पाकिस्तान: हत्या, फांसी, तख्तापलट..75 साल में बनें 29 प्रधानमंत्री, लेकिन कोई भी पूरा नहीं कर पाया 5 साल का कार्यकाल, जानें अधूरे सफर की पूरी कहानी
क्या आप जानते हैं, 1947 में आजादी के बाद से पाकिस्तान में अब तक 29 प्रधानमंत्री हो चुके हैं. लेकिन विडंबना ये है कि इनमें से कोई भी अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सका. ये आंकड़ा पाकिस्तान की राजनीतिक व्यवस्था में मौजूद अस्थिरता की कहानी बयां करता है.
Instability in Pakistan Politics: पाकिस्तान में 8 फरवरी 2024 को आम चुनाव के लिए मतदान होना है. मगर क्या आप जानते हैं, 1947 में आजादी के बाद से पाकिस्तान में अब तक 29 प्रधानमंत्री हो चुके हैं. लेकिन विडंबना ये है कि इनमें से कोई भी अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सका. ये आंकड़ा पाकिस्तान की राजनीतिक व्यवस्था में मौजूद अस्थिरता की कहानी बयां करता है.
पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की 1951 में हत्या कर दी गई थी. इसके बाद कई प्रधानमंत्रियों को या तो बर्खास्त कर दिया गया या फिर उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. सैन्य शासन और राष्ट्रपति शासन के दौर भी आए.
1. हिंसक अंत:
लियाकत अली खान (1947-51): पहले प्रधानमंत्री की 1951 में हत्या।
2. सैन्य हस्तक्षेप:
जनरल अयूब खान (1958-69): राष्ट्रपति को हटाकर तख्तापलट.
जनरल जिया-उल-हक (1977-88): मार्शल लॉ लगाकर सत्ता हथिया ली.
परवेज मुशर्रफ (1999-2002): तख्तापलट के बाद राष्ट्रपति, 2002 में प्रधानमंत्री बनेय
3. संवैधानिक उलटफेर और कानूनी दखल:
जुल्फिकार अली भुट्टो (1973-77): फांसी.
बेनजीर भुट्टो (1988-90, 1993-96): बर्खास्तगी और भ्रष्टाचार के आरोप.
नवाज शरीफ (1990-93, 1997-99, 2013-17): बर्खास्तगी और अयोग्यता की घोषणा.
4. अविश्वास प्रस्ताव:
इमरान खान (2018-2022): अविश्वास प्रस्ताव से सरकार गिरी.
5. अन्य:
कुछ प्रधानमंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया या मृत्यु हो गई.
पाकिस्तान में 8 फरवरी 2024 को होने वाले आम चुनाव न सिर्फ नई सरकार का चुनाव करेंगे बल्कि ये चुनाव पाकिस्तान के लोकतंत्र के लिए भी एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकते हैं. पाकिस्तान के लिए ये चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि पिछले कुछ सालों में देश की आर्थिक स्थिति काफी खराब रही है. महंगाई आसमान छू रही है और बेरोजगारी की दर भी लगातार बढ़ रही है. ऐसे में लोगों को उम्मीद है कि नई सरकार इन समस्याओं का समाधान करेगी और देश को आगे बढ़ाएगी.
लेकिन राजनीतिक स्थिरता के बिना आर्थिक विकास की उम्मीद करना बेमानी है. पाकिस्तान की समस्या यही है कि यहां लगातार बदलती हुई सरकारें कोई दीर्घकालिक नीतियां नहीं बना पाती हैं, जिसका खामियाजा देश को भुगतना पड़ता है.
तो क्या इस बार पाकिस्तान के लोग एक स्थिर और मजबूत सरकार चुनेंगे? इसका जवाब तो चुनाव परिणाम ही देंगे. लेकिन इतना जरूर है कि आगामी चुनाव पाकिस्तान के लिए एक निर्णायक मोड़ हैं. इन चुनावों के नतीजे न सिर्फ अगले कुछ सालों बल्कि आने वाले दशकों को भी प्रभावित कर सकते हैं.