बच्चों की फूड एलर्जी इस थेरेपी से होगी ठीक
दुनियाभर में लगभग चार प्रतिशत बच्चे फूड एलर्जी से जूझ रहे हैं.
दुनियाभर में लगभग चार प्रतिशत बच्चे फूड एलर्जी से जूझ रहे हैं. एक नए अध्ययन में फूड एलर्जी को दूर करने के लिए दिशा-निर्देश दिए गए हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि यह मैराथन के लिए प्रशिक्षण लेने जैसा है.बच्चों के लिए फूड एलर्जी एक बड़ी समस्या हो सकती है. स्कूल में टिफिन बांटकर खाने से भी उन्हें फूड एलर्जी होने का खतरा होता है. इससे बच्चों और उनके माता-पिता को चिंता और तनाव झेलना पड़ता है. उनकी रोजमर्रा की सामाजिक जिंदगी प्रभावित हो सकती है. उनके घूमने-फिरने की योजनाओं और पार्टियों में जाने पर भी असर पड़ सकता है.
रिसर्चर्स ने पहली बार इसके लिए मानकीकृत दिशा-निर्देश तैयार किए हैं. जो बच्चों में फूड एलर्जी कर सकने वाले खाद्य पदार्थों के प्रति सहनशक्ति विकसित करने में मदद करेंगे.
इस थेरेपी को ओरल इम्यूनोथेरेपी कहा जाता है. इसमें बच्चों को मूंगफली जैसे एलर्जी कर सकने वाले खाद्य पदार्थ बहुत थोड़ी मात्रा में दिए जाते हैं. धीरे-धीरे उनकी मात्रा बढ़ाई जाती है ताकि बच्चों में उनके प्रति सहनशक्ति विकसित हो सके.
अब तक, डॉक्टरों के पास साक्ष्य-आधारित दिशा-निर्देश बेहद कम थे. जिन्हें वे अपने बच्चों को इम्यूनोथेरेपी दे रहे माता-पिता के साथ साझा कर पाते. लेकिन इन नए दिशा-निर्देशों से डॉक्टरों को बहुत मदद मिलेगी. वे फूड एलर्जी से पीड़ित बच्चों और उनके परिवारों के साथ बेहतर तरीके से काम कर पाएंगे.
डगलस मैक इस अध्ययन के प्रमुख लेखक और कनाडा की मैकमास्टर यूनिवर्सिटी में बाल रोग विशेषज्ञ हैं. वह कहते हैं, "यह हमारे क्षेत्र में एक ऐतिहासिक अध्ययन है क्योंकि ऐसा पहले कभी नहीं किया गया और कभी इस प्रक्रिया का मानकीकरण नहीं किया गया. हमें ओरल इम्यूनोथेरेपी के बारे में मार्गदर्शन की बहुत जरूरत है.”
कितनी आम हैं खाने से एलर्जी?
दुनियाभर में लगभग चार फीसदी बच्चे और एक फीसदी वयस्क फूड एलर्जी से जूझ रहे हैं. पश्चिमी देशों में यह समस्या थोड़ी ज्यादा है. वहां आठ फीसदी बच्चों और चार फीसदी वयस्कों को फूड एलर्जी है.
एक बच्चे का खाना दूसरे बच्चे को बीमार कर सकता है. मूंगफली से होने वाली एलर्जी ब्रिटेन, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में ज्यादा होती है. एशिया में यह एलर्जी उतनी अधिक नहीं है. यहां पर गेहूं, अंडे और दूध से होने वाली एलर्जी सबसे ज्यादा आम है.
पिछले दो दशकों से फूड एलर्जी के मरीज बढ़ रहे हैं. स्वास्थ्य वैज्ञानिकों का मानना है कि यह बढ़ती साफ-सफाई और स्वच्छता की वजह से हो रहा है. इसके पीछे की सोच यह है कि जब बच्चों के आस-पास कम कीटाणु होते हैं, तो उनका इम्यून सिस्टम मूंगफली और दूध जैसी सामान्य चीजों के खिलाफ ही काम करने लगता है. विटामिन डी की कमी भी इसका एक कारण है.
कई देशों के स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि एलर्जी को रोकने के लिए बच्चों को धीरे-धीरे एलर्जी कर सकने वाले खाद्य पदार्थों के संपर्क में लाना चाहिए. ऐसे परिवार जिनमें पहले भी फूड एलर्जी की समस्या रही है, उन्हें बाल रोग विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में काम करना चाहिए.
