नाजी अत्याचार में डॉक्टरों की भी थी अहम भूमिका
एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार कि जर्मनी में नाजी शासन के दौरान 3,50,000 से ज्यादा लोगों की नसबंदी की गई थी.
एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार कि जर्मनी में नाजी शासन के दौरान 3,50,000 से ज्यादा लोगों की नसबंदी की गई थी. इसमें डॉक्टरों और चिकित्सा क्षेत्र के अन्य पेशेवरों की भी भूमिका थी. उस दौर की घटना से आज के डॉक्टर सबक ले सकते हैं.ऑस्ट्रिया के वियना मेडिकल यूनिवर्सिटी के हेरविग चेक कहते हैं, "यह आश्चर्य की बात है कि मौजूदा समय में चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लोगों को नाजियों के चिकित्सा अपराध के बारे में काफी कम जानकारी है. उन्हें आउशवित्स में योसेफ मेंगेले के प्रयोगों के अलावा शायद किसी अन्य बात की जानकारी नहीं है.” इसलिए, हेरविग चेक और उनके सहयोगियों ने तीन साल पहले प्रसिद्ध मेडिकल जर्नल द लैंसेट के प्रधान संपादक को एक नया आयोग बनाने का सुझाव दिया था.
उन्होंने योजना बनाई कि नाजी शासन के चिकित्सा अपराधों के बारे में लोगों को जानकारी दी जाए. इससे चिकित्सा के क्षेत्र से जुड़े लोग भी भविष्य के लिए किसी निष्कर्ष पर पहुंच पाएंगे. इस आयोग ने नवंबर 2023 में अपनी रिपोर्ट जारी की.
नाजी अत्याचारों की विस्तृत जानकारी
शोधकर्ताओं ने थर्ड राइष यानी कि 1933 से लेकर 1945 तक के नाजी जर्मनी में किए गए चिकित्सा अत्याचारों के ऐतिहासिक साक्ष्य इकट्ठा किए. इससे पता चलता है कि अत्याचार करने वालों की संख्या काफी ज्यादा थी. उन अत्याचारों के नतीजे आज भी महसूस किए जा सकते हैं.
रिपोर्ट से पता चलता है कि किस तरह डॉक्टरों और चिकित्सा क्षेत्र के विशेषज्ञों ने जबरन नसबंदी कानून बनाने में मदद की और 3,50,000 से ज्यादा लोगों की नसबंदी करने में शामिल रहे. इन लोगों को नाजियों के नस्ल कानून के तहत ‘आनुवंशिक रूप से निम्न' माना गया था. जिन लोगों की नसबंदी की गई उनमें से काफी लोगों पर शारीरिक और मनोवैज्ञानिक रूप से गंभीर असर पड़ा. इनमें से काफी लोगों की मौत हो गई.
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी और उसके कब्जे वाले इलाकों में दिमागी असंतुलन, मानसिक और शारीरिक विकलांगता वाले कम से कम 2,30,000 लोगों की ‘इच्छा मृत्यु कार्यक्रमों' के तहत हत्या कर दी गई थी. उदाहरण के लिए, कंसंट्रेशन कैंप में कैद दसियों हजार लोगों पर मेडिकल परीक्षण किए गए.
अपराधों को जायज ठहराने के लिए युजिनिक्स का इस्तेमाल
इन अत्याचारों को जायज ठहराने के लिए, नाजियों की नस्लीय विचारधारा को छद्म-वैज्ञानिक प्रमाणिकता के तौर पर इस्तेमाल किया गया था. नाजियों ने युजिनिक्स के आधार पर इसे ‘नस्लीय स्वच्छता' कहा था. युजिनिक्स के तहत माना जाता था कि चयनात्मक प्रजनन से मानव जाति में सुधार लाया जा सकता है. यह सिद्धांत चार्ल्स डार्विन के काम पर आधारित था, जिन्होंने 19वीं शताब्दी के मध्य में मानव विकास का अपना सिद्धांत (थियरी ऑफ इवोल्यूशन) प्रकाशित किया था.
इस सिद्धांत के मुताबिक, किसी प्रजाति के केवल सबसे योग्य सदस्य ही प्राकृतिक चयन की प्रक्रिया में जीवित रहते हैं, जबकि अन्य गायब हो जाते हैं. युजिनिस्टों ने प्राकृतिक चयन के इस सिद्धांत को मानव समाज पर लागू किया. उनका लक्ष्य कथित तौर पर ‘अच्छे' वंशानुगत गुणों वाले लोगों के वंश को आगे बढ़ाना और ‘निम्न' वंशानुगत गुणों वाले लोगों के वंश को खत्म करना था.
सामाजिक बुराईयों के लिए ‘निम्न' गुण वालों को बनाया बलि का बकरा
जर्मनी और अन्य सभी जगहों पर सभी पार्टियों और सामाजिक वर्गों ने युजिनिक्स को विज्ञान के तौर पर स्वीकार किया. यहां तक कि शोधकर्ता और डॉक्टर भी इस बात से सहमत थे. इससे कथित तौर पर ‘निम्न' लोगों को काफी ज्यादा कष्ट झेलना पड़ा.
