भारतीय क्रिकेट टीम का एक मशहूर खिलाड़ी जिसने विदेशी धरती पर जन्म लिया. विदेशी धरती पर क्रिकेट की शुरुआत की और फिर भारतीय क्रिकेट में अपना सिक्का जमाया. वेस्टइंडीज क्रिकेट की बेबाकी जिसके प्रदर्शन में दिखती थी और जो भारत के उन चुनिंदा खिलाड़ियों में से एक था, जो अपनी फील्डिंग के लिए जाने जाते हैं. बात कर रहे हैं रवीन्द्र रामनारायण सिंह यानी रॉबिन सिंह की. वेस्टइंडीज के त्रिनिदाद में जन्मे रॉबिन सिंह के क्रिकेट की शुरुआत त्रिनिदाद में ही हुई. वे वेस्ट इंडीज में स्कूल और क्लब लेवल पर क्रिकेट खेलते थे.
रोबिन सिंह के भारत आने की कहानी उनके क्रिकेट करियर की तरह ही बेहद दिलचस्प है. दरअसल, हुआ यूं कि वेस्टइंडीज में एक बार भारत से हैदराबाद ब्लू नाम की एक क्रिकेट टीम टूर्नामेंट खेलने गई. उस समय रॉबिन सिंह त्रिनिदाद की ओर से खेल रहे थे. रोबिन सिंह का बढ़िया प्रदर्शन उस दौरान काफी चर्चा का विषय बन रहा था. उनके बढ़िया प्रदर्शन को ही देखते हुए अकबर इब्राहिम नामक शख्स ने उन्हें भारत आने का न्यौता दिया था.
जिसके बाद 19 साल की उम्र में साल 1982 में रॉबिन सिंह मद्रास आ गए. जहां उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ़ मद्रास में एडमीशन लिया,और इकोनॉमिक्स की डिग्री पाई. और साथ ही क्रिकेट खेलना भी शुरू कर दिया. रॉबिन सिंह को चेन्नई इतना रास आया कि वे उसके बाद चेन्नई के ही हो गए. तब से चेन्नई ही रॉबिन सिंह का घर है.
भारत में रॉबिन सिंह के क्रिकेट की शुरुआत काफी प्रशंसनीय रही. पर बावजूद इसके उन्हें भारत की नागरिकता मिलने में काफी देर लगी. साल 1989 में जब उन्हें भारत की नागिरकता मिली. इसी साल उनका वेस्ट इंडीज टूर के लिए टीम इंडिया में चयन भी हुआ. रवीन्द्र सिंह को टीम इंडिया में जगह मिली और नाम हुआ रॉबिन सिंह.
रॉबिन सिंह के दो डेब्यू हुए. यही उनकी कहानी का सबसे दिलचस्प पहलू है और यही उनकी खासियत भी रही. रॉबिन जाने जाते हैं उस फाइटर के तौर पर जिसने कभी हार नहीं मानी. तेज़, चौकन्ना, चौकस और हमेशा डटे रहने वाला खिलाड़ी.
रॉबिन बायें हाथ से खेलने और धीरे से दौड़ कर धीमी गेंदें फेंकने वाले खिलाड़ी थे. उनके खेल में सबसे खास उनकी फील्डिंग थी. कवर्स और पॉइंट में खड़े रहकर चौकन्नी और तेज फील्डिंग करने वाले रॉबिन ने फील्डिंग में एक अलग ही रोमांच भरा.
वेस्ट इंडीज के खिलाफ 11 मार्च 1989 को डेब्यू करने वाले रॉबिन उस समय सातवें नंबर पर खेलने आए. इस सीरीज में उन्हें सिर्फ दो मैचों में ही मौका मिला जहां वे कोई प्रभावी प्रदर्शन नहीं कर सके. मैच के बिगड़े हालत ने सीधा-सीधा रॉबिन को प्रभावित किया. टीम ख़राब प्रदर्शन के कारण सदमे में थी जिसके चलते रॉबिन ड्रॉप हो गए. जिसके बाद अगले सात साल तक वे टीम से बाहर रहे.
इस दौरान रॉबिन का सफर बहुत कठिनाई भरा रहा. लेकिन उनकी मेहनत और जूनून और बढ़ा. रॉबिन ने लोकल गेम्स खेले, रणजी ट्रॉफी खेली. साथ ही विदेशी लीग्स भी. फिर रॉबिन का फॉर्म उठा और एक बार फिर सात साल बाद नीली जर्सी और तिरंगे वाली कैप पहनकर रॉबिन मैदान में उतरे. मौका था 1996 के टाइटन कप का और फिर इसके बाद वे अगले पांच साल, 2001 तक लगातार टीम का हिस्सा रहे.
इस बीच रॉबिन ने मिडल ऑर्डर और कभी लोवर ऑर्डर में आकर अपने खेल का रंग जमाया. आखिरी ओवरों में ताबड़तोड़ बल्ला घुमाने वाले बैट्समैन और मीडियम पेस की बॉलिंग के लिए पहचाने जाने वाले रॉबिन सबकी नजरों में छाने लगे. और उनकी फील्डिंग तो लाजवाब थी ही.
टीम इंडिया के लिए उन्होंने 136 वनडे खेले और 2336 रन बनाए साथ ही 69 विकेट लिए. फर्स्ट क्लास क्रिकेट में उन्होंने 137 करीब 6997 रन बनाए और 172 विकेट लिए. वर्तमान में रॉबिन सिंह आईपीएल में मुंबई इंडियंस के कोचिंग स्टाफ का हिस्सा है.