विश्व चैंपियनशिप के पदक विजेता मुक्केबाज गौरव बिधूड़ी ने आईएएनएस डॉक्यूमेंट्री 'द लास्ट पुश' की प्रशंसा की
विश्व चैंपियनशिप के कांस्य पदक विजेता मुक्केबाज गौरव बिधूड़ी ने इंडो-एशियन न्यूज सर्विस (आईएएनएस) की डॉक्यूमेंट्री 'द लास्ट पुश' की प्रशंसा करते हुए बधाई दी है. 'द लास्ट पुश' को 1946 के रॉयल इंडियन नेवी म्यूटिनी पर दर्शाया गया है.
नई दिल्ली, 26 जनवरी : विश्व चैंपियनशिप के कांस्य पदक विजेता मुक्केबाज गौरव बिधूड़ी ने इंडो-एशियन न्यूज सर्विस (आईएएनएस) की डॉक्यूमेंट्री 'द लास्ट पुश' की प्रशंसा करते हुए बधाई दी है. 'द लास्ट पुश' को 1946 के रॉयल इंडियन नेवी म्यूटिनी पर दर्शाया गया है. युवा भारतीय मुक्केबाज बुधवार शाम यहां फिल्म डिवीजन आडिटोरियम में डॉक्यूमेंट्री के प्रीमियर के मौके पर मौजूद थे. उन्होंने कहा कि भारत के लोगों को हमारे स्वतंत्रता संग्राम के भूले इतिहास के बारे में जानना चाहिए.
गौरव ने आगे बताया, "मैंने डॉक्यूमेंट्री में जो देखा उससे मैं चकित हूं. यह हमारी उम्र के उन लोगों के लिए बहुत जानकारीपूर्ण है, जो इतिहास के इस हिस्से के बारे में नहीं जानते हैं. इसके लिए आईएएनएस के प्रधान संपादक और सीईओ संदीप बामजई और डॉक्यूमेंट्री की टीम को धन्यवाद देना चाहिए." पुरस्कार विजेता टीवी पत्रकार और डॉक्यूमेंट्री के निर्माता सुजय ने कहा, '"यह हमारे स्वतंत्रता संग्राम के भूले हुए एपिसोड पर लघु फिल्मों की श्रृंखला में से एक है." यह भी पढ़े : IND vs NZ 1st T20: न्यूजीलैंड के खिलाफ पहले टी20 मुकाबले में इन दिग्गजों के साथ मैदान में उतर सकती हैं टीम इंडिया, प्लेइंग इलेवन पर एक नजर
ब्रिटेन में इम्पीरियल वॉर म्यूजियम और कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से प्राप्त भूले हुए फुटेज और भारत और पाकिस्तान से प्रेस क्लिपिंग का उपयोग करके और इस सामग्री को वीरता की इस कहानी के विशेषज्ञ कथनों के साथ जोड़कर, 'द लास्ट पुश' विद्रोह के 72 घंटों का पुनर्निर्माण करता है, जो नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज (भारतीय राष्ट्रीय सेना) की बहादुरी से प्रेरित था. फिल्म का प्रीमियर केंद्रीय भारी उद्योग और सार्वजनिक उद्यम मंत्री महेंद्र नाथ पांडे की उपस्थिति में एक चुनिंदा सभा में किया गया.
18 फरवरी, 1946 को रॉयल इंडियन नेवी की रेटिंग बॉम्बे में हड़ताल पर चली गई, ब्रिटिश झंडे उतारे गए और तीन दिनों में 78 जहाजों और 21 तटीय प्रतिष्ठानों पर नियंत्रण कर लिया. विद्रोह का प्रभाव ब्रिटिश भारतीय सैन्य संरचनाओं में महसूस किया गया था. 48 घंटों तक ब्रिटिश साम्राज्य के मुकुट में जड़ा रत्न नियंत्रण बहाल होने से पहले नियंत्रण से बाहर होता देखा गया, लेकिन विद्रोह के समय से अंतत: अंग्रेजों को पता चल गया था कि उनके पास भारत छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.