दक्षिण एशिया में टाइप 2 डायबिटीज का खतरा ज्यादा
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

एक नई रिसर्च से पता चला है कि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे दक्षिण एशियाई देशों के लोगों में यूरोपीय लोगों की तुलना में टाइप 2 डायबिटीज होने का खतरा चार गुना ज्यादा होता है.द लैंसेट पत्रिका में छपी रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में 82.8 करोड़ वयस्क टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित हैं. 1990 से 2022 के बीच 63 करोड़ लोग इसकी चपेट में आए.

रिसर्च से पता चला है कि डायबिटीज से दक्षिण एशियाई देशों के लोग खास तौर से परेशान हैं. एक यूरोपीय नागरिक की तुलना में दक्षिण एशियाई शख्स को टाइप टू डायबिटीज होने का खतरा चार गुना ज्यादा है.

रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण एशियाई लोग दूसरे समुदायों की तुलना में औसतन दस साल पहले टाइप 2 डायबिटीज की चपेट में आ जाते हैं.

दोगुने हो गए हैं डायबिटीज के मरीज, भारत में सबसे ज्यादा

लंदन के क्वीन मैरी विश्वविद्यालय में महामारी विशेषज्ञ मोनीजा सिद्दिकी का कहना है, "भारत और पाकिस्तान में टाइप 2 डायबिटीज बहुत तेजी से बढ़ रहा है. आंकड़े बताते हैं कि दुनिया भर में होने वाले टाइप 2 डायबिटीज के 33 फीसदी मरीज (प्रवासी और गैर-प्रवासी दोनों) दक्षिण एशियाई देशों में मौजूद हैं."

भारत में टाइप 2 डायबिटीज के 21.20 करोड़ और पाकिस्तान में 3 करोड़ से ज्यादा मरीज मौजूद हैं. इनमें से आधे से ज्यादा का इलाज भी नहीं हो पाता है.

दक्षिण एशियाई क्यों खतरे में हैं

डायबिटीज एक लंबे समय तक चलने वाली बीमारी है. यह तब होती है जब अग्न्याशय ठीक से काम नहीं करता और पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पाता है.

इंसुलिन खून में मौजूद शुगर के स्तर को नियंत्रित करने वाला हार्मोन है, जो ग्लूकोज को कोशिकाओं तक पहुंचाता है.

मानव शरीर के संचालन के लिए ऊर्जा की जरूरत पड़ती है और यह काम कोशिकाएं करती हैं. इंसुलिन की कमी होने पर कोशिकाओं तक पर्याप्त ग्लूकोज नहीं पहुंच पाता है. लंबे समय तक ऐसा होने पर शरीर को नुकसान पहुंच सकता है.

डायबिटीज का इलाज खोजने में बड़ी कामयाबी

क्या है टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज

टाइप 1 डायबिटीज में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली अग्न्याशय में बीटा कोशिकाओं पर हमला करती है, जिससे इंसुलिन का बनना कम हो जाता है.

डायबिटीज से पीड़ित कुल मरीजों में 96 फीसदी टाइप 2 डायबिटीज की चपेट में आते हैं. यह समय के साथ आहार, शरीर और उम्र जैसे कारकों के जरिए विकसित होता है.

आनुवांशिक कारण यानी परिवार में मां बाप में किसी को ऐसी समस्या होने पर उनके बच्चों या आगे की पीढ़ियों में भी टाइप 2 डायबिटीज होने का खतरा बढ़ जाता है.

ब्रिटिश एशियाई लोगों पर ज्यादा प्रभाव

नेचर मेडिसिन पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि आनुवांशिकी की वजह से यूरोपीय लोगों की तुलना में दक्षिण एशियाई आबादी में डायबिटीज जल्दी होता है.

इस अध्ययन के लिए ब्रिटिश मूल के पाकिस्तानी या बांग्लादेशी लोगों के आनुवांशिक आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया. इससे पता चला कि ऐसे लोगों के जीवन काल में अग्न्याशय द्वारा इंसुलिन ना बना पाने का आनुवंशिक जोखिम ज्यादा था.

मोटापा कम करने में कितनी कारगर है वीगोवी और ओजेंपिक दवा

अध्ययन से यह भी पता चला कि दक्षिण एशियाई लोगों में कुछ ऐसे जीन पाए जाते हैं जिनकी वजह से शरीर के प्रतिकूल हिस्सों के आसपास वसा जमा हो जाती है.

सिद्दिकी का कहना है, "दक्षिण एशियाई लोगों का बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) सामान्य रहने की संभावना ज्यादा होती है, लेकिन शरीर के सुरक्षित हिस्सों जैसे- जांघ या बांहों के बजाए, वसा लिवर और दूसरे अंगों के पास जमा होता है."

अध्ययन में पता चला कि ये आनुवंशिक जोखिम ही दक्षिण एशियाई लोगों में टाइप 2 डायबिटीज की शुरुआत और दवाओं के असर ना करने का प्रमुख कारण था.

वायु प्रदूषण भी जिम्मेदार

अध्ययन से यह भी पता चला है कि हवा में मौजूद पीएम 2.5 कणों की वजह से भी टाइप 2 डायबिटीज का जोखिम बढ़ जाता है.

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि टाइप 2 डायबिटीज से जुड़े 50 फीसदी मामले उच्च बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) से जुड़े होते हैं. इसके अलावा प्रोसेस्ड मांस जैसे कुछ खाद्य पदार्थों का ज्यादा मात्रा में सेवन भी इसकी वजह है.

विशेषज्ञ कहते हैं कि दैनिक व्यायाम और ज्यादा खाने में ज्यादा चीनी से परहेज कर के डायबिटीज के जोखिम को कम किया जा सकता है.