नए जेनेटिक वैरिएंट की खोज से मल्टीपल सेलेरोसिस के इलाज की संभावना बढ़ी

रिसर्चरों ने मल्टीपल सेलेरोसिस बीमारी की वजह से किसी व्यक्ति की स्थिति खराब होने से जुड़े जेनेटिक वैरिएंट की खोज की है.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

रिसर्चरों ने मल्टीपल सेलेरोसिस बीमारी की वजह से किसी व्यक्ति की स्थिति खराब होने से जुड़े जेनेटिक वैरिएंट की खोज की है. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि उनकी खोज से इस बीमारी के इलाज के लिए नए तरीके ईजाद हो सकते हैं.एक अंतरराष्ट्रीय शोध समूह ने मल्टीपल सेलेरोसिस (एमएस) बीमारी के बढ़ने से जुड़े पहले जेनेटिक वैरिएंट की खोज की है. सैन फ्रांसिस्को में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय (यूसीएसएफ) और ब्रिटेन के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में शोध समूह ने अलग-अलग जीनोम के हिसाब से अध्ययन करते हुए मल्टीपल सेलेरोसिस के करीब 22,000 रोगियों के डेटा का विश्लेषण किया. जेनेटिक वैरिएंट को खास लक्षणों से जोड़ने के लिए आंकड़ों का बेहद सावधानी से इस्तेमाल किया गया. इस अध्ययन के नतीजे बीते बुधवार को नेचर जर्नल में प्रकाशित किए गए.

अध्ययन में शामिल रिसर्चर बताते हैं कि मल्टीपल सेलेरोसिस के जिन रोगियों को यह वैरिएंट अपने माता-पिता, दोनों से विरासत में मिलता है उन्हें ऐसे रोगियों की तुलना में औसतन चार साल पहले ही छड़ी की मदद से चलना पड़ता है जिन्हें यह वैरिएंट माता-पिता से विरासत में नहीं मिलता.

यह जेनेटिक वैरिएंट दो जीनों के बीच पाया जाता है. इसमें से एक जीन क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की मरम्मत में शामिल होता है, तो दूसरा वायरल संक्रमण को नियंत्रित करता है. ये दोनों जीन मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी (स्पाइनल कॉर्ड) के भीतर सक्रिय होते हैं.

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में न्यूरोलॉजी के प्रोफेसर और नेचर में प्रकाशित अध्ययन के सह-वरिष्ठ लेखक स्टीफन सॉसर कहते हैं, "इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि आप मल्टीपल सेलेरोसिस से अच्छी तरह निपट रहे हैं या उसकी वजह से आपकी हालत खराब है. यह इससे काफी ज्यादा प्रभावित होता है कि आपका मस्तिष्क प्रतिरक्षा प्रणाली के हमलों से कितनी अच्छी तरह निपट सकता है. यह हमला मल्टीपल सेलेरोसिस के दौरान अक्सर होता है.

सॉसर ने 1990 के दशक के मध्य में मल्टीपल सेलेरोसिस पर अपनी पीएचडी थीसिस लिखी थी और तब से इस बीमारी को लेकर बड़े स्तर पर अध्ययन कर रहे हैं. नेचर के अध्ययन में इस जेनेटिक वैरिएंट की पहचान को लेकर जो जानकारी दी गई है वह मल्टीपल सेलेरोसिस को लेकर किए जा रहे अनुसंधान के क्षेत्र में एक बड़ी प्रगति है.

सॉसर ने डीडब्ल्यू को बताया, "मैंने इस पर कई दशकों तक काम किया है और यह मेरी अब तक की सबसे महत्वपूर्ण खोज है.”

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मल्टीपल सेलेरोसिस क्या है?

यह समझने के लिए कि जेनेटिक वैरिएंट से जुड़ी यह खोज इतनी महत्वपूर्ण और अन्य खोजों से अलग क्यों है, हमें मल्टीपल सेलेरोसिस के बारे में ज्यादा जानना होगा. यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसमें प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी पर हमला करती है.

ये हमले माइलिन को नुकसान पहुंचाते हैं. यह वसायुक्त पदार्थ तंत्रिका तंत्र के तंतुओं के चारों ओर सुरक्षात्मक परत के तौर पर काम करता है. माइलिन को नुकसान पहुंचने से आपके मस्तिष्क और शरीर के बाकी हिस्सों के बीच होने वाला संचार बाधित होता है. इससे आपकी नसें खराब हो सकती हैं, जिनका ठीक हो पाना मुश्किल होता है.

इसकी वजह से कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं, जैसे कि शरीर का कोई हिस्सा सुन्न हो जाना, मूड में बदलाव, याददाश्त से जुड़ी समस्याएं, दर्द, थकान, अंधापन या लकवा मारना.

