बृहस्पति के चंद्रमा पर बसने की संभावनाएं खोजेगा क्लिपर

नासा का क्लिपर अभियान बृहस्पति के चंद्रमा यूरोपा के सफर पर यह खोजने जा रहा है कि वहां इंसान के बसने लायक हालात हो सकते हैं या नहीं.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

नासा का क्लिपर अभियान बृहस्पति के चंद्रमा यूरोपा के सफर पर यह खोजने जा रहा है कि वहां इंसान के बसने लायक हालात हो सकते हैं या नहीं.अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा बृहस्पति के चंद्रमा यूरोपा पर एक अंतरिक्ष यान भेज रही है, जो यह जांच करेगा कि वहां इंसान के बसने की कितनी संभावनाएं हैं. यूरोपा को हमारे सौरमंडल में पृथ्वी से बाहर जीवन खोजने के सबसे संभावित स्थानों में से एक माना जाता है.

नासा का यह मिशन यह जानने की कोशिश करेगा कि क्या बर्फ से ढके इस चंद्रमा पर जीवन के लिए अनुकूल स्थितियां मौजूद हैं. यूरोपा पर एक विशाल भूमिगत महासागर होने की संभावना है.

नासा का सौर ऊर्जा से चलने वाला यूरोपा क्लिपर यान स्पेसएक्स फाल्कन हेवी रॉकेट पर केनेडी स्पेस सेंटर से लॉन्च किया जाएगा. यह यान नौ वैज्ञानिक उपकरणों को लेकर जा रहा है. करीब साढ़े पांच साल में 2.9 अरब किलोमीटर का सफर कर यूरोपा क्लिपर साल 2030 में बृहस्पति की कक्षा में प्रवेश करेगा.

अमेरिका में आए समुद्री तूफान मिल्टन के कारण इस यान के लॉन्च में देरी हो गई थी. अब इसे स्थानीय समय के मुताबिक सोमवार को दोपहर 12:06 बजे भेजे जाने की योजना है.

वैज्ञानिकों की दिलचस्पी यूरोपा की बर्फीली सतह के नीचे मौजूद खारे पानी के महासागर में है, जिसका अनुमान अब तक हुई खोजों में लगाया गया है.

नासा की जेट प्रोपल्शन लैब में ग्रह वैज्ञानिक और मिशन की उप प्रमुख बोनी बुराटी ने कहा, "यूरोपा पर जीवन के लिए आवश्यक तत्व मौजूद होने के बहुत मजबूत सबूत हैं. लेकिन हमें वहां जाकर इसकी जांच करनी होगी."

बुराटी ने यह भी स्पष्ट किया, "हम जीवन का पता लगाने वाला मिशन नहीं हैं. हम सिर्फ जीवन के लिए अनुकूल स्थितियों की तलाश कर रहे हैं." यह पहला ऐसा अभियान नहीं है. जूस नाम का अभियान भी बृहस्पति के चंद्रमाओं पर जीवन की खोज कर रहा है.

सबसे बड़ा अंतरिक्ष यान

यूरोपा क्लिपर नासा का अब तक का सबसे बड़ा अंतरिक्ष यान है, जो किसी ग्रह संबंधी मिशन के लिए बनाया गया है. इसकी लंबाई लगभग 100 फुट (30.5 मीटर), चौड़ाई लगभग 58 फुट (17.6 मीटर) है और वजन लगभग 6,000 किलोग्राम है.

यह यान बास्केटबॉल कोर्ट से भी बड़ा है, क्योंकि इसमें बड़े सौर पैनल लगे हुए हैं जिनसे वैज्ञानिक उपकरणों, इलेक्ट्रॉनिक्स और अन्य प्रणालियों को ऊर्जा मिलेगी.

यह यान मंगल और फिर पृथ्वी के पास से गुजरेगा, जिससे वह इन ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण का उपयोग करके अपनी गति बढ़ा सकेगा. विज्ञान के लिए इसके तीन मुख्य मकसद हैं: यूरोपा की बाहरी बर्फ की परत की मोटाई और उसके नीचे की सतह के साथ उसके संपर्क का आकलन करना, बृहस्पति के इस चंद्रमा की संरचना का पता लगाना, और उसके भूविज्ञान को समझना.

