बड़े जानवरों के चेहरे लंबे क्यों होते हैं?
घोड़े का चेहरा गधे से लंबा.
घोड़े का चेहरा गधे से लंबा. गधे का बकरी से और बकरी का कुत्ते से लंबा. एक ढांचा साफ नजर आता है कि बड़े जानवरों के चेहरे ज्यादा लंबे होते हैं. वैज्ञानिकों ने इस पर शोध किया और पता लगाया कि ऐसा क्यों होता है.केंब्रिज यूनिवर्सिटी की पत्रिका बायोलॉजिकल रिव्यूज में छपे एक शोधपत्र में डॉ. रेक्स मिचेल, एमा शेरट और वेरा वाइजबेकर ने शरीर के आकार का चेहरे की लंबाई से संबंध बताया है. वैज्ञानिक कहते हैं कि यह विषय अजीब लग सकता है लेकिन स्तनधारी जीवों के विकास की यात्रा में यह एक अहम सवाल है. ऐसा इसलिए है क्योंकि लंबे चेहरे वाले जानवरों का अस्तित्व बेवजह नहीं है.
ऑस्ट्रेलिया की फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी में वैज्ञानिक डॉ. रेक्स मिचेल और वेरा वाइजबेकर और एडिलेड यूनिवर्सिटी में सीनियर रिसर्च फेलो एमा शेरट अपने शोध पत्र में इसे ‘कैरिनोफेसियल इवॉल्यूशनरी एलोमीट्री' या सेरा (CERA) प्रभाव नाम देते हैं.
वे कहते हैं, "एक दूसरे से एकदम जुदा प्रकार के जानवरों में भी यह प्रभाव देखा जा सकता है. मसलन, बिल्लियों, चूहों, हिरणों, कंगारुओं या कुछ बंदरों में. अगर आप भेड़ के चेहरे को गाय से या हिरण के चेहरे की किसी घोड़े से तुलना करेंगे तो आप सेरा प्रभाव देख सकते हैं.”
क्या है सेरा प्रभाव?
सेरा प्रभाव के सरेआम पाए जाने के बावजूद इसकी कोई व्याख्या उपलब्ध नहीं है. एक तर्क यह दिया जाता है कि यह खोपड़ी के विकास का असर हो सकता है जहां जैसे-जैसे स्तनधारियों का शरीर बड़ा होता है, उनका चेहरा लंबा होता जाता है.
लेकिन अपने शोध में वैज्ञानिक इस तर्क की समस्याएं बताते हैं. वे कहते हैं कि बहुत से ऐसे मामले हैं जिनमें सेरा प्रभाव मौजूद ही नहीं है या फिर इसका उलटा भी होता है. वे तस्मानियन डेविल या समुद्री ऊदबिलाव और उनके रिश्तेदारों के नाम देते हैं, जिनके शरीर तो बहुत बड़े हैं लेकिन चेहरे तुलनात्मक रूप से छोटे हैं.
इसके उलट कई तरह के ऐसे जीव हैं जिनके शरीर छोटे हैं लेकिन चेहरे लंबे हैं जैसे हनी पोसम या कुछ तरह के चमगादड़. यानी स्पष्ट कि सिर्फ शरीर बड़ा हो जाने से चेहरा लंबा नहीं होता.
वैज्ञानिक लिखते हैं, "जिन जानवरों में सेरा प्रभाव नहीं होता, अक्सर उनका खान-पान बहुत ज्यादा अलग होता है. उदाहरण के लिए ओर्का छोटी मछलियों की जगह बड़े शिकार करते हैं जबकि तस्मानियन डेविल को हड्डियां तोड़ने में महारत हासिल है.”
इतना आम क्यों है सेरा प्रभाव?
इस सवाल के जवाब में वैज्ञानिक एक नया सिद्धांत देते हैं. वे कहते हैं कि जवाब इस सीधी बात से जुड़ा है कि जानवर खाने के लिए अपने चेहरे का इस्तेमाल किस तरह करते हैं. एक-दूसरे की प्रजाति से करीब जानवर आमतौर पर एक ही तरह का खाना खाते हैं. मसलन भेड़ और गाय घास खाती हैं लेकिन भेड़ का आकार छोटा होता है तो उन्हें अपने जबड़ों और जबड़े की मांसपेशियों को ज्यादा जोर से दबाना पड़ता है.
वैज्ञानिक कहते हैं, "छोटे चेहरे ज्यादा जोर से दबाने में ज्यादा सक्षम होते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि दांतों और जबड़े की कोशिकाओं के बीच अंतर कम होता है. चिमटे भी इसी नियम पर काम करते हैं. आपके हाथ सिरे के जितने करीब होंगे, आपकी पकड़ उतनी ज्यादा मजबूत होगी.”
यानी छोटे चेहरों की मौजूदगी का जवाब तो आसान है. जटिल सवाल है कि अगर छोटे चेहरों से चबाना इतना आसान है तो फिर बड़े जानवरों के चेहरे बड़े क्यों हो जाते हैं. वैज्ञानिक इस सवाल के जवाब में कहते हैं कि बड़े प्राणियों की कोशिकाएं कुदरती तौर पर बड़ी होती हैं इसलिए वे ज्यादा आसानी से चबा सकते हैं. यानी अपने छोटे रिश्तेदारों की तुलना में चबाने में उन्हें कम मेहनत करनी पड़ती है.
बड़े जानवरों के चेहरे बड़े क्यों?
वैज्ञानिकों के शब्दों में, "बड़े स्तनधारी लंबी खोपड़ी वहन कर सकते हैं जो कई तरह की परिस्थितियों में उनके काम आती है. मसलन, फूल-पत्ते खाने वाले जानवरों के लिए लंबा चेहरा फायदेमंद होता है क्योंकि वे ज्यादा पत्तों तक पहुंच सकते हैं और मुंह में एक साथ ज्यादा पत्ते भर सकते हैं. मांसाहारी जानवरों में लंबा मुंह होने से ज्यादा दांत मुंह में आ सकते हैं या फिर जबड़ा जल्दी बंद हो सकता है.”
साथ ही, खान-पान की आदतें भी सेरा प्रभाव की व्याख्या करती हैं. मसलन, कुत्ता प्रजाति के प्राणियों में छोटे शिकार करने वाली लोमड़ियां भी होती हैं और बड़े शिकार करने वाले भेड़िये भी. अपने-अपने खान-पान के हिसाब से दोनों तरह के जीवों में सेरा प्रभाव काम करता है. यानी लोमड़ियों के प्रजाति-समूह में बड़े जानवरों के बड़े चेहरे होते हैं जबकि भेड़िये आकार में भेड़ों से बड़े होने के बावजूद छोटे चेहरे वाले होते हैं क्योंकि वे बड़े शिकार करते हैं इसलिए उन्हें ज्यादा मजबूत जबड़े चाहिए.