ओरल इम्यूनोथेरेपी का फूड एलर्जी से पीड़ित बच्चों की मदद करने का लंबा और सफल इतिहास रहा है. इसका पहली बार इस्तेमाल 1908 में किया गया था. तब इसके जरिए एक बच्चे की अंडे से एलर्जी ठीक की गई थी. शुरुआत में बच्चे को अंडे का दस हजारवां हिस्सा खिलाया गया. छह महीने बाद वह बिना किसी परेशानी के अंडे खाने लगा.
जूलिया ऐप्टन कनाडा में बच्चों के एक अस्पताल में क्लिनिकल इम्यूनोलॉजिस्ट हैं. वह कहती हैं, "हमारे पास एक ऐसा उपचार है, जो काम करता है. जिसे लेकर अलग-अलग क्षेत्रों के डॉक्टरों के बीच व्यापक सहमति है. अध्ययनों में कई अलग-अलग तरीकों की जांच की जा रही है, जिससे उपचार बेहतर होता रहे और आगे चलकर सुरक्षा बेहतर हो, मेडिकल जरूरतें कम हों और इलाज की पहुंच बढ़े.”
मदद करती है ओरल इम्यूनोथेरेपी
ओरल इम्यूनोथेरेपी देने के दौरान देखभाल करने वाले व्यक्ति को एक नौसिखिए स्वास्थ्यकर्मी की तरह व्यवहार करना होता है. यह भी देखना होता है कि बच्चे का एलर्जी करने वाले खाद्य पदार्थ के साथ संपर्क खतरनाक स्तर पर ना पहुंच जाए. इस दौरान बच्चों में पेट दर्द और उल्टी जैसे दुष्प्रभाव नजर आना आम बात है.
एप्टन ने डीडब्ल्यू से कहा, "परिवारों को फूड एलर्जी, एनाफिलेक्सिस (एलर्जी की गंभीर प्रतिक्रिया) और इम्यूनोथेरेपी के बारे में जानना चाहिए. उन्हें यह भी सीखना चाहिए कि खाने को सही तरीके से कैसे खिलाएं, किन चीजों का ध्यान रखें, कब इलाज करें और कब डॉक्टरों से संपर्क करें.”
अध्ययनकर्ताओं के मुताबिक, करीब एक तिहाई मरीजों को उपचार शुरू करने से पहले कोई तैयारी नहीं करवाई गई.
मैकमास्टर यूनिवर्सिटी के मैक कहते हैं, "यदि परिवार ओरल इम्यूनोथेरेपी के लिए तैयार नहीं होंगे, तो वे सफल नहीं होंगे या यह असुरक्षित हो जाएगी. इन परिवारों को हर दिन यह थेरेपी देनी होगी. इसलिए यह दिशा-निर्देश इतने जरूरी हैं.”
मैराथन की ट्रेनिंग जैसा
ये दिशा-निर्देश डॉक्टरों के लिए बनाए गए हैं. ये सीधे तौर पर माता-पिता और परिवारों के लिए नहीं हैं. इसलिए यह जरूरी है कि माता-पिता डॉक्टरों के साथ मिलकर काम करें और फूड एलर्जी को सुरक्षित और प्रभावी तरीके से खत्म करने में अपने बच्चों की मदद करें.
हालांकि इस अध्ययन में माता-पिता और देखभाल करने वाले अन्य लोगों के लिए भी काम की जानकारी दी गई है.
एप्टन कहती हैं, "यह दिखाता है कि सुरक्षा से जुड़ी प्रमुख सलाहों और संभावित परिणामों को लेकर मजबूत सहमति है. उदाहरण के लिए, इम्यूनोथेरेपी से पहले और इसके दौरान अस्थमा को नियंत्रण में रखना बहुत जरूरी है. सुरक्षा और खुराक से जुड़े कई निर्देशों का भी पालन करना होता है.”
एप्टन इस थेरेपी को मैराथन के लिए दी जाने वाली ट्रेनिंग की तरह देखती हैं. बच्चों को रोजाना यह थेरेपी लेनी होती है. अगर वे ओरल इम्यूनोथेरेपी को पूरी तरह से बंद कर देते हैं तो उनकी सहनशक्ति कम हो जाती है.
एप्टन कहती हैं, "फूड एलर्जी से पीड़ित कई लोगों में इम्यूनोथेरेपी से होने वाला सुधार इस बात पर निर्भर करता है कि वे एलर्जी करने वाले खाद्य पदार्थों के कितने संपर्क में आ रहे हैं. इसके लिए अक्सर काफी ज्यादा काउंसलिंग की जरूरत होती है. ऐसे में परिवारों के लिए यह देखना बहुत मददगार होता है कि उस पर (थेरेपी पर) व्यापक सहमति है.”