Chandrayaan-2: काउंटडाउन शुरू, इतिहास रचने को तैयार है भारत, जानिए ISRO के चंद्रयान-2 से जुड़ी खास बातें
अंतरिक्ष की दुनिया में इतिहास रचने के लिए भारत पूरी तरह से तैयार है. इसरों के मून मिशन चंद्रयान-2 का काउंटडाउन शुरु हो गया है. श्रीहरिकोटा के सतीश धवन सेंटर के दूसरे पैड से 14-15 जुलाई की रात्रि 2.51 बजे बाहुबली चंद्रमा की ओर उड़ान भरेगा और 6-7 सितंबर को चांद की सतह पर उतरेगा.
Chandrayaan-2: अंतरिक्ष की दुनिया में इतिहास रचने के लिए भारत (India) ने अपने कदम बढ़ा दिए हैं. भारतीय अनुसंधान संगठन (इसरो) (Indian Space Research Organisation-ISRO) के मून मिशन चंद्रयान- 2 (Moon Mission Chandrayaan-2) का काउंटडाउन शुरू हो गया है. रविवार सुबह छह बजकर 51 मिनट से शुरू होकर यह काउंटडाउन 20 घंटे चलेगा. इसके बाद इसरो चंद्रयान-2 को 14-15 जुलाई की मध्यरात्रि 2.51 बजे लॉन्च करेगा. लॉन्चिंग आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा (Sriharikota) के सतीश धवन सेंटर के दूसरे लॉन्च पैड से होगी. इसे भारत के सबसे ताकतवर जीएसएलवी एमके-3 (GSLV MK-3) रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा. लॉन्च के सफल होने के बाद करीब 55 दिन में 6 और 7 सितंबर को यह चंद्रमा की सतह पर उतरेगा.
चंद्रयान-2 का लैंडर-विक्रम और रोवर-प्रज्ञान दक्षिणी ध्रुव पर उतरेंगे, जबकि ऑर्बिटर चंद्रमा के चारों तरफ चक्कर लगाते हुए विक्रम और प्रज्ञान से मिली जानकारियों को पृथ्वी पर स्थित इसरो केंद्र को भेजेगा. इस प्रोजेक्ट का खर्च 1000 करोड़ रुपए बताया जा रहा है. अगर इसरो का यह मिशन सफल होता है तो अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत चांद पर यान उतारने वाला चौथा देश बन जाएगा. चलिए जानते हैं इसरो के चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) से जुड़ी खास बातें-
15 मंजिली इमारत जितना ऊंचा है 'बाहुबली'
करीब 640 टन वजन वाले जीएसएलवी-एमके 3 (GSLV MK-3) रॉकेट को तेलुगु मीडिया ने बाहुबली (Bahubali) तो इसरो ने इसे फैट बॉय (Fat Boy) नाम दिया है. 375 करोड़ की लागत से बना यह रॉकेट 3.8 टन वजन वाले चंद्रयान-2 को लेकर चांद की तरफ उड़ान भरेगा. चंद्रयान-2 की कुल लागत 603 करोड़ रुपए है और इसकी ऊंचाई 44 मीटर है जो कि 15 मंजिली इमारत के बराबर है. इसके भीतर तीन चरण वाले इंजन लगे हुए हैं. साल 2022 में भारत के पहले मानव मिशन में भी इसी रॉकेट का इस्तेमाल किया जाएगा. यह भी पढ़ेें: चंद्रयान-2 मिशन: सोमवार तड़के 2:51 पर होगा लॉन्च, इसरो की तैयारियां पूरी
चंद्रयान-2 से जुड़ी खास बातें-
कब होगा लॉन्च- 15 जुलाई 2019 को तड़के 2.51 बजे
कहां से होगा लॉन्च- श्रीहरिकोटा (आंध्र प्रदेश)
कितना है वजन- 3800 किलो
कुल खर्च- 1000 करोड़ रुपए
चांद पर कितने दिन बिताएगा- 52 दिन
चंद्रयान- 2 के हैं तीन हिस्से
चंद्रयान-2 के तीन हिस्से हैं ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर. चांद की कक्षा में पहुंचने के 4 दिन बाद लैंडर-रोवर अपने ऑर्बिटर से अलग हो जाएंगे. लैंडर-विक्रम 6 सितंबर को चांद के दक्षिणी ध्रुव के नजदीक उतरेगा, जहां वो तीन वैज्ञानिक प्रयोगों को अंजाम देगा. वहीं चांद पर उतरने के बाद रोवर-प्रज्ञान उससे अलग होकर करीब 14 दिन तक अन्य वैज्ञानिक प्रयोगों को अंजाम देगा. उधर ऑर्बिटर साल भर चांद की परिक्रमा करते हुए 8 प्रयोगों को अंजाम देगा.