मल्टीपल सेलेरोसिस की वजह से कोई व्यक्ति कितना गंभीर रूप से प्रभावित हो सकता है या कितनी बार इसकी चपेट में आ सकता है, यह हर रोगी के लिए अलग-अलग होता है.

सॉसर मल्टीपल सेलेरोसिस के रोगियों का इलाज भी करते हैं. वह कहते हैं, "कुछ रोगियों में कोई लक्षण नहीं होते हैं. कभी-कभी हमें पोस्टमार्टम के बाद इसके बारे में पता चलता है. कभी-कभी तो हमें पता भी नहीं चलता कि वे मल्टीपल सेलेरोसिस से पीड़ित थे.”

वह आगे कहते हैं, "उनमें काफी हल्के लक्षण हो सकते हैं, जो उन्हें कुछ समय के लिए परेशान करते हैं और फिर लंबे समय तक वापस नहीं आते. मेरे पास हाल ही में एक महिला आई थी, जिससे मैं पहली बार 15 साल पहले मिला था और अब वह दोबारा इतने समय बाद आयी. इस दौरान वह पूरी तरह ठीक थी. हालांकि, कभी-कभी कोई गंभीर रूप से भी प्रभावित हो सकता है. उसके बगल वाले बिस्तर पर जो महिला थी उसकी हालत काफी ज्यादा खराब हो गई थी. उसे खुद से खाना खाने में भी परेशानी होती थी.”

मल्टीपल सेलेरोसिस में जेनेटिक वैरिएंट क्यों महत्वपूर्ण है

मल्टीपल सेलेरोसिस से जुड़े जितने भी वैरिएंट की अब तक पहचान की गई है वे किसी व्यक्ति में इस रोग के विकसित होने के जोखिम का पता लगाने में मददगार हैं. हाल में जिस नए वैरिएंट की पहचान हुई है उससे यह पता लगाया जा सकता है कि कोई व्यक्ति इस बीमारी की वजह से कितना गंभीर रूप से प्रभावित हो सकता है. यह खोज, बीमारी के इलाज से जुड़े उपायों को ढूंढने के लिए महत्वपूर्ण है.

फिलहाल, एमएस से जुड़े लक्षणों से दोबारा प्रभावित होने से बचाने के लिए बाजार में कई दवाएं उपलब्ध हैं, लेकिन ऐसी कोई दवा नहीं है जिससे इस बीमारी को बढ़ने से रोका जा सके. इसका मतलब है कि कुछ रोगियों की स्थिति दूसरों की तुलना में तेजी से बिगड़ सकती है.

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यूसीएसएफ में न्यूरोलॉजी के प्रोफेसर और रिसर्च रिपोर्ट के सहलेखक सर्जियो बारानजिनी ने डीडब्ल्यू को एक ईमेल में लिखा, "एमएस के लक्षणों की फिर से वापसी को नियंत्रित करने के लिए विकसित की गई सभी दवाएं इम्यूनोमॉड्यूलेटरी (प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करने वाली) हैं, जो एमएस के जोखिम से जुड़े 200 से अधिक जेनेटिक वैरिएंट से मेल खाती हैं. बीमारी की गंभीरता से जुड़े नए जेनेटिक से पता चलता है कि नए चिकित्सा उपायों के तहत केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर ध्यान देना चाहिए.”

मल्टीपल सेलेरोसिस के इलाज की दिशा में प्रगति

तथ्य यह है कि रोगियों के जिस समूह में नए खोजे गए जेनेटिक वैरिएंट, माता और पिता दोनों से विरासत में मिले उन्हें चलने के लिए काफी कम समय में ही सहायता यानी छड़ी की जरूरत पड़ी. हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि इस वैरिएंट का इस्तेमाल हर रोगी की भविष्य की स्थिति बताने के लिए किया जा सकता है.

सॉसर का कहना है कि किसी रोगी को लेकर भविष्यवाणी करने से पहले कई और जेनेटिक वैरिएंट की पहचान करने की जरूरत है. इसलिए, जीनोम के आधार पर और ज्यादा अध्ययन करने की जरूरत है.

फिर भी, सॉसर का कहना है कि अब वे मल्टीपल सेलेरोसिस बढ़ने को लेकर एक खास वैरिएंट की ओर इशारा कर सकते हैं. साथ ही, उन्हें पता है कि इसमें मस्तिष्क के भीतर सामान्य रूप से सक्रिय जीन शामिल हैं. इसलिए, अब इस बात की ज्यादा संभावना है कि दवा कंपनियां इस बीमारी को बढ़ने से रोकने वाली दवा बनाने के लिए निवेश करना शुरू कर सकती है.

सॉसर ने कहा, "मल्टीपल सेलेरोसिस के रोगियों की सबसे बड़ी जरूरत दवा है. बिना दवा के इस बीमारी का इलाज नहीं हो सकता. और अब उस दवा के विकसित होने की संभावनाएं बन रही हैं.”

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