होमो सेपियंस थे मैमथ के खात्मे के जिम्मेदारः शोध

मैमथ यानी विशालकाय प्राचीन हाथी कैसे खत्म हुए, इस पर विज्ञान जगत में एक राय नहीं है.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

मैमथ यानी विशालकाय प्राचीन हाथी कैसे खत्म हुए, इस पर विज्ञान जगत में एक राय नहीं है. एक नया शोध बताता है कि उनकी विलुप्ति में सबसे बड़ा हाथ होमो सेपियंस का था.विज्ञान बताता है कि लगभग 20,000 साल पहले, प्राचीन हाथी या मैमथ और उनके रिश्तेदार धरती पर बहुत बड़ी संख्या में मौजूद थे. लेकिन लगभग 10,000 साल पहले, ये पूरी तरह से विलुप्त हो गए, जबकि वे लाखों वर्षों तक पृथ्वी पर जीवित रहे थे.

इसकी एक बड़ी वजह जलवायु में हुए परिवर्तन को माना जाता है क्योंकि लगभग 11,000 साल पहले, पृथ्वी पर हिमयुग समाप्त हो गया था. लेकिन एक नए अध्ययन ने पाया है कि धरती का तापमान बढ़ना मैमथ के खत्म होने की मुख्य वजह नहीं था.

‘साइंस अडवांसेज' पत्रिका में प्रकाशित इस नए विश्लेषण के मुताबिक प्रारंभिक प्रोबोसाइडीन यानी हाथी, फर वाले मैमथ और उनके लंबे-नाक वाले रिश्तेदारों के पतन का संबंध इंसानों के आने और बढ़ने से है.

होमो सेपियंस का असर

स्विट्जरलैंड के फ्राइबर्ग विश्वविद्यालय के पारिस्थितिकीविद् टॉर्स्टन हॉफे की अगुआई में हुए इस शोध के मुताबिक, "होमो सेपियंस के उदय ने विलुप्ति की दर को तेज कर दिया, जबकि क्षेत्रीय जलवायु का प्रभाव कम था."

शोधकर्ता कहते हैं कि उनका मॉडल पृथ्वी पर जीवन की विविधता को समझने के लिए एक नया दृष्टिकोण देता है. एक प्रजाति का विलुप्त होना अक्सर एक ही कारण का परिणाम नहीं होता, बल्कि कई परिस्थितियों का एक क्रम होता है जो किसी विशिष्ट जीव के जीवित रहने में बाधा डालता है. जीवन के लिए असहज वातावरण, भोजन की कमी और प्रतिस्पर्धा और अन्य प्रजातियों द्वारा शिकार जैसे कारक मिलकर उस प्रजाति की विलुप्ति का कारण बनते हैं.

विज्ञान बता चुका है कि आदिमानवों ने मैमथ का शिकार किया था. कई जगहों पर खुदाइयों में इन विशालकाय हाथियों की हड्डियां मिली हैं जिन पर कटने और मांस छीले जाने के निशान हैं. लेकिन शोधकर्ताओं के बीच इस बात पर एकराय नहीं है कि इस शिकार ने इन जानवरों के विलुप्त होने में कितना योगदान दिया.

हॉफे और उनकी टीम ने यह जांचने की कोशिश की कि क्या आधुनिक मानवों के आगमन और मैमथ के पतन के बीच कोई संबंध पाया जा सकता है.

कैसे हुआ शोध

इसके लिए, उन्होंने एक न्यूरल नेटवर्क का उपयोग किया. उन्होंने एक एल्गोरिदम को प्रशिक्षित किया जो जीवाश्म रिकॉर्ड को स्कैन करता है, प्रोबोसाइडीन प्रजातियों की घटती संख्या को मापता है और इन संख्या को उनके पर्यावरणीय कारकों से मिलाता है.

गोल हो गया है इंसान का दिमाग

मॉडल को 2,118 जीवाश्मों के डेटा पर प्रशिक्षित किया गया जो 3.5 करोड़ से 10,000 साल पहले तक जीवित थे. इनमें उनके दांतों के आकार जैसे रूपात्मक बदलाव शामिल थे. मॉडल ने 17 संभावित कारकों को देखा जो इन जानवरों की जनसंख्या को प्रभावित कर सकते थे. इनमें जलवायु और पर्यावरणीय डेटा तो शामिल था ही, साथ ही आधुनिक मानवों यानी होमो सेपियंस के विकास से भी तुलना की गई. 1,29,000 साल पहले होमो सेपियंस का आगमन हुआ था.

शुरुआत में, विविधता अपेक्षाकृत कम थी, लेकिन जैसे-जैसे जनसंख्या ने नए वातावरण और आहार के अनुसार अपने आप को ढाला, उनमें विशेष बदलाव धीरे-धीरे उभरने लगे. ऐसा नियोजीन काल के अंत में विशेष रूप से हुआ था. उस दौर में अलग-अलग प्रजातियों के दांतों के विकास से पता चलता है कि खाने की विविधता बढ़ गई थी.

इंसान के आने से बिगड़ी स्थिति

जब इंसान का प्रवेश हुआ तो स्थिति बिगड़ गई और विलुप्ति की दर तेजी से बढ़ी. होमो सेपियंस के आगमन के साथ विलुप्ति दर में 17 गुना वृद्धि हुई जबकि अन्य कारकों का प्रभाव कम था. शोध में जलवायु को इन कारकों में चौथे स्थान पर रखा गया है, जो विलुप्ति दर में केवल मामूली वृद्धि का जिम्मेदार था.

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इससे शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि प्रोबोसाइडीन की विलुप्ति में इंसान द्वारा शिकार एक बड़ी वजह हो सकता है. वे लिखते हैं, "हमारा मॉडल, सभी अन्य कारकों का ध्यान रखते हुए मानवों के प्रभाव को अलग करता है. यह दिखाता है कि आदिमानवों और होमो सेपियंस के कारण अनुमानित 5 से 17 गुना वृद्धि में अन्य कारकों का प्रभाव नहीं है."

शोधकर्ता कहते हैं कि हमने पाया कि पिछले लगभग 1,20,000 वर्षों में इंसान का प्रभाव सबसे अधिक रहा लेकिन शुरुआती मानवों का प्रभाव भी कुछ हद तक रहा है. यह निष्कर्ष उस सिद्धांत को और मजबूत करता है कि इंसान ने जैवविविधता को बड़ी हानि पहुंचाई है.

रिपोर्टः विवेक कुमार (एएफपी)

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