1- ऑर्बिटर
वजन- 3500 किलो
लंबाई- 2.5 मीटर
2- लैंडर
नाम- विक्रम
वजन- 1400 किलो
लंबाई- 3.5 मीटर
3- रोवर
नाम- प्रज्ञान
वजन- 27 किलो
लंबाई- 1 मीटर
इतिहास रचने को तैयार है भारत
चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग के बाद इस अभियान की सफलता के साथ ही चांद पर यान उतारने वाले देशों में भारत चौथा देश बन जाएगा. इससे पहले अमेरिका, चीन और रूस अपने यान को चांद पर उतार चुके हैं. बता दें कि इससे पहले साल 2008 में भारत ने चंद्रयान-1 चंद्रमा पर भेजा था, जिसने 10 महीने तक चांद की प्ररिक्रमा करते हुए कई प्रयोगों को अंजाम दिया था. इसी अभियान के अंतर्गत चांद पर पानी की खोज की गई थी. इसरो के चेयरमैन के. सिवन के अनुसार इस अभियान में 30 फीसदी महिलाओं ने अहम भूमिका निभाई है. जिसमें प्रोजेक्ट डायरेक्टर एम. वनिता और मिशन डायरेक्टर रितु करिधल शामिल हैं. यह भी पढ़ें: चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग के लिए उल्टी गिनती शुरू, 6 सितंबर को चांद पर पहुंचेगा लैंडर-विक्रम
मुश्किलों से भरा हुआ है यह मिशन
भारत का चंद्रयान मिशन-2 मुश्किलों से भरा हुआ है. द वाशिंगटन पोस्ट ने इस मिशन को बेहद जटिल बताया है. विशेषज्ञों की मानें तो यह मिशन चांद की सतह का नक्शा तैयार करने में मदद करेगा. इसके अलावा इस मिशन के जरिए चांद पर मैग्नीशियम, एल्युमिनियम, सिलिकॉन, कैल्शियम, टाइटेनियम, आयरन और सोडियम जैसे तत्वों की मौजूदगी का पता लगाया जाएगा. सबसे खास बात तो यह है कि इस मिशन के जरिए चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्र के गड्ढों में बर्फ के रूप में जमे पानी की जानकारी भी इकट्ठा करने की कोशिश की जाएगी. बता दें कि चंद्रयान-1 के डेटा में चंद्रमा पर बर्फ होने के प्रमाण मिले थे, लेकिन यह सब किसी चुनौती से कम नहीं है.
गौरतलब है कि पृथ्वी से चांद की दूरी करीब 3.844 लाख किलोमीटर है, इसलिए कोई संदेश धरती से चांद पर पहुंचाने में कुछ ही मिनट लगेंगे. यह मिशन इसलिए भी चुनौती भरा हो सकता है, क्योंकि सोलर रेडिएशन का असर चंद्रयान-2 पर पड़ सकता है, जिसके चलते वहां सिग्नल कमजोर हो सकते हैं, लेकिन इस मिशन की सफलता अंतरिक्ष की दुनिया में भारत की छवि को बनाने के लिए एक लंबी छलांग साबित हो सकती है.