20वीं सदी की शुरुआत में जर्मनी में युजिनिक्स सिद्धांत को अपनी जड़ें जमाने में कोई परेशानी नहीं हुई, क्योंकि बहुत से लोग संघर्ष कर रहे थे. बड़े पैमाने पर बेरोजगारी थी. लोग गंदी जगहों पर रहने को मजबूर थे. अपराध में बेतहाशा वृद्धि हो रही थी. तेजी से बीमारियां फैल रही थीं और मृत्यु दर काफी ज्यादा बढ़ गई थी.
युजिनिक्स को मानने वालों का कहना था कि इस निराशाजनक स्थिति के लिए ‘निम्न जैविक पदार्थ' जिम्मेदार है. इन्होंने दावा किया कि समाज को विनाश से बचाने के लिए जबरन नसबंदी या ‘नालायक लोगों' की हत्या जैसे युजिनिकल उपाय अपनाने होंगे. युजिनिस्टों के मुताबिक, ‘नालायक लोगों' के लिए पर्याप्त धन, भोजन और जगह नहीं थी.
नस्ल के प्रति नाजियों का जुनून
नाजियों ने अपने नस्ल कानून को सही ठहराने के लिए युजिनिक्स को अपनाया. उन्होंने तथाकथित ‘नस्लीय रूप से शुद्ध आर्य बच्चों' के पालन-पोषण को प्रोत्साहित किया. साथ ही, वे चाहते थे कि कंसंट्रेशन कैंप में जबरन नसबंदी, इच्छा मृत्यु या व्यवस्थित तरीके से हत्या के जरिए ‘नालायक लोगों' को पूरी तरह खत्म कर दिया जाए. शोधकर्ता और डॉक्टर उनकी इन कोशिशों में सक्रिय तौर पर शामिल थे.
द लैंसेट की नई रिपोर्ट को तैयार करने के लिए 878 स्रोतों का इस्तेमाल किया गया और यह अब तक की अपनी तरह की सबसे विस्तृत रिपोर्ट है. इसमें नाजी शासन के दौरान चिकित्सा के क्षेत्र में किए गए अनुसंधान की जानकारी दी गई है. अपराधियों और पीड़ितों सहित कैद किए गए उन डॉक्टरों का चित्र है जिन्होंने मुश्किल हालात में अपने साथी कैदियों का इलाज किया.
इस्तेमाल में है नाजी काल की एनाटोमी की किताब
पूर्व में हुए अपराधों से निपटने के प्रयासों के बावजूद, कई अपराधियों और उनके सहयोगियों को युद्ध के बाद जिम्मेदार नहीं ठहराया गया या सिर्फ कुछ लोगों को कई वर्षों बाद सजा मिली. रिपोर्ट में पाया गया है कि नाजियों ने जिन जानकारियों को इकट्ठा किया उनका इस्तेमाल अक्सर बिना दोबारा जांचे किया जाता रहा है. उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रियाई एनाटोमिस्ट (शरीर रचना विज्ञानी) एडुआर्ड पर्नकॉप्फ की किताब आज भी इस्तेमाल की जाती है, क्योंकि इसमें विस्तृत जानकारी दी गई है. जबकि, नाजियों ने इस किताब में उन लोगों की तस्वीरें शामिल की थीं जिन्हें थर्ड राइष के दौरान मार डाला गया था.
आयोग का लक्ष्य डॉक्टरों और चिकित्सा कर्मचारियों को चिकित्सा से जुड़ी उन जानकारियों के स्रोत के बारे में बताना भी है जिनका वे इस्तेमाल करते हैं. आयोग के सह-अध्यक्ष और येरूशलम हिब्रू विश्वविद्यालय के शामुएल पिनहास राइष ने कहा, "मेडिकल छात्रों, शोधकर्ताओं और चिकित्सा पेशेवरों को पता होना चाहिए कि चिकित्सा ज्ञान की मूल बातों का स्रोत क्या है.”
भविष्य के लिए इस रिपोर्ट के मायने
आयोग की रिपोर्ट को लेखक पहले कदम के रूप में देखते हैं. वे विस्तृत ऑनलाइन दस्तावेज तैयार करने की योजना बना रहे हैं. आयोग की एक अन्य सह-अध्यक्ष और बॉस्टन स्थित हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की सबीने हिल्डेब्रांट ने कहा, "नाजियों ने चिकित्सा से जुड़े जो अत्याचार किए हैं वे इतिहास में मानवाधिकारों के उल्लंघन के सबसे क्रूर और उल्लिखित उदाहरणों में से एक हैं.”
सबिने हिल्डेब्रांट का कहना है, "हमें मानवता के सबसे बुरे इतिहास का अध्ययन करना चाहिए. इससे मौजूदा समय में उस तरह के मिलते-जुलते पैटर्न को पहचानने और उससे मुकाबला करने में मदद मिलती है.”