानमंत्री नियुक्त करना होगा. संभावित उम्मीदवारों में रक्षा मंत्री सेबास्टियन लेकॉर्नू, मध्यमार्गी सहयोगी फ्रांस्वा बेयरू और पूर्व समाजवादी प्रधानमंत्री बर्नार्ड कजेन्यूव का नाम सामने आ रहा है.
विशेषज्ञों का मानना है कि बार्निए से भी कम कार्यकाल के लिए नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया जा सकता है. विभाजित संसद में कानून पास करना, खासकर 2025 के बजट को लेकर, सबसे बड़ी चुनौती होगी.
कंजरवेटिव सांसद लॉरेंट वोक्वेज ने दक्षिणपंथियों और वामपंथियों को देश को अस्थिरता में धकेलने का दोषी ठहराया.
आर्थिक और सामाजिक असर
इस राजनीतिक संकट का असर फ्रांस के वित्तीय बाजारों पर तुरंत देखा गया. उधारी लागत में वृद्धि हुई है, और सीएसी 40 स्टॉक इंडेक्स में भारी गिरावट आई. निवेशक फ्रांस के वित्तीय स्थायित्व को लेकर चिंतित हैं, खासकर जब सरकार 2024 के लिए छह फीसदी जीडीपी घाटे का सामना कर रही है.
इसी बीच, गुरुवार से सार्वजनिक क्षेत्र की हड़तालें शुरू हो रही हैं, जिससे स्कूल, परिवहन और अन्य सेवाएं प्रभावित होंगी. कर्मचारी संघ बजट में प्रस्तावित कटौती का विरोध कर रहे हैं.
बेहद जटिल चुनाव के बाद सितंबर में प्रधानमंत्री बने बार्निए ने तर्क दिया कि बजट में 60 अरब यूरो की बचत का प्रस्ताव घाटे को कम करने के लिए जरूरी था. उन्होंने चेतावनी दी कि उनकी सरकार को खारिज करना फ्रांस की वित्तीय स्थिति के लिए दीर्घकालिक परिणाम पैदा करेगा.
फ्रांस का आंतरिक संकट ऐसे समय में सामने आया है जब यूरोपीय संघ पहले से ही जर्मनी की राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा है. यह स्थिति यूक्रेन युद्ध और अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप की वापसी जैसी भू-राजनीतिक चुनौतियों के साथ और गंभीर हो गई है.
फ्रांस के रक्षा मंत्री ने चिंता जताई है कि राजनीतिक उथल-पुथल का असर देश की यूक्रेन को समर्थन देने की क्षमता पर पड़ सकता है.
माक्रों की अगली रणनीति
माक्रों शनिवार को नोत्रे दाम कैथीड्रल के उद्घाटन से पहले अगले 24 घंटों में एक नया प्रधानमंत्री नियुक्त कर सकते हैं. इस उच्च-स्तरीय कार्यक्रम में अंतरराष्ट्रीय मेहमान शामिल होंगे, जिनमें अमेरिका के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए डॉनल्ड ट्रंप शामिल हैं.
कुछ पर्यवेक्षकों का मानना है कि माक्रों अंतरिम सरकार बनाए रख सकते हैं, जबकि लंबी अवधि के समाधान की तलाश की जाएगी. हालांकि, यह कदम विपक्षी दलों और जनता की आलोचना को बढ़ा सकता है.
अपने कार्यकाल के दो साल बाकी होने के बावजूद, माक्रों पर संकट से बाहर निकलने का दबाव बढ़ता जा रहा है. उनके इस्तीफे की मांग उनके नेतृत्व में विश्वास की कमी का प्रतीक बन गई है.
पिछले हफ्ते की घटनाएं माक्रों की अध्यक्षता और फ्रांस की राजनीतिक स्थिरता के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकती हैं.
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)