एआई ने हफ्ता पहले बता दिया, बाढ़ आने वाली है
भारत में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू की गई एक परियोजना के तहत वैज्ञानिक करीब एक हफ्ता पहले बाढ़ की भविष्यवाणी करने में कामयाब रहे.
भारत में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू की गई एक परियोजना के तहत वैज्ञानिक करीब एक हफ्ता पहले बाढ़ की भविष्यवाणी करने में कामयाब रहे. अब यह परियोजना 80 देशों में काम कर रही है.अमेरिकी कंपनी गूगल के एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रोजेक्ट के तहत बाढ़ के पूर्वानुमान में शोधकर्ताओं को बड़ी कामयाबी मिली है. इसी हफ्ते नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक शोधपत्र में कहा गया है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए वैज्ञानिक करीब एक हफ्ता पहले बाढ़ का पूर्वानुमान लगाने में कामयाब रहे.
भारत में मिली कामयाबी के बाद इस परियोजना को 80 देशों में लागू किया गया. गूगल के वाइस प्रेजीडेंट (इंजीनियरिंग और शोध) योसी मतियास ने एक ब्लॉग में बताया है एआई के जरिए नदियों की बाढ़ का पूर्वानुमान लगाने वाले प्रोजेक्ट के नतीजे उत्साहजनक रहे हैं.
मतियास लिखते हैं, "इस (कामयाबी) से 80 देशों में बाढ़ के पूर्वानुमान की सुविधा उपलब्ध करवाने में कामयाबी मिली है, जहां 46 करोड़ लोग रहते हैं. जहां भी संभव हो, हम गूगल सर्च, गूगल मैप और एंड्रॉयड नोटिफिकेशन के जरिए पूर्वानुमान उपलब्ध करवा रहे हैं.”
गुरुवार को विज्ञान पत्रिका ‘नेचर' में प्रकाशित शोध पत्र में बताया गया है कि गूगल रिसर्च ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित तकनीक विकसित की है जिसके जरिए बाढ़ के पूर्वानुमान की सटीकता में काफी वृद्धि हुई है.
मतियास कहते हैं कि यह तकनीक उन देशों में भी कामयाब है, जहां बाढ़ से जुड़े आंकड़े बहुत कम मात्रा में उपलब्ध हैं. वह कहते हैं, "समय रहते मिलीं चेतावनियां मौतों की संख्या कम करने में काफी मददगार साबित हो सकती हैं. साथ ही, इससे समुदायों को तैयारी के लिए ज्यादा समय भी मिल जाता है. इस तकनीक के आधार पर हमने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाढ़ के पूर्वानुमान के औसत को शून्य से बढ़ाकर पांच दिन कर दिया है. अब अफ्रीका और एशिया के क्षेत्रों में भी पूर्वानुमान की वही सुविधा उपलब्ध है, जैसी यूरोप में है.”
भारत में हुई शुरुआत
मतियास कहते हैं कि भारत में उनके पायलट प्रोजेक्ट ने उन्हें बहुत कुछ सिखाया. यह परियोजना सबसे पहले बिहार के पटना में शुरू की गई थी. बिहार भारत के सबसे ज्यादा बाढ़ग्रस्त इलाकों में से एक है. 2018 में राज्य सरकार के साथ मिलकर गूगल ने रीयल-टाइम डेटा के आधार पर ‘गूगल पब्लिक अलर्ट' की शुरुआत की थी.
इस परियोजना में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को बाढ़ की ऐतिहासिक घटनाओं से लेकर नदी के जल स्तर, भोगौलिक स्थिति और समुद्र तल से ऊंचाई जैसे तमाम आंकड़े विश्लेषण के लिए दिए जाते हैं. कंप्यूटर मॉडल इन आंकड़ों का विश्लेषण करता है. यह मॉडल हजारों गणनाएं एक पल में कर सकता है. इस गणना के आधार पर छोटे से छोटे इलाके के लिए भी बाढ़ का पूर्वानुमान संभव है.
2019 में इस परियोजना के क्षेत्र को 12 गुना बढ़ाया गया. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अपने हर विश्लेषण से सीखती जाती है और इस आधार पर तकनीक बेहतर होती गई. शोधकर्ताओं के मुताबिक उस साल आठ लाख अलर्ट जारी किए गए. ये संदेश प्रभावित इलाकों में रहने वाले लोगों को भेज गए थे.
गूगल ने जलविज्ञान के विशेषज्ञों के सहयोग से तकनीक में सुधार किया और ‘लॉन्ग शॉर्ट-टर्म मेमरी' नेटवर्क तैयार किए, जो बाढ़ का ज्यादा सटीक पूर्वानुमान लगाने वाली तकनीक है. भारत के बाद इस तकनीक का इस्तेमाल बांग्लादेश के उन इलाकों में किया गया, जहां बहुत ज्यादा बाढ़ आती है.
मतियास लिखते हैं, "बांग्लादेश के 36 करोड़ लोगों को इस तकनीक का लाभ मिला और हम 48 घंटे पहले तक चेतावनी जारी करने में कामयाब हुए. लेकिन इस तकनीक की सफलता नदी की धारा के आंकड़ों पर निर्भर करती है.” इसलिए तकनीक की सफलता हर क्षेत्र में अलग-अलग है.
अब आगे की तैयारी
2022 में गूगल ने फ्लड हब नाम का एक प्लैटफॉर्म शुरू किया, जहां 20 देशों में बाढ़ के पूर्वानुमान उपलब्ध कराया गया. इनमें से 15 अफ्रीका के ऐसे देश थे जहां आंकड़ें बहुत कम उपलब्ध हैं. लेकिन तकनीक ने वैश्विक स्तर पर उपलब्ध आंकड़ों का इस्तेमाल करना सीख लिया था.
2023 में फ्लड हब में 60 और देश जोड़े गए और कुल संख्या 80 हो गई. इनमें अफ्रीका, एशिया-प्रशांत, यूरोप और अमेरिका के देश शामिल हैं, जिनमें 46 करोड़ से ज्यादा आबादी रहती है. ये चेतावनियां हर वक्त मुफ्त उपलब्ध रहती हैं.
मतियास कहते हैं कि अब इस तकनीक को अन्य प्राकृतिक आपदाओं के पूर्वानुमान के लिए भी तैयार किया जा रहा है. वह लिखते हैं, "जैसे-जैसे ग्लोबल वॉर्मिंग का प्रभाव बढ़ रहा है, बाढ़ ऐसी जगहों पर भी कहर बरपा रही है, जहां आप अंदाजा नहीं लगा सकते. हमारा मकसद अपने शोध को और विस्तार देना है ताकि बाढ़ और इससे जुड़ी अन्य आपदाओं जैसे बादल फटने, शहरों में बाढ़ और अन्य चुनौतियों का भी पूर्वानुमान लगाया जा सके.”