नासा की योजना के अनुसार, यान तीन साल की अवधि में यूरोपा के आसपास 49 बार उड़ानें भरेगा. यूरोपा का व्यास लगभग 3,100 किलोमीटर है, यानी पृथ्वी के चंद्रमा का लगभग 90 प्रतिशत. माना जाता है कि यूरोपा की बर्फीली परत 15-25 किलोमीटर मोटी है, और इसके नीचे 60-150 किलोमीटर गहरे महासागर मौजूद हैं.

महासागरीय दुनिया

यूरोपा को एक "महासागरीय दुनिया" माना जाता है. हालांकि यूरोपा का व्यास पृथ्वी के व्यास का केवल एक चौथाई है, फिर भी इसके भूमिगत महासागर में पृथ्वी के महासागरों से दोगुना पानी हो सकता है.

नासा के ग्रह विज्ञान प्रभाग की कार्यवाहक निदेशक जीना डिब्रैसियो ने कहा, "महासागरीय दुनिया के रूप में, यूरोपा बहुत ही रोचक है. और यह मिशन हमें हमारे सौरमंडल के इस जटिल हिस्से को समझने में मदद करेगा."

डिब्रैसियो ने कहा कि इस तरह की महासागरीय दुनिया हमारे सौरमंडल के बाहर भी आम हो सकती है. उन्होंने कहा, "क्लिपर पहला गहन मिशन होगा जो हमें इस बात का आकलन करने में मदद करेगा कि क्या यह रहने लायक हो सकता है."

वैज्ञानिकों का मानना है कि यूरोपा, अपनी कठोर और ठंडी सतह के बावजूद, जीवन का समर्थन करने में सक्षम हो सकता है. बुराटी ने बताया कि जीवन के बनने के लिए तीन मुख्य जरूरतें होती हैं: तरल पानी, कुछ रसायन - खासकर ऐसे जैविक यौगिक जो किसी भी आदिम जीवों के लिए भोजन के रूप में काम कर सकते हैं, और ऊर्जा स्रोत.

यूरोपा, पृथ्वी के सौर विकिरण का केवल 4 फीसदी प्राप्त करता है क्योंकि यह सूर्य से पांच गुना दूर है. लेकिन बुराटी ने बताया कि बृहस्पति के मजबूत गुरुत्वाकर्षण के कारण यूरोपा अपनी कक्षा में झुकता है, जिससे इसे गर्मी मिलती है.

बुराटी ने कहा, "यह वैसा ही ऊर्जा स्रोत है जो हमारे पास है."

यूरोपा के महासागर की तली पर, जहां पानी चट्टानी सतह से मिलता है, हो सकता है कि थर्मल वेंट्स यानी गर्म पानी हो, जहां गर्मी से रासायनिक ऊर्जा निकलती हो. बुराटी ने कहा, "यह पृथ्वी के गहरे महासागरों में थर्मल वेंट्स के समान हो सकते हैं, जहां आदिम जीवन मौजूद होता है और शायद वहीं से पृथ्वी के जीवन की भी शुरुआत हुई थी."

कल्पना से बाहर की उम्मीद

यान का मासपेक्स उपकरण यूरोपा के महासागर, सतह और वायुमंडलीय रसायनों का अध्ययन करने के लिए गैसों के नमूने लेगा. बुराटी ने कहा, "मासपेक्स उन जैविक अणुओं की तलाश करेगा जो आदिम जीवों के लिए भोजन का काम कर सकते हैं."

बृहस्पति हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है. इसके 95 चंद्रमा हैं, जिन्हें आधिकारिक रूप से मान्यता मिली है. इनमें से यूरोपा चौथा सबसे बड़ा है. गैनीमेड, कैलिस्टो और आयो इससे बड़े हैं. यूरोपा बृहस्पति से लगभग 6,71,000 किलोमीटर दूर परिक्रमा करता है.

बुराटी ने बताया कि इस तरह के खोजी अभियानों में हमेशा कुछ ऐसा सामने आता है जिसकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की होती. उन्होंने कहा, "वहां कुछ ऐसा होगा, कुछ अज्ञात, जो इतना अद्भुत होगा कि हम अभी उसकी कल्पना नहीं कर सकते. यही बात मुझे सबसे ज्यादा उत्साहित करती है."

वीके/सीके (रॉयटर्स)

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