असम में पति की हत्या के जुर्म में स्थानीय कोर्ट ने पत्नी को हत्या का दोषी माना था. हम आपको बता दें कि महिला को उम्रकैद की सजा भी सुना दी गई थी, और वह पिछले पांच साल से जेल में बंद थी. महिला पर आरोप था की वह अपने पति की मौत के बाद रोई नहीं थी. यह मामला बुधवार को सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए महिला को बरी करने का आदेश सुनाया.
आश्चर्य की बात यह थी कि महिला को सिर्फ इस तर्क के आधार पर निचली अदालत ने सजा सुनाई थी, और इस अदालत के फैसले को गुवाहाटी हाई कोर्ट ने भी बरकरार रखा था. हाई कोर्ट ने कहा कि महिला का अपने पति की अप्राकृतिक मौत पर न रोना एक 'अप्राकृतिक आचरण' है, जो बिना किसी संदेह महिला को दोषी साबित करता है. यह भी पढ़ें- हाशिमपुरा कांड: दिल्ली HC ने 16 दोषी जवानों को उम्रकैद की सुनाई सजा, 42 लोगों की हुई थी हत्या
हत्या वाली रात पत्नी पति के साथ थी-
निचली अदालत और हाईकोर्ट ने महिला को सजा देते समय इस बात पर भी जोर दिया था कि पति की हत्या वाली रात महिला अपने पति के साथ थी. हत्या के बाद वह रोई नहीं, जिससे उसके ऊपर संदेह गहराता है, और यह साबित होता है कि उसने ही अपने पति की हत्या की.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस नवीन सिन्हा की बेंच ने कहा कि जो भी परिस्थितिजन्य साक्ष्य हैं उनके आधार पर यह कहना सही नहीं है कि महिला ने ही अपने पति की हत्या की है. इसके साथ ही बेंच ने महिला को जेल से रिहा करने का आदेश दिया.