पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा खतरा है स्मार्टफोन!
दुनियाभर में स्मार्टफोन यूजर्स की तादाद में तेजी इजाफा हो रहा है जिसके साथ-साथ पर्यावरण को होनेवाली हानी में भी बढोत्तरी हो रही है. हालिया एक अध्ययन में कहा गया है कि 2040 तक स्मार्टफोन्स और डेटा सेंटर पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा खतरा बन जाएंगी.
नई दिल्ली: दुनियाभर में स्मार्टफोन यूजर्स की तादाद में तेजी इजाफा हो रहा है जिसके साथ-साथ पर्यावरण को होनेवाली हानी में भी बढोत्तरी हो रही है. हालिया एक अध्ययन में कहा गया है कि 2040 तक स्मार्टफोन्स और डेटा सेंटर जैसी इन्फार्मेशन टेक्नोलॉजी पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा खतरा बन जाएंगी.
कनाडा की मैकमास्टर यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स द्वारा किए गए अध्यन में कहा गया है कि स्मार्टफोन्स और डेटा सेंटर जैसी इन्फार्मेशन टेक्नोलॉजी का प्रदूषण में 1.5% योगदान है लेकिन अगर यही ट्रेंड चलता रहा तो 2040 तक 14% हो सकता है. शोधकर्ताओं ने रिसर्च में 2005 तक के स्मार्टफोन, लैपटॉप, टैबलेट के साथ-साथ डेटा सेंटर्स और कम्यूनिकेशन नेटवर्क जैसी डिवाइसेज के कार्बन फुटप्रिंट की स्टडी की गई है.
मैकमास्टर के असोसिएट प्रफेसर लॉफी बेलखिर के मुताबिक, 'अभी प्रदूषण में इसका योगदान 1.5 पर्सेंट का है. यह दुनियाभर के ट्रांसपॉर्टेशन सेकटर का लगभग आधा होगा. आप जब भी कोई टेक्स्ट मैसेज, फोन कॉल, विडियो अपलोड या डाउनलोड करते हैं तो यह सब एक डेटा सेंटर के कारण ही संभव हो पाता है.'
उन्होंने कहा, 'टेलिकम्यूनिकेशन्ज नेटवर्क और डेटा सेंटर को काम करने के लिए काफी बिजली की जरूरत होती है और ज्यादातर डेटा सेंटर्स को जीवाश्म ईंधन के जरिए ऊर्जा की सप्लाई की जाती है. यह ऊर्जा की खपत है जो हमें नहीं दिखाई देती है.' जर्नल ऑफ क्लीनर प्रॉडक्शन में पब्लिश इस स्टडी में कहा गया है कि 2020 तक पर्यावरण को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाली डिवाइस स्मार्टफोन्स होंगे.
गौरतलब है की भारत में भी स्मार्टफोन यूजर की तादाद इस साल के अंत तक 33 करोड़ के पार हो जाएगी. मार्केट रिसर्च कंपनी ईमार्केटर ने बताया कि इस साल भारत में स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने वालों की तादाद देश की एक चौथाई आबादी से ज्यादा होगी. ईमार्केटर के पूर्व अनुमान से नई रिपोर्ट में भारत में स्मार्टफोन यूजर की तादाद में 3.1 करोड़ का इजाफा हुआ है.
इन डिवाइसेज में एनर्जी की खपत बहुत कम होती है लेकिन इनके उत्पादन करने से 85 पर्सेंट तक प्रदूषण होता है. साथ ही इन डिवाइसेस की लाइफ भी कम होने के कारण फिर से इनका उत्पादन किया जाता है जिससे और ज्यादा प्रदूषण बढता है.