जलवायु परिवर्तन के कारण टर्बुलेंस के मामले डेढ़ गुना हुए
विशेषज्ञों का कहना है कि जैसे-जैसे धरती का तापमान बढ़ रहा है, उड़ते हुए विमानों में टर्बुलेंस यानी विक्षोभ की घटनाएं भी बढ़ रही हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि जैसे-जैसे धरती का तापमान बढ़ रहा है, उड़ते हुए विमानों में टर्बुलेंस यानी विक्षोभ की घटनाएं भी बढ़ रही हैं.जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स नामक पत्रिका में छपे एक शोध पत्र में ब्रिटेन की रीडिंग यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने बताया है कि साफ हवा में होने वाली टर्बुलेंस के मामले बीते दशकों में खासे बढ़ गये हैं.
अपने शोध में वैज्ञानिकों ने पाया है कि एक नॉर्थ अटलांटिक विमान मार्ग पर 1979 से 2020 के बीच मामले 55 फीसदी बढ़ गये हैं. वैज्ञानिकों के मुताबिक ऐसा कार्बन उत्सर्जन के कारण हो रहा है क्योंकि ऊंचाई पर हवा गर्म हो गई है जिस कारण उसकी रफ्तार बदल गयी है.
इसी टीम ने दो साल पहले एक अध्ययन में कहा था कि जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाले सालों में क्लीन एयर टर्बुलेंस (कैट) के मामलों में 149 फीसदी तक वृद्धि हो सकती है.
क्या कहता है अध्ययन?
ताजा अध्ययन में सहायक शोधकर्ता रीडिंग यूनिवर्सिटी में वातावरण विज्ञानी प्रोफेसर पॉल विलियम्स ने बीबीसी को दिये एक इंटरव्यू में कहा, "एक दशक के अध्ययन के बाद पता चला कि जलवायु परिवर्तन से साफ हवा में टर्बुलेंस के मामले भविष्य में बढ़ेंगे. अब हमारे पास इस बात के सबूत हैं कि ऐसा होना शुरू हो चुका है.”
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प्रोफेसर विलियम्स की सलाह है कि कंपनियों को टर्बुलेंस का पूर्वानुमान लगाने वाली तकनीकों में ज्यादा निवेश करना चाहिए ताकि आने वाले दशकों में हवाई यात्राएं दूभर ना हो जाएं.
इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि अमेरिका और नॉर्थ अटलांटिक के विमान मार्गों में टर्बुलेंस सबसे अधिक बढ़ी है. यूरोप, मध्य पूर्व और साउथ अटलांटिक में भी टर्बुलेंस में वृद्धि देखी गयी.
प्रोफेसर विलियम्स के मुताबिक टर्बुलेंस में वृद्धि की वजह जेट स्ट्रीम में हवा की रफ्तार में ज्यादा अंतर है. जेट स्ट्रीम पृथ्वी की सतह से 8 से 10 किलोमीटर की ऊंचाई पर पश्चिम से पूर्व की ओर बहने वाली हवा की धाराएं होती हैं. ये धाराएं भूमध्य रेखा और ध्रुवों के बीच तापमान के अंतर के कारण बनती हैं.
अपने अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों ने उपग्रहों से मिले आंकड़ों का इस्तेमाल किया. हालांकि उपग्रह टर्बुलेंस नहीं देख सकते लेकिन वे जेट स्ट्रीम का आकार और ढांचा देख सकते हैं, जिसका विश्लेषण किया जा सकता है.
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विमानों की गतिविधियों पर नजर रखने वाले रेडार तूफान आदि के कारण होने वाली टर्बुलेंस को तो पकड़ सकते हैं लेकिन साफ हवा में होने वाली टर्बुलेंस को पकड़ना बेहद मुश्किल होता है.
क्या हैं परेशानियां?
हवाई यात्रा में टर्बुलेंस ना सिर्फ यात्रियों के लिए परेशानी का सबब होती हैं बल्कि बहुत ज्यादा टर्बुलेंस होने पर कई बार यात्री चोटिल भी हो जाते हैं. आमतौर पर जब मौसम खराब होता है तो विमान चालक यात्रियों को सावधान कर देते हैं और वे अपनी कुर्सी की पेटी बांध लेते हैं. लेकिन साफ हवा में होने वाली टर्बुलेंस एकदम आती है और उसका पता नहीं चलता. इसलिए लोगों को चोट लगने की संभावना ज्यादा होती है.
प्रोफेसर विलियम्स कहते हैं कि उनके शोध से किसी तरह का डर पैदा नहीं होना चाहिए. वह कहते हैं, "ऐसा नहीं है कि लोग हवाई यात्रा करना ही बंद कर दें. लेकिन अपनी सीटों की पेटी को हर वक्त बांधे रहना समझदारी होगी. पायलट भी ऐसा ही करते हैं. इससे आप टर्बुलेंस के दौरान लगभग पूरी तरह सुरक्षित रहेंगे.”
टर्बुलेंस के कारण विमानन कंपनियों को खासा आर्थिक नुकसान होता है. सिर्फ अमेरिका में टर्बुलेंस के कारण विमानों को जो नुकसान होता है, उससे कंपनियों को 15 से 50 करोड़ डॉलर तक का घाटा होता है.
इसलिए विमानन कंपनियां साफ हवा में होने वाली टर्बुलेंस का पूर्वानुमान लगाने पर काफी काम कर रही हैं. इसके लिए मौसम विज्ञान पर काम करने वाली कंपनियां ऐसी तकनीकें विकसित करने पर शोध कर रही हैं. कुछ सिस्टम उपलब्ध भी हैं जो क्लीन एयर टर्बुलेंस का कुछ हद तक पूर्वानुमान लगा सकते हैं.
हवाइयन एयरलाइंस ने एडी डिसिपेशन रेट (ईडीआर) आधारित सिस्टम इस्तेमाल किया है जो हर तरह की ऊंचाई पर एकदम साफ विजिबिलिटी उपलब्ध कराता है. इस तरह पायलटों को आने वाली गड़बड़ी का पहले ही पता चल जाता है और वे उचित उपाय कर लेते हैं.